पद्मश्री गजेंद्र नारायण सिंह की 75वें अमृत वर्ष के मौके पर प्रेमचंद रंगशाला में अमृत महोत्सव का आयोजन किया गया. यह कार्यक्रम गजेंद्र नारायण सिंह अमृत महोत्सव समिति द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें तक्षशिला एजुकेशनल सोसाइटी और दिल्ली पब्लिक स्कूल ने सहयोग किया. कार्यक्रम की शुरुआत में गजेंद्र नारायण सिंह की लिखी पुस्तक ‘बिहार की संगीत परंपरा’ का लोकार्पण हुआ.
उन्होंने अपने 75वें अमृत वर्ष पर अपने खास पुस्तक को लोकार्पित किया, जिसमें बिहार के संगीत की परंपरा पर गहन चिंतन है. श्याम शर्मा ने गजेंद्र नारायण सिंह के लिए कहा कि वे संगीत की आलोचक और गुरु हैं. यह कार्य बेहद कठिन है क्योंकि उसके लिए संगीत का संपूर्ण ज्ञान होना बहुत जरूरी है. श्याम शर्मा ने कहा कि गजेंद्र नारायण सिंह ने भीड़ से अलग अपना व्यक्तित्व बनाया है.
वहीं कार्यक्रम में मौजूद आलोक धन्वा ने कहा कि ऐसा वक्त आने वाला है, जहां कर्म से पंडित होनेवाले लोग बहुत कम रह जायेंगे. उन्होंने कहा कि भारत प्रेमचंद और कबीर का साहित्य का देश है. आलोक धन्वा ने कहा कि गजेंद्र नारायण सिंह ने बेतिया और डुमराव घराने के ध्रुपद ट्रेडिशन को जीवंत रखने के लिए बहुत काम किया है.
कार्यक्रम में साहित्य के साथ संगीत का योग करते हुए पंडित उल्हास कशालकर ने अपने शास्त्रीय गायन की शुरुआत विहागड़ा से की. उन्होंने आलाप चैनदारी से शुरुआत की. राग विहागड़ा का सिलसिला काफी देर तक चलता रहा. उनके साथ तबले पर पंडित सुरेश तलवलकर और हारमोनियम पर विन मिश्र ने संगत की.