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औरंगाबाद हमला : माओवादी ने ली हमले की जिम्मेवारी

* बिहार में पहली बार इस तकनीक का प्रयोग ।। कौशलेंद्र मिश्र ।। पटना : औरंगाबाद के खुदवा थाने के पिसाय गांव में 17 अक्तूबर को हुई नक्सली हमले में 25 टन की विस्फोटक क्षमतावाले आइइडी (इंप्रोवाइज एक्सप्लोसिव डिवाइस) का इस्तेमाल हुआ था. बिहार में पहली बार इस तरह की तकनीक का नक्सली हिंसा में […]

* बिहार में पहली बार इस तकनीक का प्रयोग

।। कौशलेंद्र मिश्र ।।

पटना : औरंगाबाद के खुदवा थाने के पिसाय गांव में 17 अक्तूबर को हुई नक्सली हमले में 25 टन की विस्फोटक क्षमतावाले आइइडी (इंप्रोवाइज एक्सप्लोसिव डिवाइस) का इस्तेमाल हुआ था. बिहार में पहली बार इस तरह की तकनीक का नक्सली हिंसा में इस्तेमाल किया गया है. पुलिस मुख्यालय इस सूचना से हैरान है.

पुलिस प्रशासन नक्सलियों के इस प्रयोग की छानबीन में जुटा है. पुलिस मुख्यालय के अधिकारी इस बात को स्वीकारते हैं कि आइइडी का इस्तेमाल आंध्र प्रदेश में नक्सली तथा विदेशों में आतंकी समूह धड़ल्ले से करते हैं. वैसे सेना में आइइडी का प्रयोग होता है. आशंका है कि सेना में आपूर्ति के दौरान ही इसे प्राप्त किया गया हो अथवा इसका देसी संस्करण तैयार किया गया हो. इस दिशा में भी जांच हो रही है.

* कई देशों में हो रहा इस्तेमाल

नेपाल में पिछले 10 वर्षो में माओवादी समूह चीन के सहयोग से आइइडी का इस्तेमाल कर रहे हैं. भारत में माओवादी संगठनों ने नेपाल व चीन से क्षमता हासिल कर देसी संस्करण तैयार किया है. इसके अतिरिक्त इराक में अमेरिकी सेना के खिलाफ इराकी सेना ने बड़े स्तर पर आइइडी का प्रयोग किया था. चेचेन्या, लेबनान, अफगानिस्तान, लिबिया, सीरिया व संयुक्त राज्य अमेरिका में भी इसका इस्तेमाल होता रहा है. 1970 के दशक में ब्रिटिश सेना ने ऊंचाई वाले स्थानों पर जाने के दौरान एलक्ष्डी का इस्तेमाल बड़े स्तर पर शुरू किया था.

* क्या है आइइडी

इंप्रोवाइज एक्सप्लोसिव डिवाइस अर्थात तात्कालिक विस्फोटक तकनीक एक विनाशकारी रसायनों से तैयार होता है. इसे तात्कालिक रूप से गड्ढे में रख कर विस्फोट कराया जा सकता है. यह एक धातु डिस्क की तरह होता है. इसमें तांबे का इस्तेमाल होता है. इसे गाड़ी के नीचे,पानी वाले जहाज या कहीं भी आसानी से लगाया जा सकता है. इसकी विस्फोटक क्षमता इसमें प्रयोग धातुओं से निर्धारित होती है.

– यहां हुआ इस्तेमाल

* 13 जुलाई, 2011 को जम्मू कश्मीर में आतंकी घटना में तीन आइइडी विस्फोट कराये गये थे. मुंबई में बम विस्फोटों में भी आइइडी का इस्तेमाल आतंकियों ने किया था.

* 21 फरवरी, 2013 को हैदराबाद में दो आइइडी का इस्तेमाल हुआ था.

* 17 अप्रैल, 2013 को बेंगलुरु के मल्लेश्वरम में आइइडी का इस्तेमाल हुआ था. इसमें16 लोग घायल थे.

– लोगों को मिलेगी पूरी सुरक्षा : यादव

लैंडमाइंस विस्फोट की घटना में सात लोगों की मौत के बाद पिसाय गांव के लोगों ने पुलिस पिकेट की मांग रखी थी. उनकी मांग पर सरकार ने पिसाय गांव में पुलिस पिकेट खोल दिया है. शनिवार से यह पुलिस पिकेट राजकीय मध्य विद्यालय में काम करने लगा है.

इस पिकेट पर सहायक अवर निरीक्षक राजेंद्र प्रसाद यादव, सीआइएजी के 15 कमांडो व 10 सैप के जवान तैनात हैं. इस संबंध में राजेंद्र प्रसाद यादव ने कहा कि हम यहां नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए आये हैं. हम किसी भी परिस्थिति का सामना करने में सक्षम है. इस गांव के लोगों को पूरी सुरक्षा मिलेगी.

