अररिया डायसपोरा फ्लड रिलीफ के नाम से बनाये गये ह्वाट्सएप ग्रुप से जुड़े कुछ पढ़े-लिखे युवक कर रहे हैं बाढ़ पीड़ितों की मदद
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जान जोखि में डाल युवा तुर्क पोछ रहे पीड़ितों के आंसू
अररिया डायसपोरा फ्लड रिलीफ के नाम से बनाये गये ह्वाट्सएप ग्रुप से जुड़े कुछ पढ़े-लिखे युवक कर रहे हैं बाढ़ पीड़ितों की मदद अररिया : जिले में बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए सरकार व प्रशासन के स्तर से जो भी प्रयास हो रहे हैं उसे नकारा नहीं जा सकता है. पर यह भी सच […]
अररिया : जिले में बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए सरकार व प्रशासन के स्तर से जो भी प्रयास हो रहे हैं उसे नकारा नहीं जा सकता है. पर यह भी सच है कि बाढ़ का पानी कम होने के बाद से ही कई गैर सरकारी संगठन पीड़ितों के दर्द बांटने व राहत सामग्री पहुंचाने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं. इस मामले में कुछ युवा तुर्कों की टोली तो ऐसे दूर दराज क्षेत्रों तक पहुंच रही है,
जहां जाने का कोई रास्ता बचा ही नहीं है. कुछ ऐसा ही सराहनीय प्रयास अररिया डायसपोरा फ्लड रिलीफ के नाम से बनाये गये ह्वाट्सएप ग्रुप से जुड़े कुछ पढ़े-लिखे युवक कर रहे हैं. खास यह कि ये ग्रुप राहत व सहायता का काम बिना किसी प्रचार के चुपचाप कर रहे हैं. मिली जानकारी के अनुसार बाढ़ पीड़ितों के लिए आनन-फानन में ग्रुप बनाने में शहर के एक युवा इंजीनियर जाहिद हुसैन की अहम भूमिका रही है. वे फिलहाल दिल्ली में हैं. अपने कुछ साथियों के साथ वहीं से स्थानीय सदस्यों के साथ समन्वय बना कर काम कर रहे हैं. पूछे जाने पर इंजीनियर जाहिद ने बताया कि फंड के लिए दिल्ली व अन्य शहरों में नौकरी पेशा मित्रों से सहयोग लिया जा रहा है.
कुछ छात्र व टीम के सदस्य भी बढ़-चढ़ कर सहयोग कर रहे हैं. टीम में शामिल शारिक ने बताया कि राहत का सारा काम आपसी सहयोग से चल रहा है. अब वे लोग डा मुबश्शीर आलम व डा शादाब सहित कुछ अन्य मित्र डाक्टरों के सहयोग से गांव में स्वास्थ्य कैंप भी लगा रहे हैं. पुरंदाहा, बांसबाड़ी व तारण आदि में कैंप लगा कर रोगियों को दवा भी मुहैया करायी गयी है. दी गयी जानकारी के अनुसार उनकी टीम अब तक झमटा के अलावा बांसबाड़ी, सतबीटा, भूना, मछैला, महलगांव आदि क्षेत्रों तक पहुंच सकी है. पीड़ितों के बीच चूड़ा, चना, नमकीन भुजिया, मोमबत्ती, माचिस व टॉर्च आदि का वतरण किया जा रहा है.
तीन नदियों को पार कर पहुंचे झमटा
बताया जाता है ग्रुप के स्थानीय सदस्यों ने जब बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित अररिया प्रखंड के झमटा गांव जाने की सोची, तो पता चला कि रास्ते ध्वस्त हो चुके हैं. पर टीम के सदस्य अबुंल खैर, नियाज अहमद, शारिक अनवर व मो शाहिद आदि झमटा गांव के लिए निकल पड़े. शहर से 10 किलोमीटर दूर बसे झमटा गांव पहुंचने के लिए उन्हें तीन नदियों को पर कर लगभग 40 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ा. यही नहीं आधा रास्ता उन्हें पैदल अपने कंधों पर राहत सामग्री उठा कर सफर करना पड़ा. शारिक बताते हैं कि गांव में तबाही का मंजर बहुत दर्दनाक था. अधिकांश लोग गरीब मजदूर हैं.
कमोबेश सभी कच्चे मकान ध्वस्त हो चुके थे. गांव में मरे हुए पशुओं के जगह-जगह ढेर लगे हुए थे. बताया गया कि अधिकांश गरीबों के पास ऐसा एक भी बरतन नहीं बचा था जिस में पीने के लिए पानी उबाल सकते थे. उन्होंने बताया कि आपसी चंदा कर जो कुछ भी राहत सामग्री वे लोग ले गये थे, उसे बांट दिया गया.
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