पूजा के लिए सरस्वती जी की बनने लगी प्रतिमा, देवलाल पंडित पिछले पचास सालों से बना रहे हैं भगवान की मूर्तियां
पटना : सरस्वती पूजा आने ही वाली है. शहर में मां सरस्वती की मूर्तियों ने आकार ले लिया है. बस फिनिशिंग का काम बचा है. पटना के विभिन्न क्षेत्रों के मूर्तिकार दिन रात मेहनत कर रहे हैं, ताकि उनकी मूर्ति बसंत पंचमी तक बन कर तैयार हो जाये. इस बारे में मूर्तिकार कहते हैं कि चाहे कोई भी पूजा हो उन्हें 2 महीने पहले मूर्ति बनाने का काम शुरू कर देना पड़ता है. राजापुर पुल, कुर्जी मोड़, स्टेशन रोड, दीघा, दानापुर में ऐसी मूर्ति बन रही है, यहां कई लोकल मूर्तिकार होते हैं, तो कई जगह कोलकाता से आ कर कलाकार मूर्ति बनाते हैं. वही यहां एक ऐसे कलाकार भी मिले, जो पिछले 50 वर्षो से ज्यादा समय से मूर्ति बनाते आ रहे हैं.
स्टूडेंट्स करा रहे मूर्ति का बुकिंग
कुर्जी मोड़ के पास मूर्तिकार ने बताया कि उनके यहां से गांधी मैदान, दानापुर,कंकड़बाग, दीघा, बोरिंग रोड, राजीवनगर,राजापुल के स्टूडेंट्स ने आकर मूर्ति बुक कराई है. कुछ लोग अपने हिसाब से मूर्ति का एडवांस ऑर्डर देते हैं.
पसंद नहीं मजबूरी है ये रोजगार
साज-बाज के साथ सुंदर-सुंदर मूर्ति बनाने वाले हर किसी को उनके पसंद की मूर्ति बनाकर पेश करते हैं, लेकिन उनकी यह कला शौक के साथ मजबूरी भी होती है. पढ़ने के शौक रखने वाले देवलाल के दो बेटे के साथ पोते इस पेशे में मजबूरी की वजह से आये हैं. उनका कहना है कि रोजगार का दूसरा विकल्प नहीं होने की वजह से पिता जी के इस रोजगार को संभालना पड़ा. पूरे साल की कमाई मूर्ति बनाकर होती है. इस महंगाई में किसी तरह गुजारा होता है.
ईश्वरीय शक्ति ही देती है साम्र्थय
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पिछले 22 साल से मयंक सिन्हा हर बार सरस्वती पूजा पर मां महासरस्वती की मूर्ती बनाते आ रहे है. चार साल इंजीनियरिंग के पढ़ाई के दौरान भी ये छुट्टियों में जब भी घर आते थे, तो मूर्ती बनाने पर काम करते थे. मयंक मानते है कि किसी अज्ञात शिक्त के कारण हर बार उनकी यह मूर्ती बन ही जाती है, और दिनों दिन इसकी औलोकिक आभा बढ़ती जा रही है. बचपन में खेल-कूद के जगह इन्होंने अपने कच्चे हाथों से मिट्टी-बालू के मूर्ती बनाने शुरू किये, जिन्हें ये घर के पूजा स्थल पर रख देते थे. फिर कला निखरी तो और अब इनकी बनायीं मूर्ती बाजार में मिलने वाले भव्य मूर्तियों में होती है.
खानदानी है मूर्ति बनाने के पेशा

जब 10 वर्ष का था, तब पढ़ने की जगह अपने चाचा के साथ मूर्ति बनाना सिखने लगा. इस वजह से पढ़ाई नहीं कर पाया. पिता जी ने किसी तरह सातवीं क्लास तक पढ़ाया फिर तब से आज तक मूर्ति बनाते आ रहा हूं. 60 वर्षीय देवलाल पंडित इस बात को बताते हुए थोड़े इमोशनल हो गये. साथ ही कहा कि बचपन में चाचा मुङो हर दिन मूर्ति बनाना सिखाते थे, किसी दीन खेलने चला जाता, तो पकड़ कर मूर्ति बनाने की बारीकी समझाते. चाचा 20 वर्ष पहले गुजर गये. उनके जाने के बाद सारा बोझ मैंने खुद संभाला और अब मेरा दो बेटा प्रमोद और मनोज साथ ही एक पोता शनी मेरे इस पेशे में हाथ बटाता है.