संवाददाता, पंचदेवरी
चल उड़ जा रे पंछी अब ये गांव हुआ बेगाना, ये दर्द है, उन कामगारों का जो इस उम्मीद में गांव लौटे थे कि मनरेगा से उन्हें इतना लाभ तो जरूर मिल जायेगा कि उनकी रोजी रोटी चल जाये. अपना गांव घर छोड़ कर यह कामगार परदेश में कमा रहे थे. लेकिन मनरेगा के मोह में वहां से खींचे चले आये. आने के बाद विभाग की तरफ से उनका जॉब कार्ड तो बना दिया गया, लेकिन काम नहीं दिया गया. परिणाम स्वरूप एक बार फिर वह परदेश का रुख कर रहे हैं.
घर बैठे तो नहीं चलेगा परिवार
महंगाई से परिवार का बजट बिगड़ गया है. ऐसे में कामगारों का दर्द आसानी से समझा जा सकता है. मनरेगा में नियमित काम की आस लेकर घर आये थे, लेकिन जब सौ दिन भी काम नहीं रहा, तो कैसे रोजी रोटी चलेगी. यह चिंता कामगारों के साथ उनके परिवार वालों को भी है. बात राम मनोहर की हो या बुधन की. किसी को पांच तो किसी को 15 दिन का ही काम मिला. ऐसे में घर बैठ कर परिवार का खर्चा कैसे चलेगा. यह चिंता आज उन सभी परदेश से घर वापस लौटे कामगारों की है.
15108 लोगों का बना जॉब कार्ड
बेरोजगारों को गांव में ही काम मिले और पलायन रूके, इसके लिए शुरू हुई मनरेगा में अब तक पंचदेवरी प्रखंड में 15108 जॉब कार्ड बनाये गये हैं. आंकड़ों के मुताबिक अब तक 1537 लोगों को ही काम दिया गया है. परदेश छोड़ कर गांव आये लोगों ने आखिर क्यों फिर परदेश की राह पकड़ी. सरकार ने मनरेगा की उपलब्धियों को लेकर बोर्ड लगवाया हैं. मीडिया में भी चर्चा करायी, लेकिन काम सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गया. लिहाजा कामगार अब फिर घर छोड़ कर परदेश की राह पकड़ लिये हैं.