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पैसा बनाने की मशीन बना स्मार्ट कार्ड

पटना: गरीबों के लिए बना स्मार्ट कार्ड दलालों और नर्सिग होम के लिए पैसा बनानेवाली मशीन बन गया है. नर्सिग होम द्वारा कार्डधारियों को फंसा कर लाने के लिए दलाल छोड़े गये हैं. ये दलाल पैसा मिलने के नाम पर लुभाते हैं और उन्हें किसी खास नर्सिग होम में ले जाते हैं. बीते पांच साल […]

पटना: गरीबों के लिए बना स्मार्ट कार्ड दलालों और नर्सिग होम के लिए पैसा बनानेवाली मशीन बन गया है. नर्सिग होम द्वारा कार्डधारियों को फंसा कर लाने के लिए दलाल छोड़े गये हैं.

ये दलाल पैसा मिलने के नाम पर लुभाते हैं और उन्हें किसी खास नर्सिग होम में ले जाते हैं. बीते पांच साल में एक करोड़ 80 लाख स्मार्ट कार्ड बने हैं. 25 जिलों में स्मार्ट कार्ड बनाने के लिए टेंडर की प्रक्रिया आखिरी दौर में है. बीमा कंपनी इलाज के एवज में एक साल में अधिकतम 30 हजार का भुगतान करती है. कार्ड से इलाज पर बीपीएल परिवारों को एक पैसा भी नहीं देना होता है. सूचीबद्ध नर्सिग होम इलाज के एवज में क्लेम करते हैं और उसके आधार पर होता है भुगतान. पर, भुगतान में कई बिंदुओं पर कमीशन का खेल भी होता है. आइए समझते हैं कि कैसे होता है खेल.

नर्सिग होम में सो जाओ 800 रुपये ले जाओ
ताजा मामला पटना से सटे मनरे का है. वहां के कुछ बीपीएल परिवारों को पटना के एक नर्सिग होम में लाया गया. उन्हें रात भर रखा गया. कागज पर उनके अंगूठे का निशान लिया गया. अगले दिन उन परिवारों को प्रति सदस्य के हिसाब से 800-800 रुपये का भुगतान किया गया. उधर, इलाज के एवज में नर्सिग होम ने मल्टीपल ट्रीटमेंट के नाम पर प्रति कार्ड 30-30 हजार रुपये का क्लेम कर दिया. एक कार्ड के एवज में दलालों को 500-500 सौ रुपये का भुगतान किया जाता है. जब संबंधित बीमा कंपनी के पास इसके बारे में शिकायत पहुंची, तो उसने नर्सिग होम के क्लेम की जांच शुरू कर दी.

कार्ड बनने के साथ खेल चालू
स्मार्ट कार्ड बनाने की प्रक्रिया के साथ ही फर्जी खेल शुरू हो जाता है. कार्ड पर बीपीएल परिवार के मुखिया की तसवीर होती है और इस पर पांच सदस्यों का इलाज हो सकता है. कार्ड के लिए तसवीर खींचने का काम प्राइवेट एजेंसी के पास होता है. गांव में कई ऐसे भी बीपीएल परिवार हैं, जिनके घर में चार, तीन या दो ही सदस्य हैं. बिचौलिये ऐसे परिवारों के साथ अपनी तसवीर खिंचवा लेते हैं और कार्ड पर मिलनेवाली सुविधा का फायदा उठाते हैं. गांव में बहुत से ऐसे भी लोग होते हैं, जो बीपीएल हैं और अकेले हैं. बिचौलिये ऐसे परिवारों का सदस्य बन जाते हैं. कुछ ले-देकर स्मार्ट कार्ड में उनकी भी इंट्री हो जाती है. हालांकि स्मार्ट कार्ड पहले से बनायी गयी बीपीएल लिस्ट के आधार पर बनाने का प्रावधान है, पर दलालों ने इसमें भी सेंधमारी कर ली है.

कार्ड के बावजूद फीस की वसूलीअरवल जिले के नगला गांव की एक महिला इलाज के लिए जहानाबाद के एक नर्सिग होम पहुंची. उसकी डिलिवरी होनी थी. नर्सिग होमवाले ने उससे 3000 रुपये ले लिये. जबकि, महिला से एक पैसा भी नहीं लेना था. महिला ने इसकी शिकायत शिकायत निवारण केंद्र से की. बात डीएम और सिविल सजर्न तक पहुंची. नर्सिग होम को पैनल से हटाने की कार्यवाही चल ही रही थी कि उसने महिला से एक दूसरा आवेदन दिलवा दिया. महिला ने कहा कि उसके साथ कुछ भी गलत नहीं हुआ. इस तरह सब बच गये. प्रावधान के अनुसार सामान्य प्रसव की रेट 3500 रुपये और सीजेरियन की 7000 रुपये है.

ऑपरेशन अपेंडिक्स का क्लेम हॉर्निया का
ऑपरेशन की अलग-अलग रेट तय है. किसी का इलाज अपेंडिक्स का होता है और नर्सिग होमवाले हॉर्निया का क्लेम कर देते हैं. एक बीमा कंपनी के अधिकारी ने बताया कि कार्डधारी को यह पता नहीं होता कि नर्सिग होम ने उसकी किस बीमारी के इलाज के एवज में क्लेम किया. मसलन, इलाज हुआ सर्दी-खांसी का और क्लेम किया किसी गंभीर बीमारी या ऑपरेशन का. कार्डधारी सिर्फ इस बात से खुश रहता है कि उसका इलाज हो गया, वह भी मुफ्त में. लेकिन वह इतना पढ़ा लिखा, समझदार या जागरूक नहीं होता है कि वह समझ सके कि उसके कार्ड के साथ नìसग होम ने क्या खेल किया.

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