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आप जिम्मेवार होंगे

-हरिवंश- बिहार में कोल माफिया, शिक्षा माफिया और भूमि माफिया की चर्चा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई पर सबसे ताकतवर पशुपालन माफिया पर हाथ डालने का कोई साहस नहीं कर सका. केबी सक्सेना (राज्य के सहायक मुख्य सचिव) जैसे ईमानदार अफसर को ही इस माफिया गिरोह ने शिकस्त नहीं दी. बल्कि मुख्यमंत्री की हैसियत से भागवत […]

-हरिवंश-

बिहार में कोल माफिया, शिक्षा माफिया और भूमि माफिया की चर्चा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई पर सबसे ताकतवर पशुपालन माफिया पर हाथ डालने का कोई साहस नहीं कर सका. केबी सक्सेना (राज्य के सहायक मुख्य सचिव) जैसे ईमानदार अफसर को ही इस माफिया गिरोह ने शिकस्त नहीं दी. बल्कि मुख्यमंत्री की हैसियत से भागवत झा आजाद ने जब कुछ कार्रवाई करने का दुस्साहस किया, तो दिल्ली से सख्त संदेश मिला ‘पशुपालन माफिया के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी?’

भागवत झा आजाद ने हाथ पीछे खींच लिये. पिछले डेढ़ वर्षों के दौरान ‘प्रभात खबर’ के कुछ निष्ठावान संवाददाता लगातार पशुपालन माफिया की गतिविधियों को उजागर करते रहे. दबाव, षडयंत्र और धमकी के बावजूद. क्योंकि करोड़ों लोगों की किस्मत से जुड़े सवालों को कुछ अपराधी हाथों में नहीं छोड़ा जा सकता. पत्रकारिता के लिए यह युगीन चुनौती है. ‘प्रभात खबर’ में छपी लगातार रपटों पर केंद्रीय सरकार के चौकस विभागों ने कार्रवाई की.

छापे के दौरान भी अनियमितता पायी गयी. करोड़ों के ड्राफ्ट, बैंक खाते व लॉकर पकड़े गये. इस व्यवस्था का असली शक्ल देखिए कि एक बड़े वामपंथी सांसद पशुपालन माफिया के वकील बन कर उनके बचाव के लिए अदालत पहुंचे. यह है राजसत्ता और राजनीति का असली चेहरा.

‘प्रभात खबर’ में ही पशुपालन विभाग के उन अफसरों के नाम छापे, जिनके खिलाफ राज्य सरकार का निगरानी विभाग (विजिलेंस) जांच कर रहा है. यह गोपनीय रपट थी, पर सरकार का महकमा आज तक जांच कर रहा है कि अति गोपनीय रपट ‘प्रभात खबर’ को कैसे मिली. उस रिपोर्ट में पशुपालन विभाग के सिर्फ एक अफसर पर 50 करोड़ के गोलमाल का आरोप है. उसने जांच रुकवाने के लिए एक अधिकारी को मारुति कार भेंट की. एक भ्रष्ट अफसर से संबंधित गोपनीय रपट छप जाने पर यह जांच तो होती है कि ‘रपट’ लीक कैसे हुई? पर जिन अफसरों ने गरीबों, आदिवासियों को ठगा और इस धरती को बंजर बनाया. अरबों रुपये की हेराफेरी की. उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं होती. यह है आपकी व्यवस्था.

रोजाना अपराधियों की हरकतें आप आखबारों में पढ़ते हैं, जो अपराधी हैं, उनमें से अधिसंख्य बेरोजगारी, गरीबी और भूख के कारण अपराध जगत से जुड़े. आदतन अपराधी काम है. अब आप तय करें कि असली अपराधी कौन है. ये सफेदपोश लुटेरे या भूख की आग से बचने के लिए चोरी-डकैती करनेवाले? आज पलामू-गढ़वा में लाखों की आबादी मौत के कगार पर है, क्योंकि सरकार द्वारा विकास मद में खर्च किये गये अरबों-खरबों की राशि अफसरों-ठेकेदारों और राजनेताओं ने उदरस्थ कर ली. इन करोड़ों लोगों को सूखे की आग में झोंकनेवाले पशुपालन माफिया जैसे सरकारी महकमों के अफसर ही हैं.

आज नहीं तो कल भूख से मरते लोग ऐसे अफसरों से सवाल पूछेंगे ही, क्योंकि जिन्हें (राजनेताओं-सांसदों-विधायकों) सवाल पूछने चाहिए, वे इन माफिया गिरोहों से हमराही हैं. कितने सवाल इन माफिया गिरोहों के बारे में संसद या विधानसभा में उठाये गये? अगर नहीं उठाये गये, तो किन कारणों से ये सवाल दबे? क्या यह रहस्य है? इस इलाके से जो सांसद-मंत्री या विधायक रहे हैं, या जो हैं, उन्होंने इन माफिया गिरोहों से कितने पैसे लिये, यह भी रहस्य नहीं है.

बहरहाल, ‘प्रभात खबर’ के लिए ऐसे सवाल चुनौती हैं, और ऐसे सरकारी महकमों का भंडाफोड़ बुनियादी फर्ज. समाज के ऐसे ताकतवर अपराधियों के खिलाफ आवाज उठाने की कीमत भी पता है. पर एक पल सोचिए. गांधी की शहादत, भगत सिंह की कुरबानी, चंद्रशेखर आजाद का प्राणोत्सर्ग, क्या इसी भारत के लिए हुआ था? क्यों मौजूदा स्थिति में आप पल-पल घुट रहे हैं?

अखबार ‘आईना’ है. उसने असली चेहरा दिखा दिया. ऐसे लोगों के प्रति घृणा अभियान चलाइए. इनका सामाजिक बहिष्कार करिए. अगर आप ऐसा नहीं करेंगे, तो बिहार को एक अंधेरी सुरंग में ले जाने के जिम्मेदार आप भी होंगे.

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