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मजबूरी इतनी कि अपने ही बच्चों को बेड़ियों में जकड़ा मां-बाप ने

सुरेंद्र तिवारी, डेहरी ऑन सोनइसे कुदरत का खेल कहें या गरीबी का कहर, लेकिन परवीन बीबी के जीवन की यही सच्चई है. परवीन के चार बच्चे तो ठीक हैं, लेकिन चार बच्चे मानसिक रूप से बीमार हैं. इस कारण वह अपने चार बच्चों को बेड़ियों में जकड़ कर रखने को मजबूर हैं. कबाड़ का काम […]

सुरेंद्र तिवारी, डेहरी ऑन सोन
इसे कुदरत का खेल कहें या गरीबी का कहर, लेकिन परवीन बीबी के जीवन की यही सच्चई है. परवीन के चार बच्चे तो ठीक हैं, लेकिन चार बच्चे मानसिक रूप से बीमार हैं. इस कारण वह अपने चार बच्चों को बेड़ियों में जकड़ कर रखने को मजबूर हैं. कबाड़ का काम करनेवाले पति की आमदनी ऐसी नहीं है कि वह अपने चारों मानसिक रूप से बीमार बच्चों का समुचित इलाज करा सके. पति की कमाई से परिवार का पेट ही बमुश्किल भरता है.

डेहरी के बारह पत्थर मुहल्ले में रहनेवाले सरफुद्दीन व परवीन बीबी के आठ बच्चे हैं. दो बेटे व दो बेटियां तो ठीक हैं. लेकिन, चार बेटे ऐसी हालत में हैं कि इन्हें संभालने के लिए पति-पत्नी का पूरा दिन भी कम पड़ जाता है. रुंधे हुए गले से परवीन ने बताया कि चारों मानसिक रूप से बीमार बच्चों को दिल पर पत्थर रख कर बेड़ियां लगानी पड़ती हैं.

अगर बेड़ियां नहीं लगीं, तो इरफान व इमरान सड़क पर निकल कर आपस में झगड़ पड़ते हैं. वहीं, शमशाद और दिलशाद के भटकने का डर बना रहता है. पति घर में रहते हैं, तो बच्चों पर नजर रखते हैं. उनके काम पर जाने के बाद अकेले बच्चों पर नजर रखना मुश्किल हो जाता है. उम्र बढ़ने के साथ चारों बच्चों की दिमागी हालत और बिगड़ती जा रही है. गरीबी की वजह से उनका अच्छा इलाज हम नहीं करा सकते. सरकारी व्यवस्था भी कहां सुनती है? कई बार सरफुद्दीन ने बच्चों के इलाज का खर्च उठाने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों और कई अन्य लोगों से गुहार लगायी, लेकिन

आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला. सरफुद्दीन ने बताया कि कौन ऐसे मां-बाप होंगे, जो अपने बच्चों से प्यार नहीं करते होंगे. लेकिन, हम क्या करें? हमारे पास इतना पैसा नहीं कि बच्चों का इलाज करा सकें. अल्लाह का करम मान कर भारी मन से बच्चों को बड़ा होते देख रहा हूं. कई लोगों से इनके इलाज के लिए गुहार लगायी. लेकिन, मदद के लिए कोई भी हाथ आगे नहीं बढ़ा.

उठायेंगे जरूरी कदम : सीएस
रोहतास के सिविल सजर्न डॉ रामजी प्रसाद ने कहा कि जिले में मानसिक रोगियों के इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है. भोजपुर जिले के कोइलवर में मानसिक आरोग्यशाला है. वहां या अन्य अस्पतालों में चारों बच्चों के इलाज के लिए डायरेक्टर इन चीफ से स्वीकृति ली जायेगी. इलाज का खर्च सरकार वहन कर सकती है. जरूरत हैं सभी विक्षिप्त बच्चों का सदर अस्पताल में जांच कराने की.

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