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राजद उबरेगा या बिखर जायेगा

।। मिथिलेश ।। पटना: चारा घोटाले के मामले में लालू प्रसाद को दोषी करार दिये जाने के बाद राजद की मुश्किलें बढ़ गयी हैं. कांग्रेस की अगुवाईवाले यूपीए के साझीदार रहे राजद के लोकसभा में चार सदस्य हैं. सीबीआइ की विशेष अदालत के फैसले से लालू प्रसाद की सांसदी भी समाप्त हो जायेगी और लोकसभा […]

।। मिथिलेश ।।

पटना: चारा घोटाले के मामले में लालू प्रसाद को दोषी करार दिये जाने के बाद राजद की मुश्किलें बढ़ गयी हैं. कांग्रेस की अगुवाईवाले यूपीए के साझीदार रहे राजद के लोकसभा में चार सदस्य हैं. सीबीआइ की विशेष अदालत के फैसले से लालू प्रसाद की सांसदी भी समाप्त हो जायेगी और लोकसभा में राजद के तीन सदस्य रह जायेंगे. ऐसे में कांग्रेस की नीतीश कुमार से बढ़ती नजदीकियां, नेता के बिना चुनाव और पार्टी विधायकों को बांधे रखने की चुनौती राजद के समक्ष आ खड़ी हुई है. पिछले चुनावों से पार्टी की ताकत कम होती आयी है.

लोकसभा की 40 सीटों में मात्र चार और विधानसभा की 243 सीटों में राजद के 22 सदस्य हैं. जदयू के भाजपा से अलग हो जाने के बाद चुनावी सर्वे भी दर्शा रहे थे कि 2014 के लोकसभा चुनाव में राजद की सीटें 10-12 तक आ जायेंगी. पर, दोषी ठहराये जाने के बाद राजनीतिक समीकरण बदल भी सकते हैं. हालांकि, राजद के थिंक टैंक कहे जानेवाले नेता जगदानंद सिंह कहते हैं-हम लीडर के बाहर आने का इंतजार करेंगे. पर, सूत्र बताते हैं कि लालू राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहेंगे.

संचालन के लिए वरिष्ठ नेताओं की संचालन समिति बनायी जायेगी, जिसमें राबड़ी देवी और बेटे के अलावा पार्टी के बड़े नेता भी शामिल होंगे. पार्टी का कोई भी फैसला संचालन समिति से ही होगा. सबकी निगाहें राबड़ी देवी और उनके बेटों की ओर हैं. नेताओं को उम्मीद है कि ताजा संकट से पार्टी के बेस वोट में बिखराव नहीं होगा. राजद और भी मजबूत होकर उभरेगा. 2009 के लोकसभा चुनाव में सीटों की संख्या के सवाल पर कांग्रेस के साथ समझौता नहीं हो पाया. लेकिन, जब झारखंड में कांग्रेस के प्रयास से नयी सरकार बनी उसमें राजद को भी शामिल किया गया. इस बार के चुनाव में कांग्रेस और राजद के साथ समझौते की उम्मीद बंध रही थी. लेकिन, जिस प्रकार से दागी नेताओं के संबंध में अध्यादेश लाने के फैसले का कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने विरोध किया है, इससे दिल्ली की राजनीति में लालू के अलग-थलग पड़ जाने का ही संकेत माना जा रहा है. कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव डॉ शकील अहमद के अनुसार 2009 के लोकसभा चुनाव से कांग्रेस और राजद की राह अलग-अलग रही है. वर्तमान यूपीए सरकार को राजद सांसद समर्थन करते आये हैं.

अब आगे उन पर निर्भर है कि उनका रूख क्या होगा. बिहार के चुनावी समीकरण में अब तक यादव और मुसलिम वोटर राजद के साथ माने जाते रहे हैं. भाजपा से अलग होने के बाद मुसलिम मतों पर जदयू की भी नजर है. पार्टी के मुसलिम फेस अब्दुल बारी सिद्दीकी मानते हैं कि दोषी करार होने के बाद भी राजद की सेहत पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा. मुसलिम मतदाता जानते हैं कि लालू प्रसाद को फंसाया गया है. रही बात यादव मतदाताओं की, तो इस बात के आसार नजर आ रहे कि यादव मतदाता और भी मजबूती के साथ राजद के पक्ष में गोलबंद होंगे. लालू प्रसाद को दोषी ठहराये जाने के बाद भाजपा को भरोसा है कि यादव मतदाता उनकी ओर आयेंगे. राज्य में करीब 13 प्रतिशत यादव मतदाता हैं. भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी के अनुसार, यादव समुदाय जदयू को अपना नंबर-1 दुश्मन मानता है. जदयू को परास्त करने के लिए यादव वोटर भाजपा के पक्ष में आयेंगे. लेकिन, राजद के प्रधान महासचिव रामकृपाल यादव का कहना है कि यादव मतदाता का ध्रुवीकरण पार्टी के पक्ष में होगा. राष्ट्रीय राजनीति में यदि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनते हैं, तो इसका श्रेय नीतीश कुमार को जायेगा. राजद का संकट यह होगा कि लालू के बिना मुसलिम और यादव मतदाताओं को वह अपने साथ किस प्रकार बांधे रख सकेगी. देखना यह है कि आनेवाले दिनों में बिहार की राजनीति किस करवट लेती है. बिहार में राजनीति के दो ध्रुव होंगे जदयू और भाजपा. या फिर लालू की ताकत बनी रह पायेगी, यह चुनाव परिणाम ही बतायेगा. फिलहाल ऐसा लगता है कि लालू प्रसाद और राजद के सामने संकट की घड़ी है.

झारखंड में भी बदलेगी सियासत
रांची: लालू प्रसाद का राजनीतिक भविष्य दावं पर है. लालू करिश्माई नेता रहे हैं. लालू प्रसाद राजनीति से आउट हुए, तो झारखंड में भी राजनीतिक फिजा बदलेगी. यूपीए के अंदर का गणित गड़बड़ा सकता है. अध्यादेश को वापस लेने के मुद्दे पर राजद-कांग्रेस के बीच दूरी बढ़ने का प्लॉट भी तैयार हो रहा है. कांग्रेस-राजद के बीच खटास बढ़ी, तो राज्य में हेमंत सोरेन सरकार पर भी संकट के बादल घिर सकते हैं. राजद के पांच विधायक सरकार को समर्थन दे रहे हैं.

राजद का कुनबा बिखर सकता हैं : चारा आने वाले समय में राजद का कुनबा बिखर सकता है. लालू प्रसाद की संगठन में दखल कम होगी, तो प्रदेश में राजद के नेताओं को रोकने-टोकने वाला भी नहीं होगा. राजद के कई विधायक पहले दूसरी पार्टियों को संपर्क में रहे थे. राज्य में हेमंत सोरेन सरकार का गठन कर लालू ने विधायकों को इधर-उधर जाने से रोकने में कामयाब रहे. केंद्र में यूपीए की तसवीर बदली, तो राज्य के विधायक आने वाले समय में इधर-उधर कर सकते हैं. राजद में चुनावी गणित गड़बड़ देख नेता दूसरे दलों में ठौर तलाश सकते हैं.

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