नालंदा के तेलहारा में मिले प्राचीन विवि के अवशेष
उत्खनन के दौरान बिहार के नालंदा जिले के तेलहारा में एक और प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष मिले हैं. चौथी शताब्दी में नालंदा और आठवीं शताब्दी में विक्रमशिला विश्वविद्यालय के अवशेषों की खोज के बाद बिहार में तीसरे प्राचीन विश्वविद्यालय के अवेशष की खोज बिहार के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि है. उक्त बातें बिहार पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष अतुल कुमार वर्मा ने कही.
उन्होंने कहा कि बिहार पुरातत्व विभाग के अधिकारियों की टीम की देखरेख में तेलहारा में खुदाई की जा रही है. हालांकि, यह प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष बड़े क्षेत्र में फैले हुए हैं. इसके पूर्ण उत्खनन में अधिक समय लगेगा.
गुप्त काल में किया गया था स्थापित : वर्मा ने बताया कि इस प्राचीन विश्वविद्यालय को गुप्त काल के दौरान पांचवीं शताब्दी में स्थापित किया गया था. उन्होंने बताया कि प्राचीन विश्वविद्यालय की खुदाई के दौरान भगवान बुद्ध की एक प्रतिमा मिली है. तीन फुट ऊंची यह प्रतिमा ध्यानावस्था में बुद्ध की है.
यह प्रतिमा पाल राजाओं के काल की बतायी जा रही है. इस खुदाई स्थल से गोद में बच्चा लिए हुए मां की तीन सेंटीमीटर ऊंची कांस्य प्रतिमा भी मिली है. यही नहीं, विश्वविद्यालय के अवशेष में 45 फुट ऊंचा एक टीला भी है. साथ ही सौ से अधिक कांस्य और पत्थर के मुहर भी पाये गये हैं.
खुदाई से अमर्त्य सेन भी प्रभावित
वर्मा ने बताया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस प्रोजेक्ट को वर्ष 26 दिसंबर, 2009 में शुरू किया था. खुदाई के दौरान मिले अवशेषों के बाद इसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विशेष रुचि ली और इस कार्य में प्रगति लाने के निर्देश दिये.
साथ ही कुमार ने इन अवशेषों को पटना में प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय में रखने की भी घोषणा की. वर्मा ने बताया कि पिछले सप्ताह नोबेल विजेता अमर्त्य सेन ने नालंदा स्थित तेलहारा का दौरा किया था और यहां हो रही खुदाई से वे काफी प्रभावित थे.
1872 में सबसे पहले हुई खोज : वर्मा ने बताया कि इस स्थल की सर्वप्रथम खोज वर्ष 1872 में एस ब्रोडले ने की थी. उन्होंने अपनी पुस्तक में इस स्थल को तिलास-अकिया बताया है. इसके बाद चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी इस स्थल का दौरा किया था.
ह्वेनसांग ने भी इस स्थल को अपने वृतांत में ति-लो-त्से-किया बताया है. ह्वेनसांग ने लिखा है कि तेलहारा में सातवीं शताब्दी में महायान संप्रदाय के सात मठ थे. यहीं हजारों बौद्ध भिक्षु महायान ग्रंथों का अध्ययन करते थे.