-अजय-
शेषन की पूरी रिपोर्ट बिहार की स्थिति का सिलसिलेवार वर्णन है. परिश्रम से तैयार किये गये आकट्य दस्तावेज में कई नयी जानकारियां हैं, पर सबसे चौंकानेवाली जानकारी है कि गोपालगंज में कांग्रेस प्रत्याशी की हत्या के समय वहां बिहार सरकार के एक मंत्री मौजूद थे और एफआइआर में उनका नाम दर्ज है. यह जानकारी अखबारों तक को भी नहीं थी. अखबार उस मंत्री का नाम लेकर महज कयास लगा रहे थे. आप समझ सकते हैं कि कितनी चुस्ती और प्रमाणिकता से चुनाव आयोग ने यह रपट तैयार की होगी. दूसरी ओर बिहार की लद्धड़ नौकरशाही है, जिसके आला अफसर कैसे निम्नस्तर पर एक-दूसरे से लड़ते हैं, इसका विस्तृत ब्योरा भी चुनाव आयोग ने दिया है.
शेषन ने रिपोर्ट में बताया हैं कि निष्पक्ष चुनाव की आचार संहिता, चुनाव तिथि की घोषणा के बाद कैसे भंग की गयी. (1) 227 इंजीनियर, जो योग्यता परीक्षा (क्वालिफाइंग टेस्ट) भी पास नहीं कर सके थे, उनकी नियुक्ति की संस्तुति हुई. (2) राज्य सरकार ने बिहार सरकार होम गार्ड आर्डिंनेंस 1947 को परिवर्तित करने का विधेयक पास कराया. जिसमें होम गार्ड के जवानों को चतुर्थ श्रेणी के सरकारी कर्मचारियों की सुविधाएं दी गयी. उसमें यह भी उल्लेख किया गया कि पुलिस में सिपाहियों की कमी की जगह ये 25000 होमगार्ड नियुक्त किये जा सकते हैं. राज्य सरकार के ग्रेड 3 और 4 में कुल भरती का 50 फीसदी, इन होमगार्डों में से होगा. ड्यूटी और ट्रेनिंग एलाउंस बढ़ा कर 50 और 45 रुपये किये गये.
राज्यपाल ने इस अध्यादेश पर सहमति नहीं दी. उन्होंने जानना चाहा कि चुनाव घोषणा के बाद क्या वह वाजिब है? या चुनाव आयोग से इस अध्यादेश पर सहमति के लिए फैक्स भेजा, पर साथ में अध्यादेश / बिल की प्रति नहीं भेजी? अब आयोग की समझ में नहीं आया कि कहां किस चीज पर सहमति देनी है? इस बीच 22.12.94 को विधानसभा के अंतिम दिन बिल पास कर दिया गया. आयोग ने बताया है कि 1990 के चुनावों के समय मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने होमगार्डों को ये वायदे किये थे. पर तब से लेकर 1994 के बीच इसमें कुछ नहीं किया गया.
चुनाव घोषणा के बाद यह काम हुआ. अगर यह बिल चुनाव घोषणा के पूर्व पास हुआ होता, तो आज शेषन को यह मुद्दा नहीं मिलता, इतना ही नहीं हुआ (1( इंटरमीडिएट शिक्षा परिषद का पुनर्गठन किया गया, जिसमें 12 विधायक हैं. (2) उत्पाद शुल्क आयुक्त स्थानांतरित किये गये. (3) जन शिक्षा के मंत्री ने घोषणा की कि जन शिक्षा निदेशालय के पूर्व कर्मचारियों को स्थायी सरकारी नौकरी में रखा जायेगा. (4) पुलिस महानिदेशक ने आयोग को स्वयं सूचना दी कि चुनाव घोषणा के बाद अनेक डीआइजी, एसपी, सैकड़ों पुलिस इंस्पेक्टर महत्वपूर्ण जगहों पर हटाये-बैठाये गये. (5) आयोग ने निर्देश दिया था कि राजनीतिज्ञों के निजी वाहनों से पीली-लाल बत्तियों, तत्काल हटा दी जायें. सरकर की ओर से इसका कोई जवाब ही नहीं गया.
(6) 42 विधानसभा क्षेत्रों में 45 मामले, चुनाव चिह्न आबंटन में गड़बड़ी के हुए. (7) अनेक वरिष्ठ राजनेताओं ने, जिनमें केंद्र सरकार के मंत्री भी शामिल हैं, आयोग से मिल कर बताया कि उन्हें राज्य में सुरक्षा नहीं दी जा रही. (8) गोपालगंज में 8 फरवरी 1995 को कांग्रेस प्रत्याशी की हुई हत्या के संबंध में आयोग ने कहा है कि हत्या के समय सरकार के एक मंत्री वहां मौजूद थे, जिनका एफआइआर में नाम दर्ज है.
यह बड़ा गंभीर मसला है. एफआइआर में एक मंत्री का नाम और वह हत्या के समय वहां मौजूद थे, यह मामला अखबारों में भी नहीं आया. अखबार उक्त मंत्री को लेकर सिर्फ अटकलबाजी कर रहे थे. पर चुनाव आयोग के स्पष्ट आरोप के बाद भी सरकार की खामोशी से इस मामले की गंभीरता झलकती है.
पूरे दस्तावेज में अकाट्य आरोप भरे पड़े हैं. इस पर बिहार सरकार को बिंदुवार जवाब देना चाहिए था. पर सरकार कोई जवाब नहीं दे सकती. क्योंकि सरकार चलती है, नौकरशाहों से और अपने कारिंदों से. बिहार की अफसरशाही सरकारी कर्मचारी ‘होमवर्क’ (किसी काम की पुख्ता तैयारी) नहीं जानते, वे इन सवालों का क्या जवाब देंगे? इसी कारण उच्चतम न्यायालय में तिथि टालने के खिलाफ दायर याचिका के दौरान माननीय न्यायाधीशों ने बिहार पर सख्त टिप्पणियां की.
12 पृष्ठों के इस दस्तावेज में बिहार की स्थिति के संदर्भ में अनेक चीजें दर्ज हैं. सूचनाप्रद और गंभीर, जो बिहार के इस अंधेरे में रोशनी तलाशना चाहते हैं. उनके लिए आवश्यक दस्तावेज चुनाव में कोई भी दल इसे राजनीतिक बहस का केंद्र बिंदु या एजेंडा नहीं बना सकता, क्योंकि बिहार के जिस हालात की देन हैं, ये चीजें, उसे बनाने में सबकी भूमिका रही है. कुछ अधिक, कुछ कम.