राजगीर (नालंदा) : राजगीर के अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन हॉल में रविवार को जीविका द्वारा आयोजित कार्यशाला सह सेमिनार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गांवों को शराबमुक्त बनाने और घरों में शौचालय निर्माण पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि शराबमुक्त गांव को एक लाख रुपये का इनाम दिया जायेगा.
कार्यशाला का उद्घाटन करने के बाद अपने संबोधन में श्री कुमार ने कहा कि यह संकल्प लें कि जिस घर में शौचालय नहीं होगा, वहां शादी-विवाह या अन्य संबंध नहीं बनायेंगे. शौचालय नहीं होने की वेदना सबसे ज्यादा महिलाओं को झेलनी पड़ती है. महिलाओं को शौच के लिए सुबह में अंधकार रहने का तथा अंधकार होने की प्रतीक्षा करनी पड़ती है. अब हमारी सरकार ने शौचालय बनाने के लिए अनुदान देने में अमीर-गरीब का मानक और परिधि समाप्त कर दी है.
कोई भी वर्ग इस अनुदान लेकर शौचालय बनवाया सकता है. उन्होंने कहा कि यह महिला सशक्तीकरण और महिला आरक्षण का सकारात्मक नतीजा सामने आया है. जीविका की बहनें व दीदी के कार्य से ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर प्रभाव पड़ा है, जो तबका अब तक बचत की आदत से वंचित था और साहूकारों के चंगुल में फंसा था. उन लोगों को जीविका के माध्यम से बचत की आदत डाल कर साहूकारों के चंगुल से मुक्त किया जाना प्रशंसनीय है.
मुख्यमंत्री ने जीविका की दीदी एवं बहनों से कहा कि आप सभी संकल्प लें कि बेटा हो या बेटी उसे अवश्य पढ़ायेंगे. इस अवसर पर सांसद आरसीपी सिन्हा व कौशलेंद्र कुमार, सत्तारूढ़ दल के मुख्य सचेतक श्रवण कुमार, पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य अरुण कुमार वर्मा, विधान पार्षद हीरा बिंद, मत्स्य विभाग के प्रधान सचिव संतोष कुमार मल्ल, ग्रामीण विकास विभाग के प्रधान सचिव अमृत लाल मीणा, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव अंजनी कुमार सिंह, मुख्य कार्यपालक अरविंद कुमार चौधरी, एमबीजीबी के अध्यक्ष संजीव शरण, डीएम पलका साहनी, जीविका के जिला समन्वयक डॉ संतोष कुमार सहित दर्जनों विभागों के पदाधिकारी मौजूद थे.
* जिस घर में शौचालय नहीं, वहां शादी-विवाह न करें
* मुख्यमंत्री ने जीविका की कार्यशाला का किया उद्घाटन
हर डेढ़ दिन में एक नयी शराब दुकान
पिछले आठ साल में बिहार ने हर क्षेत्र में तरक्की की है. फिर शराब में कैसे पीछे रह जाता. पिछले वर्षो में राज्य में नयी शराब नीति बनी. शराब की बिक्री बढ़ी, खजाने में पैसा भी खूब आया.
हर मुहल्ले में दुकानें खुल गयीं. पर, नशे के धंधे की बढ़ती कमाई, खपत को तरक्की कैसे मान लें? शराब की बढ़ती बिक्री ने हिंसा को बढ़ाया, युवाओं को कमजोर किया. गरीबों को और गरीब बनाया, तो कई परिवारों के टूटने का कारण भी यही शराब बन रही है. शराब से प्रदेश के बदलते सामाजिक, आर्थिक हालात और डूबती एक पीढ़ी की पड़ताल करती रिपोर्टो की श्रृंखला में आप पढ़िए पहली किस्त.
पटना : बिहार में शराब की खपत व उससे आमदनी में भारी इजाफा हुआ है. 10 साल पहले जहां सभी किस्मों की शराब दुकानों की तादाद 3095 थी, वहीं इस साल यह बढ़ कर 5467 पर पहुंच गयी है.
यानी 10 साल में राज्य में 2372 दुकानें बढ़ गयीं. हर साल औसतन 237 दुकानें खुलीं.यानी हर डेढ़ दिन में एक दुकान खुली.