* सीबीआइ जांच की मांग

भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सीपी ठाकुर शनिवार को पिसाय गांव पहुंच कर सभी मृतक के परिजनों से मिले और घटना की निंदा की. ठाकुर ने कहा कि यह घटना अमानवीय है. इसमें बिहार सरकार की लापरवाही सामने आयी है. इसकी जांच सीबीआइ से करायी जानी चाहिए. उन्होंने सरकार से प्रत्येक मृतकों के परिजनों को 10 लाख रुपये, एक परिजन को सरकारी नौकरी व मृतक के बच्चों को शिक्षा देने की व्यवस्था करने की भी मांग की. विक्रम के विधायक अनिल शर्मा भी घटना की निंदा करते हुए इसकी जांच सीबीआइ से कराने की मांग की.

* बना मृत्यु प्रमाणपत्र

ओबरा के बीडीओ देवेंद्र कुमार प्रभाकर ने शनिवार को पिसाय गांव पहुंच कर विस्फोट में मारे गये सभी सात लोगों के घर-घर जाकर उनका मृत्यु प्रमाणपत्र बनाया. उनके साथ हल्का कर्मचारी विजय व पंचायत सेवक योगेंद्र सिंह भी मौजूद थे.

* थाने का निरीक्षण

आइजी सुशील एम खोपड़े, आइजी ऑपरेशन अमित कुमार, मगध प्रक्षेत्र डीआइजी बच्चु सिंह मीणा व औरंगाबाद एसपी उपेंद्र कुमार शर्मा ने शनिवार को रफीगंज थाने का निरीक्षण किया. इस दौरान थानाध्यक्ष को कई आवश्यक निर्देश भी दिये. साथ ही नक्सलियों के विरुद्ध लगातार छापेमारी अभियान जारी रखने, क्षेत्र में लगातार गश्ती करने की बातें कही.

* एक साथ जलीं सात चिताएं

विस्फोट में मारे गये सात लोगों का अंतिम संस्कार शुक्रवार देर रात पिसाय के बूढ़ी नाला श्मशान घाट पर किया गया. सभी शवों को एक साथ मुखाग्नि दी गयी. शवों को मुखाग्नि देनेवाले सात लोगों में पांच पुत्र, एक पिता और एक भतीजा शामिल थे. मुखाग्नि के वक्त गांव से महिलाओं के रोने की आवाज श्मशान घाट तक सुनाई दे रही थी और श्मशानघाट पर परिजनों की चीत्कार गांव तक सुनाई पड़ रही थी. इस दौरान सभी की आंखें नम थी.

मौके पर लोगों के मुंह से बार-बार यही निकल रहा था कि चिता की आग तब तक नहीं बुङोगी, जब तक दोषियों को मौत की सजा नहीं मिलेगी. सूर्योदय के बाद लोग अंतिम संस्कार कर अपने घर लौटे. लोगों के भीतर जो आक्रोश था, वह श्मशान घाट से लेकर पिसाय गांव तक दिखाई दे रहा था. श्मशान घाट पर प्रशासनिक पदाधिकारी के रूप में ओबरा प्रखंड के सीओ अनिल कुमार चौधरी पहुंचे थे.

* माओवादी ने ली जिम्मेवारी

पिसाय में बारूदी सुरंग विस्फोट करा कर जिला पर्षद सदस्य सुधा देवी के पति सुशील कुमार पांडेय समेत सात लोगों के मारे जाने की घटना के तीसरे दिन शनिवार को भाकपा माओवादी ने इसकी जिम्मेवारी ली. भाकपा माओवादी की मगध जोनल कमेटी के प्रवक्ता नटवर ने दूरभाष पर इसकी जिम्मेवारी लेते हुए कहा है कि प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से इस कार्रवाई में शामिल क्रांतिकारी जनता का वह अभिनंदन करते हैं.

नटवर ने कहा है कि सुशील कुमार पांडेय रणवीर सेना के कमांडर थे व उनकी कई घटनाओं में संलिप्तता रही है. नटवर ने कहा है कि वर्ग संघर्ष की लड़ाई को दबाने के लिए खानगी सेना (रणवीर सेना) का निर्माण किया गया था. सेना ने कई जगहों पर शोषित व पीड़ित जनता का जनसंहार किया था. इनमें 1997 में लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार में 59 लोगों व वर्ष 2000 के जून महीने में मियांपुर नरसंहार में 33 लोगों को मौत के घाट उतारे जाने के बाद अन्य कई छोटी-बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया गया.

इन घटनाओं में सुशील कुमार पांडेय की भी संलिप्तता प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से रही. नटवर का कहना है कि वर्ष 2001 में औरंगाबाद की चंदा पंचायत की मुखिया चिंता देवी की जीत के जश्न के समय ही हत्या कर दी गयी थी. फिर उसके पति की हत्या भी 2006 में कर दी गयी. धमनी पंचायत के मुखिया धर्मेद्र उर्फ छोटू मुखिया की हत्या 28 मार्च, 2012 को, जिनेरिया के मुखिया सुदेश की हत्या चार अक्तूबर 2012, खुदवां पंचायत की मुखिया पंचहारा गांव के रहनेवाले राजकुमार की हत्या व कंडसारा के मुखिया तारिक खां की हत्या में सुशील पांडेय का हाथ था.

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