संजय निधि
भागलपुर:उसका संसार 10 गुना 12 के कमरे में सिमटा है. बाहर की दुनिया की कोई तसवीर उसके दिमाग में नहीं है. वह अपनी मां को देखती है. वह पुलिसवालों को देखती है. बस यही है उसकी दुनिया. होश संभालने के बाद इसमें रची बसी है उसकी जिंदगी. तितलियों के पीछे वह नहीं दौड़ सकती. खिलौने खरीदने की भी वह जिद नहीं कर सकती है. उसकी उम्र है महज साढ़े छह साल. लेकिन वह जेल में है. जी हां, छह वर्ष की नेहा बिना किसी जुर्म के जेल में है. नेहा की आंखों से बाल सुलभता है. एक आकुल उड़ान की चाह, कई जिज्ञासाएं हैं उसके पास. लेकिन नेहा का भविष्य, उसकी कल्पना इन जेल की दीवारों से मुक्त नहीं हो रही. नेहा पिछले छह साल से सेंट्रल जेल के महिला वार्ड में अपनी मां के साथ रह रही है.
बाहरी दुनिया से अनभिज्ञ और सामाजिक रिश्ते-नाते से दूर लगभग साढ़े छह वर्षीय नेहा अपने लिए रहनुमा ढूंढ रही है जो उसका भविष्य संवार सके. हत्या के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा भुगत रही नवगछिया अनुमंडल के तेतरी निवासी अन्नू चौधरी की बेटी नेहा जब सेंट्रल जेल पहुंची थी तो वह अपनी मां की गोद में थी. आज वह लगभग साढ़े छह साल की हो चुकी है. उसकी मां उसके भविष्य को लेकर चिंतित है. जेल प्रशासन भी उसका भविष्य संवारता देखना चाहता है, लेकिन नेहा से उसकी मां के अलावा सभी रिश्तेदारों ने नाता तोड़ लिया है. उसकी मां अन्नू बताती हैं, वह अपने पति की हत्या के आरोप में यहां कैद है. यह ऐसा कलंक है जो उसे नसीब ने दिया है और उसे ढोना उसकी मजबूरी बन गयी है. क्योंकि उसे बेगुनाह साबित करने वाला कोई नहीं है. हत्यारिन वह भी पति की, इसका तमगा मिलने के कारण ससुराल वालों के साथ-साथ मायके वालों ने भी साथ छोड़ दिया. वह केवल अपनी बेटी के लिए जी रही हैं, ताकि उसका भविष्य संवर सके. इसके लिए उसने जेल में रह कर कई तरह के हुनर भी सीख रही है, जो कि बाहर आने के बाद उसकी आजीविका बनेगी, लेकिन फिलहाल उसे अपनी बेटी की चिंता सताती रहती है. बेटी छह साल से अधिक उम्र की हो गयी है. जेल मेन्युअल के हिसाब से अब उसे यहां नहीं रखा जा सकता है. जेलर राकेश कुमार बताते हैं कि इससे पूर्व भी यहां इस तरह की एक बच्ची थी, जिसे गोद दिया गया था. नेहा के बारे में विभिन्न सामाजिक संस्थाओं से लगातार संपर्क कर लिखा जा रहा है, लेकिन फिलहाल कोई सामने नहीं आया है. उन्होंने बताया कि फिलहाल तो वह इंतजार ही कर रहे हैं. उम्मीद करते हैं कि जल्द ही कोई न कोई संस्था इस नेक कार्य के लिए आगे अवश्य आयेगी.
मुङो पुलिस बनना है. सेंट्रल जेल में अपनी मां के साथ करीब 14 बच्चे भी रहते हैं. हालांकि नेहा को छोड़ कर भी बच्चे पांच वर्ष के या उससे कम उम्र के हैं. फिलहाल यह अपनी मां के साथ रह सकते हैं. इन्हीं बच्चों में एक है लगभग पांच वर्षीय गणोश. गणोश की मां सिया देवी भी हत्या के आरोप में यहां कैद है. अपने एक हमउम्र साथी बच्चे के साथ महिला वार्ड में खेल रहा गणोश कहता है, वह यहां ‘ब्लॉक स्कूल’ में पढ़ता है. कक्षा स्पष्ट तौर पर वह नहीं बता पा रहा था. फोटोग्राफर के कैमरे को देख कर बाल उत्सुकतावश उसके पास पहुंच कर आश्चर्यभरी निगाहों से देखते हुए वह उसके बारे में बार-बार पूछ रहा था. बीच में कुछ सवाल पूछने पर वह चिढ़ भी जाता है. फोटोग्राफर द्वारा उसे कैमरा के संबंध में जानकारी देने व कैमरे से उसकी फोटो खींच कर दिखाने के बाद ही वह शांत हुआ और पूछे गये सवाल का जवाब देने लगता है. बड़े होकर क्या बनोगे, सवाल समाप्त होने से पूर्व ही गणोश व उसका साथी स्पष्ट और जोर देकर वही जवाब देता है, जिसकी अपेक्षा थी, उसे तो पुलिस ही बनना है. ऐसा क्यों, क्योंकि यहां पुलिस के छोड़ कर कोई भी आदमी बाहर नहीं जा सकता है. जेल की चहारदीवारी में आंख खोलने वाले अधिकांश बच्चों से शायद इसी जवाब की उम्मीद की जा सकती है.
कौन देगा आसरा
-सेंट्रल जेल में मां के साथ छह साल से ‘सजा’ काट रही है नेहा
-ननिहाल व ददिहर वाले भी अपनाने के लिए तैयार नहीं
-जेल प्रशासन के अनुरोध के बावजूद बच्ची को गोद लेने वाला कोई नहीं