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संस्कृत शिक्षा बोर्ड्र: परीक्षार्थी जुटाओ, वेतन पाओ

पटना: परीक्षा देने से विद्यार्थी का फायदा होता है. यह तो हर कोई जानता है, लेकिन परीक्षा देने से परीक्षार्थी के अलावा दूसरों को भी फायदा मिलता है, यह शायद कम ही जगहों पर देखा जा सकता है. कुछ ऐसा ही हाल बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड का है. उसमें काम कर रहे कर्मचारियों का वेतन […]

पटना: परीक्षा देने से विद्यार्थी का फायदा होता है. यह तो हर कोई जानता है, लेकिन परीक्षा देने से परीक्षार्थी के अलावा दूसरों को भी फायदा मिलता है, यह शायद कम ही जगहों पर देखा जा सकता है. कुछ ऐसा ही हाल बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड का है. उसमें काम कर रहे कर्मचारियों का वेतन मध्यमा के परीक्षार्थी पर निर्भर करता है. परीक्षार्थियों की संख्या के आधार पर ही संस्कृत बोर्ड के कर्मचारियों का वेतन तय होता है. ऐसे में बोर्ड के तमाम कर्मचारी कोशिश में रहते हैं कि परीक्षार्थियों की संख्या हर साल बढ़े.

अब पहले वाली बात कहां : एक समय था, जब बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड के अंतर्गत लाखों की संख्या में विद्यार्थी मध्यमा यानी मैट्रिक की परीक्षा देते थे. लेकिन, अब पहले वाली स्थिति नहीं है. बोर्ड के परीक्षा विभाग के अनुसार 1992 के सत्र में परीक्षार्थियों की संख्या लगभग दो लाख थी. इससे पहले 1991 के सत्र में तीन लाख परीक्षार्थी शामिल हुए थे. इसके बाद बोर्ड की स्थिति खराब होती चली गयी. तीन सत्रों 1993, 1994 और 1995 की परीक्षा हुई ही नहीं. इसकी वजह से काफी संख्या में विद्यार्थी संस्कृत शिक्षा बोर्ड को छोड़ कर दूसरे बोर्ड में चले गये. बाद में उक्त तीनों सत्रों की परीक्षा एक साथ 1995 में ली गयी, लेकिन इसमें मात्र 4200 परीक्षार्थी ही सम्मिलित हुए. हालांकि, हाल के वर्षो में परीक्षार्थियों की संख्या बढ़ी है, लेकिन लाख तक अब भी नहीं पहुंच पायी है. यह संख्या लगभग 64 हजार के आस-पास आ कर रह गयी है.

अपने ही घर में बेगाने : बोर्ड के कर्मचारियों की मानें, तो वे अपने ही घर में बेगाने हैं. हर बोर्ड को बिहार सरकार से अनुदान के पैसे मिलते हैं, लेकिन संस्कृत शिक्षा बोर्ड को एक भी पैसे का अनुदान नहीं मिलता है.

वहीं, मदरसा बोर्ड को हर साल 25 लाख रुपये की राशि अनुदान में दी जाती है. जब मदरसा बोर्ड को अनुदान मिलता है, तो संस्कृत शिक्षा बोर्ड को क्यों नहीं, लेकिन उनकी बातों को सुननेवाला कौन है? यही नहीं, बिहार बोर्ड को भी राज्य सरकार की ओर से समय-समय पर अनुदान मिलता रहता है.

अध्यक्ष व सचिव भी वेतन से बाहर
बोर्ड के कर्मचारियों के अलावा गवर्नमेंट के तीन अधिकारियों का भी वेतन परीक्षा पर ही निर्भर रहता है. इस संबंध में बोर्ड के अध्यक्ष प्रो रामदेव प्रसाद ने बताया कि कर्मचारियों के अलावा अध्यक्ष, सचिव और परीक्षा नियंत्रक को भी वेतन का भुगतान परीक्षा शुल्क पर ही निर्भर रहता है. बोर्ड का अपना भवन नहीं है. उसका किराया प्रतिमाह 75 हजार रुपये है. इसे भी परीक्षा शुल्क से दिया जाता है. यही कारण है कि परीक्षार्थी की संख्या कम होने पर इसका असर हर किसी के वेतन पर पड़ता है.

यह एक ऐसी संस्था है, जिसे बिहार सरकार की ओर से कोई भी अनुदान नहीं मिलता है. हम हर चीज के लिए परीक्षा शुल्क पर निर्भर रहते हैं. इसके लिए मैंने शिक्षा विभाग को कई बार पत्र भी लिखा है, लेकिन जवाब का इंतजार ही है. – प्रो. रामदेव प्रसाद, अध्यक्ष, बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड

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