पटना: सूबे में डॉक्टरों की अब स्थायी नियुक्ति होगी. एमबीबीएस के बाद ही बिहार लोक सेवा आयोग के माध्यम से नियुक्ति हो सकेगी. इसके लिए लिखित परीक्षा नहीं देनी होगी. केवल साक्षात्कार देना होगा. ग्रामीण क्षेत्र में सेवा की शर्त को भी समाप्त कर दिया गया है. संविदा पर नियुक्ति व कम सुविधाओं के कारण डॉक्टरों की सरकारी सेवा के प्रति कम रुझान को देखते हुए सरकार ने नियुक्ति प्रक्रिया को सरल कर दिया है. स्वास्थ्य सेवा संवर्ग नियमावली 1984 व 2008 में परिवर्तन किया गया है. नियमावली बन गयी है. अब कैबिनेट से इसकी स्वीकृति ली जायेगी.
फिलहाल क्या है स्थिति: बिहार में कार्यरत डॉक्टर सुविधाओं के मामले में दूसरे राज्यों से पीछे हैं. उन्हें न तो नॉन प्रैक्टिसिंग एलाउंस (एनपीए) मिलता है और न ही ग्रामीण सेवा भत्ता. दो स्लैब में उनका वेतनमान निर्धारित है. स्थायी नियुक्ति में कई बाधाएं हैं, जबकि दूसरे राज्यों में ऐसा नहीं है. नतीजा है कि सरकारी अस्पतालों में स्वीकृत पदों के विरुद्ध आधे से अधिक पद खाली हैं.
अन्य राज्यों में बेहतर सुविधाएं
गुजरात में हर सप्ताह चिकित्सकों की नियुक्ति होती है. तीन वर्षो की सेवा के बाद नौकरी स्थायी कर दी जाती है. आवास, पानी, बिजली व बच्चों की शिक्षा के लिए गुजरात में बिहार से बेहतर व्यवस्था है.
हरियाणा व दिल्ली जैसे राज्य अपने चिकित्सकों को एनपीए का लाभ देते हैं. इससे उनके वेतनमान में 20-25 फीसदी का लाभ मिलता है. पंजाब, कश्मीर व उत्तराखंड सरकार ग्रामीण क्षेत्र में काम करनेवाले अपने चिकित्सकों को ग्रामीण सेवा भत्ता देती है. इससे भी उनके वेतनमान में 20-25 फीसदी का लाभ मिलता है.