पटना: नक्सली हथियार छोड़ कर विकास कार्यो में भागीदार बनने चाहते हैं, वहीं उनके पुनर्वास का काम ठप है. भगवान भरोसे उन्हें जीवनयापन करने को छोड़ दिया गया है. राज्य सरकार द्वारा चरमपंथी उग्रवादी संगठनों में सक्रिय तत्वों को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए पुनर्वास योजना बनायी गयी है, जिसका क्रियान्वयन सही तरीके से नहीं हो पा रहा है. वर्ष 2001 से 2013 के बीच 243 उग्रवादियों ने राज्य सरकार के समक्ष आत्मसमर्पण किया, जिनमें 34 को पुनर्वास के लिए अयोग्य पाया गया.
पौधारोपण कर रहे चेरो
प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी का एरिया कमांडर रहे राजेंद्र उरांव (निवासी यदुनाथपुर, थाना नौहट्टा, रोहतास) इन दिनों एक सड़क निर्माण कंपनी ‘आइसोलेट’ में सुरक्षा गार्ड का काम कर रहे हैं. पहले वे हथियारों के बल पर सरकार के विरुद्ध लड़ाई लड़ रहे थे. वहीं, नौहट्टा थाने के सुअरमनवा गांव निवासी उपेंद्र चेरो इन दिनों वन विभाग के पौधारोपण कार्यक्रम से जुड़ कर पर्यावरण को बेहतर बनाने में जुटे हैं. नक्सली संगठन में कभी काफी सक्रिय रहे शिवसागर थाने के बड्डी गांव निवासी संजीव भी सड़क निर्माण कंपनी में सुरक्षा गार्ड हैं. इन सभी ने नौ सितंबर, 2011 को तत्कालीन रोहतास पुलिस अधीक्षक मनु महाराज के समक्ष आत्मसमर्पण किया था. तब मनु महाराज के प्रयास से इन्हें निजी निर्माण कंपनियों में सुरक्षा गार्ड की नौकरी मिली थी. जो खेती करना चाहते थे, वे खेती करने लगे.
ख्वाब दिखाते हैं बड़े, पर नहीं होता अमल
रोहतास के कुरियरी गांव निवासी उदित उरांव को आत्मसमर्पण करने के बाद राज्य सरकार द्वारा घोषित पुनर्वास पैकेज का पूरा लाभ अब तक नहीं मिल पाया है. 28 सितंबर, 2012 को उसने डेहरी स्थित पुलिस अधीक्षक कार्यालय में तत्कालीन एसपी, रोहतास के समक्ष आत्मसमर्पण किया था. आत्मसमर्पण करने के बाद उन्हें आर्थिक व राज्य सरकार की योजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिल पाया है. आत्मसमर्पण करनेवाले उग्रवादियों का मानना है कि सरकार सिर्फ सब्जबाग दिखाती है, योजनाओं को अमल में नहीं लाया जाता.