मुजफ्फरपुर: सितंबर से ही यहां प्रवासी पक्षियों का आना शुरू हो जाता है. इनमें साइबेरियन पक्षी भी होते हैं. सबसे पहले आने वाले पक्षियों में खंजन (वागटेल्स) अबाबील (स्वालोज) सहित कई पक्षी शामिल रहते हैं. नवंबर से जल-पक्षियों बत्तख व चहा समूह के पक्षी बड़ी संख्या में बिहार में दिखायी देने लगते हैं जो मार्च तक रहते हैं. इसमें से कुछ पक्षी जैसे रेड ब्रेस्टेड लाईकैचर, ब्लैक रेड स्टार्ट जंगलों में भी रहते हैं.
इसके अलावा बाज व अन्य शिकारी पक्षी व क्रेन एवं स्टोर्क जैसे बड़े पक्षी भी आते हैं. इनकी संख्या बढ़ाने और सुरक्षा को लेकर वन विभाग अभी से सजग है. पिछले साल जैसी कोई घटना फिर नहीं हो इसके लिए योजना बनायी जा रही है.
शिकारियों के निशाने पर पक्षी
पिछले साल सरैया स्थित बाजार प्रवासियों पक्षियों को बेचते हुए देखा गया था. वन विभाग ने कु छ को दबोचा भी था. उससे सबक लेते हुए विभाग अभी से शिकारियों पर नजर रख रहा है. इसकी तैयारी में में जुटा है. वन संरक्षक प्रभात कुमार गुप्ता ने बताया, पक्षी प्रवास में परिवर्तन (हैबिटेट चेंज), वनों की कटाई, शहरीकरण, जीवनशैली में परिवर्तन, जलाशयों की भराई के साथ जलवायु परिवर्तन पक्षियों के लिये खतरनाक बन गया है. बिहार में छह पक्षी अभयारण्य हैं, उनकी स्थिति खराब है. फतुहा, बेगूसराय, कुशेश्वरस्थान, बरेला झील में पक्षियों का उतरना होता है.
2100 प्रजातियांगुलाबी ठंड के शुरू में पक्षी उतरते हैं. इनके निवास स्थान (प्रजनन स्थल) पर प्रकृति का प्रकोप बढ़ता है, झीलें व अन्य जलाशय बर्फ में तब्दील हो जाते हैं और भोजन की कमी हो जाती है. तब ये पक्षी गर्म इलाकों को बसेरा बना लेते हैं. 1200 से ज्यादा प्रजातियों व उप प्रजातियों के 2100 प्रकार के पक्षी आते हैं. इनमें करीब 350 प्रजातियां प्रवासी है. पिछले साल 300 से ज्यादा प्रजातियों की सूची तैयार की गयी थी. 35 से 40 प्रतिशत प्रजातियां प्रवासी पक्षियों की हैं.