वित्तीय वर्ष 2002-03 में राज्य का जितना योजना बजट था, उससे कहीं ज्यादा उत्पाद कर से वसूली हो रही है. 10 साल पहले राज्य के योजना बजट के तहत सिर्फ 2206 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. एक दशक बाद अकेले उत्पाद कर से आमदनी 2012-13 में 2454 करोड़ रुपये पर पहुंच गयी.
चालू वित्तीय वर्ष के नवंबर तक 1686 करोड़ रुपये की वसूली हुई है और इसके मार्च तक 3600 करोड़ वसूली का टारगेट रखा गया है.
उत्पाद कर में भारी उछाल की बड़ी वजह शराब दुकानों की तादाद में इजाफा होना है. वर्ष 2002-03 में जहां सभी किस्मों की शराब दुकानों की तादाद 3095 थी, वह इस साल बढ़ कर 5467 पर पहुंच गयी. 2007 में लागू हुई नयी शराब नीति के तहत हर तीन पंचायतों पर कंपोजिट शराब की एक दुकान खुल गयी. कंपोजिट का अर्थ है एक ही जगह देसी, मसालेदार और विदेशी शराब का मिलना. इसी तरह नगर निगम और नगर पर्षद क्षेत्रों में भी शराब की दुकानों की तादाद बढ़ गयी. राज्य में 8463 पंचायतें हैं.
दुकानें खुलीं, आमदनी बढ़ी नयी शराब नीति लागू होने के ठीक पहले वर्ष 2005-06 में उत्पाद कर से आमदनी 320 करोड़ थी.
पर, नयी नीति आने के बाद राजस्व में लगातार इजाफा यह बताता है कि इसकी खपत की तुलना में खजाने को टैक्स नहीं मिल पाता था. वह समानांतर व्यवस्था थी, जो अवैध कमाई के रूप में निजी तिजोरी में जाती थी. जानकारों का कहना है कि अगर आमदनी 319 करोड़ थी, तो उसका चार गुना अवैध कारोबार होता था.
यानी करीब 12 से 14 सौ करोड़ की काली कमाई से शराब माफिया मालामाल होते थे. अब यह आमदनी वर्ष 2012-13 में 2454 करोड़ रुपये हो गयी. हालांकि, पंचायत स्तर पर शराब दुकानों के खुलने के चलते नीतीश सरकार की आलोचना भी होती रही है.
अब भी चल रहा अवैध धंधा
तमाम चौकसी के बावजूद अवैध शराब का यह धंधा जरूर मंदा हुआ है, पर यह पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. हाल ही में जदयू विधायक अजय मंडल की नाथनगर की जमीन पर अवैध देसी शराब की फैक्टरी पकड़ी गयी. इस मामले में पुलिस ने प्राथमिकी दायर की. फैक्टरी से बरामद पाउच पर बिहार सरकार लिखा हुआ पाया गया था. इस घटना से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस धंधे में कितने प्रभावशाली लोग लगे हुए हैं.
हालांकि, विधायक अजय मंडल ने इनकार किया कि फैक्टरी उनकी है. उनका कहना है कि जमीन लीज पर दी गयी थी. बहरहाल, शराब के कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि अब भी 200 करोड़ का अवैध कारोबार अपनी निरंतरता बनाये हुए है. इसमें देसी और विदेशी अवैध शराब का धंधा शामिल है.
राज्य को देसी शराब के लिहाज से 17 जोन में बांटा गया है. यानी इतनी ही संख्या में शराब बनानेवाले निजी क्षेत्र के लोग हैं. वहां से शराब राज्य बिवरेजेज कॉरपोरेशन को जाता है. शराब बनाने के लिए ठेका दिया जाता है. कॉरपोरेशन से खुदरा व्यवसायियों को शराब की सप्लाइ होती है.
शराब से आमदनी का बढ़ता ग्राफ
वर्ष राजस्व (करोड़ में) दुकानों की संख्या
2002-03 248 3095
2003-04 236 3204
2004-05 272 3075
2005-06 320 2922
2006-07 384 3235
2007-08 535 3448
2008-09 750 3988
2009-10 1099 4591
2010-11 1543 5206
2011-12 2045 5134
2012-13 2454 5466
2013-14 1686 नवंबर तक 5467
3600 टारगेट
2007-2008 से कंपोजिट दूकानें खोली गयी हैं.