मकर संक्रांति या तिलसकरात के दिन दही-चूड़ा तिलकुट खाय के परंपरा ता भारत के कुछेक हिस्सा में बा, बाकिर बिहार में ऐकर कुछ बिसेस महत्व बा. ग्रामीण इलाका में आय भी इ परचलन बा कि जब तक बिहौती बेटी के मायका में माई आ बाबूजी जीवित रहेलन तब तक उ बेटी के ससुरार में आपन बथान के दही आ आपन खेत में उपजल धान के चूड़ा पहुंचावल जाला. जे तनी सुखी आ सौकीन बडान उ गया के मशहूर तिलकुट, घीबर खाय आ खिलाबे से ना चुकेलन. गरीब होखे चाहे आमिर इ परब के इंतजार सबके रहेला.
जाड़ा के पारा चाहे जेतना भी निचे होखे दही चूड़ा सिरोके से केहू ना चुकेला. इ परब, पिकनिक परब के रूप में भी मनाबल जाला. बिहार-झारखंड के सायदे नदी, झरना, जंगल, पहाड, पार्क कोई भी पिकनिक सपोर्ट बचत होई जहवां इ परब के रौनक ना दिखेला. केहू पटना के गंगा पार जाके गोवा के मजा लेबेलन, ता केहू राजगीर के पहाड़ पर पतंग उड़ा के सकरात मनाबेलन, ता कुछ बूढ पूरान लोगीन गंगा सागर जा के अप्पन तीर्थ यात्र पूरा करेलन. मान्यता बा कि गंगा के धरती पर लाबे वाला महर्षि भागीरथ महाराज जी अप्पन पूर्वजन के खातिर इहे दिन तर्पण कईले रहलन.
उनखे तर्पण स्वीकारला के बाद इहे मकर संक्रांति के दिन गंगा जी समुन्द्र में जा के मिल गईलीन. सरकारी, गैर सरकारी संस्थान में ऐच्छिक अवकाश माने वाला मकर संक्रांति के बिसेसता इ भी बा कि जे सज्जन घर परिवार के बीच रह के त्यौहार मनाबेलन उ अप्पन अंगना या छत पर गुनगुनी धुप में पलथी मार के आराम से बैठ के दही चूड़ा, तिलकुट आ तरकारी खा के इ बात पर चर्चा करे से नइखे चुकेलन कि आय से सादी वियाह के लगन तेज हो जाई, काहे कि आय खरमास खतम हो गईल. हिन्दू धरम में पूस महिना यानि खरमास के खास खियाल रखल जाला. भारत के पूर्वी इलाका में खरमास में कौनो सुभ काम के सुरु आत ना करे के परम्परा बा. मकर संक्रांति के बारे में लोग इ भी कहेलन कि इ दिन जे कुवार लईका या लईकी नहा लेनन उकरा दुल्हिन या दूल्हा करिया मिलेला, जबकि माई आपन बेटा के तिल, गुड आ अरवा चाउर के परसाद खिया के इ पुछेली कि ऐकर बैह देबू ना? मतलब कमा के हमरा देबू कि मेहरारू के? बेटा हंस मुस्कुरा के माई से कहेलन कि माई कमा के तोहरे खोइछा में देम.
(रविराज पटेल, लेखक युवा कला समीक्षक आ संस्कृतिकर्मी बाडन)