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महानंदा बेसिन परियोजना शुरू करने के लिए अंतिम समय तक लड़ाई लड़ते रहे तस्लीमउद्दीन

अररिया : जीवन भर सीमांचल के विकास के लिए बेबाकी से आवज उठाने व विकास को जमीन पर उतारने की लड़ाई लड़ने वाले पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने यूं तो जिले ही नहीं पूरे सीमांचल में विकास की अनगिनत योजनाओं को क्रियान्वित करवाने में अहम योगदान दिया, पर महानंदा बेसिन परियोजना पर अमल उनके […]

अररिया : जीवन भर सीमांचल के विकास के लिए बेबाकी से आवज उठाने व विकास को जमीन पर उतारने की लड़ाई लड़ने वाले पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने यूं तो जिले ही नहीं पूरे सीमांचल में विकास की अनगिनत योजनाओं को क्रियान्वित करवाने में अहम योगदान दिया, पर महानंदा बेसिन परियोजना पर अमल उनके जीवन का एक ऐसा सपना था, जो सपना ही रह गया.

न केवल उन्होंने परियोजना की स्वीकृति व राशि आवंटित कराने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, बल्कि अपने जीते जी परियाजना पर अमल के लिए वे आवाज भी बुलंद करते रहे. ये बात दिगर है कि सत्ता व व्यवस्था इस मुद्दे पर हमेश उनकी अनसुनी करता रहा.

जानकार कहते हैं कि सीमांचल में साल दर साल आने वाली बाढ़ व उसकी तबाही को लेकर तसलीमुद्दीन हमेशा चिंतित रहते थे. उनका मानना था कि महानंदा, उसकी सहायक नदियों व अन्य प्रमुख नदियों को जोड़कर सीमांचल को बाढ़ की तबाही से बचाया जा सकता है. वे चाहते थे कि ऐसी परियोजना बने जिसमें केवल नदियों को आपस में जोड़ने का ही प्रावधान न हो. बल्कि नदियों की दोनों किनारों के तटबंध पर अच्छी सड़क बने.
मिली जानकारी के मुताबिक अपनी इसी मंशा को पूरा करने के लिए उन्होंने पटना से दिल्ली तक अपनी बात पहुंचानी शुरू कर दी. बताया जाता है कि वर्ष 2004 में जब वे यूपीए सरकार में मंत्री बने तो वे अपने कार्यकाल में उन्होंने महानंदा बेसिन परियोजना को स्वीकृति दिलाने में कामयाबी हासिल कर ही ली. मनमोहन सिंह सरकार ने एक हजार करोड़ की योजना को स्वीकृति दे दी. बताया जाता है कि वर्ष 2010 में परियोजना की बुनियाद भी डाली गयी. फिर मामला खटाई में पड़ गया. गौर तलब है कि परियोजना की अंदेखी करने को लेकर वे हमेशा चिंतित रहते थे. इस परियोजना में आवंटित राशि के उपयोग पर अकसर ऐसे तीखे बयान भी देते रहे जो बहुत सारी राजनीतिक हस्तियों को नागवार गुजरती रही, लेकिन उन्होंने कभी इसकी परवाह नहीं कि. वे जीवन के अंतिम समय तक परियाजना को लेकर अपनी आवाज उठाते रहे. अब देखना ये है कि क्या सरकार महानंदा परियोजना को शुरू कर इस कद्दावर नेता के सपनों को साकार करने की पहल करती है या नहीं.
सीमांचल में हर साल आने वाली बाढ़ व उससे हो रही तबाही को रोकने के लिए बनायी थी योजना
यूपीए सरकार में एक हजार करोड़ योजना हुई थी स्वीकृत, पर बाद में मामला खटाई में पड़ गया
परियोजना की अनदेखी के कारण हमेशा बयानों से चर्चा में रहे
बिना किसी की परवाह किये अंतिम समय तक उठाते रहे आवाज

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