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कीमत चुकाता बिहार!

– हरिवंश – बाढ़, बिहार के लिए अभिशाप है. 50 वर्ष पहले होश संभाला, तबसे गांव में सुना. स्कूल जाने लगा, तो पढ़ा चीन के लिए ‘ह्वांगहो’ नदी अभिशाप है. विकराल बाढ़ के कारण आज चीन दुनिया की महाशक्ति बन गया, अपनी सभी बाधक जंजीरों, प्राकृतिक अभिशाप की बेड़ियों को अपने कर्म, संकल्प, प्रतिबद्ध सोच […]

– हरिवंश –
बाढ़, बिहार के लिए अभिशाप है. 50 वर्ष पहले होश संभाला, तबसे गांव में सुना. स्कूल जाने लगा, तो पढ़ा चीन के लिए ‘ह्वांगहो’ नदी अभिशाप है. विकराल बाढ़ के कारण आज चीन दुनिया की महाशक्ति बन गया, अपनी सभी बाधक जंजीरों, प्राकृतिक अभिशाप की बेड़ियों को अपने कर्म, संकल्प, प्रतिबद्ध सोच के हथौड़े से तोड़ कर. पर, बिहार बाढ़ का वही पुराना अभिशाप झेल रहा है. 60 वर्षों में इस समस्या से मुक्ति के लिए बिहारी राजनीति ने क्या किया? भ्रष्ट अफसरों को गाली देना और जिस सरकार के कार्यकाल में बाढ़ आयी, उसे दोषी ठहरा कर खुद सत्ता पाने की हर कोशिश करना.
बाढ़ से स्वार्थ सधे, इसकी राजनीति, सत्ताधीश को खलनायक साबित करें और विपक्ष में हैं, तो बाढ़ की सीढ़ी चढ़ कर सत्ता के नजदीक पहुंचें . क्या यह राजनीति, बिहार को बाढ़ से मुक्ति दिलायेगी? गांव में ही कहावत सुनी थी. ‘थान हार जाएं, पर गज नहीं’. मामूली इश्यूज को हम विकराल बना देंगे, पर बड़े इश्यूज (सवाल), जिनसे बिहार का अस्तित्व जुड़ा है, उन पर मौन, निष्क्रिय रहना यह हमारी प्रवृत्ति है.
उधर, जनता का एटीट्यूड ? ‘कोउ नृप होइहिं, हमैं का का हानी’, का मानस. राजनीतिज्ञों-अफसरों के भरोसे अपनी किस्मत छोड़ कर, राजकाज से उदासीनता. या गंभीर सवालों के प्रति अनभिज्ञता-अज्ञानता? प्रकृति ने उर्वर धरती और नदियों का जाल देकर बिहार को हर सौगात दिया है, पर हम जनता की उदासीनता या सकारात्मक पहल का अभाव, बिहार की प्रगति में सबसे बड़ा रोड़ा है. हर चीज सरकार के भरोसे? सरकार ही माई-बाप? क्यों नहीं बिहार के वाजिब हक के लिए हम हर दल पर दबाव डालें?
बिना बिहारी बने, अपना वाजिब हक लिये, इस राज्य की मुक्ति नहीं? कोयला के भाड़ा समानीकरण (फ्रेट इक्वालाइजेशन) ने बिहार के विकास की रीढ़ तोड़ दी. देश के आजाद होते ही, केंद्र की नीतियों के कारण? पर, बिहार के राजनेताओं ने बुलंद स्वर में हक नहीं मांगा. इस तरह बिहार के साथ भेदभाव के असंख्य प्रकरण हैं, जो बिहार के नेताओं की भलमनसाहत, अज्ञानता, निजी स्वार्थ या आलाकमानों को खुश रखने की प्रवृत्ति की देन हैं. इनमें से 95 फीसदी चीजें कांग्रेस की देन हैं.
बिहार में आनेवाली विनाशकारी बाढ़ के पीछे भी बिहार की राजनीति की यही कमजोरी है. जब देश के दूसरे हिस्सों में नदियों पर उन राज्यों की खुशहाली के लिए बड़े प्रोजेक्ट बन रहे थे, तो बिहार में एक स्वर नहीं सुनाई दिया. पर, इसकी कीमत आज बिहार चुका रहा है?
कैसे? प्रभात खबर आपके सामने उन तथ्यों को ला रहा है, जिन्हें अब भी हल नहीं किया गया, तो बिहार खत्म हो जायेगा. यह भी केंद्र की देन है. बिहारी नेताओं की सदाशयता, चुप्पी या कुकर्म का फल है. जनता भी बाढ़ जैसे सवाल पर मूकदर्शक रह कर कीमत चुका रही है. बिहार में बाढ़ के पीछे अगर नेपाल भी एक वजह है, तो उसे भी केंद्र ही हल करेगा या निबटायेगा? पर, केंद्र ने गुजरे 60 वर्षों में क्या किया?
बिहार में इन्हीं दिनों बाढ़ का तांडव शुरू होता है. हम कई किस्तों में पुन: इस गंभीर सवाल पर बहस शुरू कर रहे हैं. मकसद है कि हर बिहारी अपनी समस्याओं की जड़ जान सके और कारण पहचाने. फिर पहल करे. अकर्म की पीड़ा से मुक्ति पाये.

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