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गांव को लगी किसकी नजर

कालिदास रंगालय में मंचित हुआ नाटक ‘हक जमीन का’ आज भी नदी की धार वैसी ही है, ये सूरज चांद तारे सब अपनी जगह हैं. पक्षियों की चहचहाहट भी है उसी तरह. फूलों में खुशबू भी है वैसी ही. लेकिन लगता है अब सब कुछ बदल गया. अब सब जान गये हैं, कोर्ट, कचहरी, थाना, […]

कालिदास रंगालय में मंचित हुआ नाटक ‘हक जमीन का’

आज भी नदी की धार वैसी ही है, ये सूरज चांद तारे सब अपनी जगह हैं. पक्षियों की चहचहाहट भी है उसी तरह. फूलों में खुशबू भी है वैसी ही. लेकिन लगता है अब सब कुछ बदल गया. अब सब जान गये हैं, कोर्ट, कचहरी, थाना, पुलिस. किसकी नजर लग गयी इसे, ये क्या हो गया है कुलेश्वर गांव को. कालिदास रंगालय का मंच सोमवार को हिंसा और अहिंसा में भिन्नता दिखा गया. जीत तो अहिंसा की होती है, लेकिन हिंसा कैसे पनपता है, कैसे लोग अहिंसा का रास्ता छोड़ देते हैं. इन सब बातों की सीख प्रांगण संस्था के कलाकारों ने नाटक ‘हक जमीन का’ में बेहतरीन अभिनय द्वारा दी.

यह थी नाटक का कहानी

नाटक की कहानी नाटक के नाम की ही तरह है. लेखक अखिलेश्वर प्रसाद सिन्हा ने नाटक को गांव के परिवेश से उठाया. उस वक्त ढोड़वामाय की बेटी की शादी में कर्ज के तौर पर लिये गये 5000 रुपये के बदले चार कट्ठा जमीन को मुखिया के पास गिरवी रख दिया जाता है. समय बीतता है. 20 साल बाद ढोड़वामाय का नाती 19 साल की उम्र में मुखिया से जमीन लेने के लिए नक्सली बन जाता है. जबकि मुखिया गांधी जी के आदर्शो पर चलनेवाला बन जाता है. उसका मानना होता है कि अहिंसा से दिल जीता जाता है, तो हिंसा का क्या फायदा.

इस बात की सीख हर दृश्य में दिखाया गया. नाटक में सूत्रधार बने निर्देशक आदिल रशीद ने नाटक के अंत को काफी पॉजीटिव अंजाम पर पहुंचाया. अंत में नक्सली से लेकर गांव का हर आदमी अहिंसा की राह पर चल निकलता है.

बेहतर अभिनय ने जीत लिया दिल

नाटक में अभिनय जितना जरूरी होता है, उतनी ही जरूरी होती है बेहतर संवाद का होना. नाटक में हर एक कलाकार ने बेहतर अभिनय किया. हर दृश्य के अंत में बजनेवाली तालियां इस बात की गवाह दे रही थी कि अभिनय ने इस नविनतम प्रस्तुति को यादगार बना दिया. चौधरी सुमेशर सिंह बने उमेश श्रीवास्तव, धनेसर बने विशाल तिवारी, कलिया बने इमरान, ढोरवामाय बनी निभा श्रीवास्तव ने काफी तालियां बटोरी.

इनके साथ नीलेश्वर मिश्र, राजेश पाण्डेय, ओम प्रकाश, अतीश कुमार, सदरूद्दीन, श्रवण, अर्पिता घोष, संजय कुमार, रवि कुमार सिन्हा, राजेश कुमार पाण्डेय और धनराज ने भी बेहतर अभिनय किया.

बिना मिट्टी के बनेगा घर में गार्डन

इनसान शुरू से ही प्रकृति के करीब रहना चाहता है, लेकिन शहरीकरण के इस दौर में यह चाह कही पीछे छूट गयी है. लोग चाहते हैं कि उनके घरों में महकते हुए फूल-पौधे के गमले लगे हों. बरामदे में एक छोटा-सा बगीचा हो. सुबह-सुबह इनकी खूबसूरती को निहारते हुए चाय की चुस्कियां ली जाये, तो वाह क्या बात है.

कौन से पौधे हैं इसके लिए सूटेबल

इस पद्धति में आप किसी भी प्रकार के पेड़-पौधे क ो उगा सकते हैं. चाहे फूल-पत्तियां हो या फिर फल-सब्जियों के पौधे, हाइड्रोफोन पद्धति द्वारा आप इनमें से किसी भी पौधे को घर पर उगा सकते हैं. गुलाब, डहलिया, पैन्सी, मैरीगोल्ड से लेकर टमाटर, मिर्च, खीरा आदि के पौधे भी आप इससे उगा सकते हैं. इस पद्धति के इस्तेमाल से पौधे तीन गुना ज्यादा तेजी से बढ़ते हैं क्योंकि इनकी जरूरत के सारे न्यूट्रियंट्स घोल के रूप में पहले से ही रहते हैं.

क्या हैं इसके फायदे

दिनों दिन बढ़ते शहरीकरण के कारण जमीन की कमी हो गयी है. ऊंची बिल्डिंग में रहने वाले लोग बागबानी करने से हिचकते हैं. ऐसे में हाइड्रोफोन या जलकृषि में मिट्टी की जरु रत खत्म हो जाती है. देश-विदेश में कई जगहों पर इस तरीके से फल-सब्जियां उगायी जा रही हैं. नदी, तालाब और पोखरों के ऊपर जरु रत अनुसार यह खेती की जा रही है. लोग इसे व्यापार के रूप में भी ले रहे हैं. हमारे यहां बहुत पहले से ही पानीफल, मखाना आदि को जलकृषि से ही उगाया जाता है. अगर आप घर के अंदर इस विधा का इस्तेमाल करते हैं, तो न आपको जमीन गंदा होने का डर रहेगा, ना मिट्टी ढूंढ़ने कहीं जाना पड़ेगा.

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