‘धर्म धमनं पापे पुण्यम’ का प्रेमचंद रंगशाला में मंचन
प्रेमंचद रंगशाला में शनिवार को धर्म और पाप-पुण्य की बातें चल रही थीं. मंच पर ‘धर्मे धमनं पापे पुण्यम’ का मंचन हो रहा था, जिसका आयोजन द आर्ट मेकर की ओर से किया गया था. इसका निर्देशन समीर कुमार कर रहे थे.
नाटक में धर्म का आडंबर और वास्तविक जीवन कासत्य दोनों के बीच का अंतर दिखाया गया. इस अंतर को दर्शाने के लिए चुटीले संवादों का प्रयोग किया गया. धर्म और सांसारिक बातों पर गुरु योगीराज और शिष्य शांडिल्य की ज्ञान की बातें और नोक-झोक पूरे नाटक में चलती रही. गुरु के ज्ञान के चक्कर में शांडिल्य बहुत त्रस्त हो गया. गुरु अपने चेले को शरीर और आत्मा की बातें सिखाने की कोशिश करते हैं. योगीराज ध्यान में होते हैं, तो शांडिल्य का दिल वसंतसेना पर आ जाता है, पर उसी बीच यम दूत प्राण ले जाने आता है. यम दूत ने गलती से वसंतसेना के प्राण निकला लिये और बेचारी वसंतसेना किसी और के नाम की मौत मर गयी.
चेले को ठीक करने के लिए के लिए गुरु ने अपनी ही जान निकाल वसंतसेना में फूंक दी. यम दूत को जब उसकी गलती का एहसास हुआ कि वह किसी और के प्राण धर से निकाल कर लाया है, तब तक वसंतसेना के शरीर में गुरु की आत्मा प्रवेश कर चुकी थी. यम दूत ने वासंतसेना की जान गुरु जी में डाल दी.
दो आत्माओं की अदला-बदली ने माहौल को ठहाकों से भर दिया. अदला-बदली से वसंतसेना ज्ञान की बातें बांटने लगी. वहीं गुरु की अदाएं भी बदली-बदली सी थीं. अंतिम दृश्य में यमदूत अपनी गलती ठीक करता है. कलाकारों की अदकारी दर्शकों को खूब पसंद आयी.