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शराब पीते-पीते मर गया अफसर बाप, बेटा बन गया था भिखमंगा

पटना: पिता के शराब की लत ने उसकी जिंदगी नरक से भी बदतर बना दी. पिता सिंचाई विभाग में अफसर थे, लेकिन शराब ने उन्हें ऐसा जकड़ा था कि बेटे का भविष्य रास नहीं आया. अंतत: पीते-पीते दुनिया से चले गये. बच गया सिर्फ बेटा. मां नहीं थी. अकेला होते हुए भी अपने दम पर […]

पटना: पिता के शराब की लत ने उसकी जिंदगी नरक से भी बदतर बना दी. पिता सिंचाई विभाग में अफसर थे, लेकिन शराब ने उन्हें ऐसा जकड़ा था कि बेटे का भविष्य रास नहीं आया. अंतत: पीते-पीते दुनिया से चले गये. बच गया सिर्फ बेटा. मां नहीं थी. अकेला होते हुए भी अपने दम पर बीएससी तक पढ़ाई की. लेकिन, एक दुर्घटना ने उसे ऐसा लाचार बनाया कि रोटी के लिए उसे भीख मांगनी पड़ी.

यह कहानी है हाजीपुर के मसजिद चौक के समीप के मगरहट्टा राजू सिंह (32 वर्ष)की. राजू के मुताबिक जीते जी पिता ने जिंदगी नरक बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, उस पर दुनिया की बेरुखी ने भिखमंगा बनने पर मजबूर कर दिया. दुर्घटना में घायल होने के बाद किसी ने तरस खाकर किसी ने पीएमसीएच के लावारिस वार्ड तक पहुंचा दिया. पैर की हड्डी टूट गयी थी. लावारिस वार्ड की नारकीय हालात ने उसे मौत के निकट ला दिया. ऊपर से एक वरिष्ठ डॉक्टर की नसीहत ने अस्पताल छोड़कर जाने पर मजबूर कर दिया. डॉक्टर ने कहा, भाग जाओ. तीन माह तक तुम्हारा कौन इलाज करेगा?.. और फिर एक दिन वहां से भगा दिया गया.

जिंदगी से हार मान चुके राजू ने एक दिन सल्फास भी खा लिया. पर, किसी ने उसे बचा लिया. कई दिनों से वह भूखा था. आखिरकार उसने भीख मांगने की सोची. वह भीख मांगने लगा. पीएमसीएच के एक स्वयंसेवक को उसपर दया आ गयी. उसने तीन अन्य भिखमंगों के साथ उसे मुख्यमंत्री के जनता दरबार पहुंचा दिया. उसके साथ के एक भिखारी की तो मौत हो गयी, पर वह बच गया. सीएम के निर्देश पर इलाज और अन्य सुविधा के बाद अब वह राज्य सरकार की संस्था सक्षम के राजीव नगर स्थित सेवा कुटीर में हैं. अब राजू इस सेवा कुटीर को ही अपना घर समझ रहा है. राजू कहता है, वह ठीक होगा तो लोगों को पढ़ाने का काम करेगा. गणित और साइंस विषयों पर उसकी पकड़ है.

कुछ ऐसी ही स्थिति है, मध्य प्रदेश के संजय कुमार गोरे का. बचपन में मां- बाप मर गये. सगे संबंधी और समाज से कोई मदद नहीं मिली और भीख मांगने लगा. भटकते हुए पटना पहुंच गया.

विपत्ति में पत्नी भी हो गयी बेवफा
शादी के वक्त साथ जीने और साथ मरने की कसमें खायी थी, लेकिन जब विपत्ति आयी, तो वह खुशियों की तरह वह भी बेवफा हो गयी. यह कहानी समस्तीपुर के धुरहई खतवे की है. वह निजी कंपनी में काम करता था. एक दिन फैक्टरी में आग लगी. वह बुरी तरह जल गया. अस्पताल में जब वह जीवन और मौत के बीच का संघर्ष कर रहा था, तो पत्नी बच्चे के साथ भाग गयी. इसके बाद वह भीख मांगने लगा. गंभीर स्थिति में वह समाज कल्याण विभाग के अपना घर होते हुए सेवा कुटीर तक पहुंचा.

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