-अजय-
बिहार प्रशासनिक सेवा संघ (बासा) के सदस्य 23 जून से काफी रोष में हैं. 23 जून को कांके के अंचलाधिकारी यामिनीकांत को सीबीआइ टीम ने रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया था. उस दिन के बाद से बासा के लोग इस गिरफ्तारी और कार्रवाई के विरोध में अभियान चला रहे हैं. बासा की रांची इकाई ने नये सिरे से अपना गठन किया है. सूचनाओं के अनुसार वे संघर्ष के मूड में भी हैं. बासा के पदाधिकारी पटना से इस मामले की जांच के लिए भी आये. पटना में भी बासा के लोग दूसरे वरिष्ठ और महत्वपूर्ण लोगों से मिल रहे हैं. आखिर, बासा की इतनी सक्रियता और बेचैनी का राज क्या है?
कांके के जिस अंचलाधिकारी की गिरफ्तारी के खिलाफ यह आंदोलन चल रहा है, उन पर घूस लेने का आरोप है. उनके घर से नगद दो लाख 25 हजार रुपये मिलने के आरोप हैं. क्या ये तथ्य गलत हैं? अगर हां, तो बासा के सदस्यों को यामिनीकांत के आयकर रिटर्न को सार्वजनिक करना चाहिए, ताकि लोग जान सकें कि उनकी कानूनी आय इतनी है कि वह घर में दो लाख 25 हजार नगद रख सकते हैं? अगर यह सच है कि घूस लेते हुए हल्का कर्मचारी मोहन प्रसाद गिरफ्तार हुए, तो यामिनीकांत की गिरफ्तारी क्यों हुई? यह सवाल अपनी जगह जायज है, पर कार्रवाई या गिरफ्तार करनेवालों ने इन मुद्दों पर अपना पक्ष सार्वजनिक नहीं किया है. आखिर जिस हजाम की शिकायत पर यह कार्रवाई हुई, उसका क्या कहना है? उसने किसके खिलाफ शिकायत की है?
बासा के लोग इस कार्रवाई के बाद खूंटी की अनुमंडलाधिकारी हरजोत कौर का मामला उठा रहे हैं कि श्रीमती कौर अक्सर सरकारी गाड़ी से व्यक्तिगत कार्यवश गुमला जाती हैं. क्या श्रीमती कौर यामिनीकांत की गिरफ्तारी के पहले भी यह काम करती थीं या उनकी गिरफ्तारी के बाद वह सरकारी गाड़ी का निजी इस्तेमाल कर रही हैं? अगर वह पहले भी ऐसा कर रही थीं, तो बासा खामोश क्यों थी? चूंकि बासा के एक सदस्य पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा है, इसलिए बदले में उनके खिलाफ यह आरोप लगा है.
सच क्या है, यह तो बासा बतायेगी. आज की परंपरा यह है कि दूसरों को भी अपने समान साबित कर दो, सारा खेल खत्म. अगर भीड़ में कोई कपड़ा साफ नहीं रहेगा, सभी काले कपड़े पहने होंगे, तो एक दूसरे से क्या शर्म? पर एक भी सफेद कपड़ा पहने व्यक्ति जब तक लाखों करोड़ों की भीड़ में खड़ा है, तब तक सब आंखें चुराने हैं. इसलिए भारत देश में यह खेल शुरू हो गया है कि कोई एक भ्रष्टाचार का आरोप लगाये, तो आप दस लगा दो.
बासा बिहार के अनुभवी प्रशासनिक अधिकारियों का संघ है. अफसर लोग हैं, तो सबसे अधिक पढ़े-लिखे गुणी और सक्षम भी हैं. पर बासा द्वारा बार-बार यह सिद्ध करने की विफल कोशिश कि कार्रवाई बदले के तहत हुई है, शायद ही कोई यकीन करे. बासा के लोग सचमुच अन्याय का प्रतिकार करना चाहते हैं, तो उनके पास एक विकल्प हैं. भ्रष्ट अफसरों (जिन्हें सरकार का निगरानी विभाग भले ही न जाने, पर जनता जानती है) के कारनामों का खुला विवरण बासा जारी करे और कहे कि चूंकि ऊपर से नीचे तक सभी भ्रष्टाचार में डूबे हैं, तो फिर यह कार्रवाई किसी एक के ही खिलाफ क्यों? पर यह बासा के लोग नहीं कर सकते, क्योंकि उनके कितने सदस्यों के दामन पाक-साफ हैं, यह वे भी जानते हैं. रांची की जनता भी जानती है.
कोई भी लड़ाई नैतिक धुरी के बगैर आगे नहीं बढ़ सकती. आज देश में यह माहौल है कि यूनियनें अपने गलत सदस्यों के बचाव के लिए तुरंत खड़ी हो जाती है? बासा ने क्या कभी यह आत्मशुद्धि अभियान चलाया कि हमारे सदस्य एक न्यूनतम कानूनी आचार-संहिता के प्रगति वफादार हों, किसी आइएएस अफसर या राजनेता के करीबी न हों. बासा की जिम्मेदारी बिहार के प्रगति की भी है. कई अंचलाधिकारियों के किस्से सार्वजनिक हुए हैं, जिन्होंने कम वर्षों में अपार संपत्ति अर्जित की है. क्या बासा ने कभी उनके प्रति भी कुछ कहा है?
आज माहौल यह है कि किसी गलत इंजीनियर,डॉक्टर, अफसर, नेता या पत्रकार के खिलाफ कार्रवाई होने दीजिये, उनके समुदाय के लोग बचाव में खड़े हो जायेंगे. भारत का यह ‘इलीट’ या ‘शासक वर्ग’ भूल गया है कि देशहित में कहीं न कहीं वर्गीय हित की यह दीवार उसे ढाहनी होगी. अन्यथा इस दीवार के बाहर खड़ी उस हजाम के साथ करोड़ों -करोड़ जनता इसे कभी न कभी तोड़ देगी.