पटना सिटी: कैसे आकाश में सुराख नहीं हो सकता.. एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों. कवि दुष्यंत की इस पंक्ति को एक अखबार बेचनेवाले ने सिद्ध कर दिया. जी हां, खाजेकलां थाना के गुरहट्टा स्थित अशोक चक्र गली में रहनेवाले अनिल कश्यप ने दिन- रात की मेहनत कर अपने बेटे को इंजीनियर बनाया, जो आज जापान में अपने पिता ही नहीं, बल्कि देश का मान बढ़ा रहा है.
वहीं, इनकी बेटी एसबीआइ में पीओ है. श्री कश्यप के सिर से बचपन में ही पिता का हाथ उठ गया था. जीवन के स्याह अंधेरों से संघर्ष करते हुए श्री कश्यप ने अपने बच्चों की जिंदगी में उजाला भर दिया. बख्तियारपुर के रबाइस गांव के मूल निवासी अनिल कश्यप बताते हैं कि पिता स्वर्गीय अवध किशोर लाल की मौत उस समय हो गयी, जब उनकी उम्र महज तीन वर्ष रही होगी. गांव में रोजी रोटी संकट होने पर मां किरण देवी नैहर खाजेकलां थाना के गुरहट्टा मुहल्ला में आ गयी. यहीं पर किराये के मकान में मजदूरी कर बड़े भाई निरंजन प्रसाद व बहन के साथ उनकी परवरिश की. वे बताते हैं कि 1972 में अखबार बांटने का काम शुरू किया. उस समय अखबार की कीमत दस पैसे थी, तब ग्राहकों की संख्या 30 थी, शहर में अखबार बांटनेवाले महज चार लोग थे, उन चारों में मनु लाल, मोती लाल वर्णवाल व राजकुमार लाल गुप्ता शामिल थे.
अनिल बताते हैं कि ग्राहकों को पहले अखबार आठ बजे आने के बाद वितरित होता था, वह महेंद्रू घाट पर रात गुजार सुबह चार बजे वहां से अखबार लेकर आते और पांच से छह बजे के बीच ग्राहकों को अखबार देते थे. स्थिति यह हुई की सुबह अखबार मिलने से ग्राहकों की संख्या बढ़ती गयी. अभी ग्राहकों की संख्या 500 है. अनिल कहते हैं कि जब तक सांस है, तब तक अखबार बांटते रहेंगे.
बेटी पीओ
अनिल के मेहनत व संघर्ष का परिणाम है कि बड़ा बेटा अभिषेक कश्यप एयरफोर्स में सूरतगढ़, राजस्थान में कार्यरत है. मझंला बेटा अभिकेत कश्यप बीटेक की पढ़ाई अर्णाकुलम से करने के बाद जापान की ओसिमा कंपनी में शिप (पानी जहाज) के निर्माण का डिजाइन बनाने का काम करता है. बेटी आरतिका कश्यप पीओ के पद पर भारतीय स्टेट बैंक में मध्यप्रदेश स्थित दमोह में कार्यरत है. छोटा भोपाल के एलएन सिटी में बीटेक की पढ़ाई कर रहा है.
पत्नी का संघर्ष लाया रंग
वर्ष 1982 में पत्नी किरण कश्यप के साथ शादी हुई. अखबार बेचने से कम पैसा मिलता था, तब चौक पर स्थित स्वर्ण आभूषण की दुकान में अखबार बांटने के बाद काम करता था, हालांकि बच्चों को बेहतर तालीम मिले, इसके लिए पत्नी सुबह बच्चों को स्कूल पहुंचाती थी, वह दोपहर में बच्चों को घर लाते, फिर ट्यूशन पढ़ाने के लिए पहुंचाते थे. ऐसे में आभूषण दुकान में काम छोड़ना पड़ा. फिर खाजेकलां पानी टकी के पास पत्र-पत्रिका की दुकान खोली. कुछ समय बाद वह भी बंद कर दिया.