पटना: लोकसभा चुनाव के पहले राजनीतिक दलों को बड़ा झटका लग सकता है. टिकट कटने आशंका या मिलने की आस में दर्जन भर से अधिक नेता दूसरे दल की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं. ऐसे लोगों में संगठनात्मक पदों पर काबिज नेता हैं, तो कुछ विधायक व सांसद भी. जदयू ने इस खतरे को भांप कर पहले ही तीन सांसदों के निलंबन को वापस ले लिया है. भाजपा इस खतरे से अपने को बाहर मान रही है, लेकिन हाल में कुछ विधायकों व सांसदों के तेवर से पार्टी सकते में है. दल के भीतर दूसरे नेताओं पर भी नजर रखी जा रही है. राजद के चार सांसद हैं. इस मामले में वह बेफिक्र है, पर विधायकों को लेकर दूसरे दलों की पैनी नजर बनी हुई है.
भाजपा बदल सकती है सीट
कटिहार के सांसद निखिल चौधरी को भाजपा इस बार विश्रम देने के मूड में है. वे 80 साल के हो गये हैं. कटिहार से भाजपा इस बार पूर्णिया के सांसद पप्पू सिंह को मैदान में उतारने की सोच रही है. यदि पप्पू सिंह कटिहार से चुनाव लड़े, तो वहां से कसबा के पूर्व विधायक प्रदीप दास को पार्टी अपना प्रत्याशी बना सकती है. अररिया सीट से भी भाजपा अपना प्रत्याशी बदल सकती है.
फिलहाल वहां से प्रदीप सिंह सांसद हैं. भाजपा में उन्हें सुपौल से चुनाव लड़ाने पर मंथन हो रहा है. अररिया सीट से लक्ष्मी मेहता या डॉ राजेंद्र गुप्ता को भाजपा मैदान में उतार सकती है. लक्ष्मी मेहता ने फणीश्वरनाथ रेणु के पुत्र के लिए अपनी सीटिंग सीट का त्याग किया था. डॉ राजेंद्र गुप्ता को विधान परिषद में रीपिट न करने का भी पार्टी को मलाल है.
इस बहाने पार्टी दोनों की निष्ठा का सम्मान करेगी. नवादा के सांसद भोला सिंह को भाजपा इस बार बेगूसराय से लड़ाने की सोच रही है. यदि भाजपा ने अपनी योजना को अमलीजामा पहनाया, तो नवादा से पूर्व मंत्री गिरिराज सिंह, विधायक अनिल सिंह या रेणु कुशवाहा (मंत्री नहीं) चुनाव लड़ सकती हैं. सासाराम और बक्सर से भी भाजपा अपना प्रत्याशी बदल सकती है. दोनों सीटों से पार्टी के दिग्गज प्रत्याशी रहे हैं. लालमुनी चौबे आज भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सबसे प्रिय नेताओं में शामिल हैं, जबकि सासाराम से प्रत्याशी रहे मुनिलाल भी दमदार नेताओं में शामिल हैं. पिछली बार दोनों सीटें भाजपा हार गयी थी. बक्सर से पूर्व मंत्री अश्विनी चौबे, जबकि सासाराम से मुनिलाल के पुत्र शिवेश राम को लड़ाया जा सकता है.