पटना: ‘भगिहे रे चितकबरा अएलो’. सहरसा में सैप जवानों को देखते ही अपराधी भागते हुए चिल्लाते थे. वर्ष 2006 के अप्रैल-मई में पंचायत चुनाव का वक्त था. सहरसा के तत्कालीन एसपी जावेद अख्तर ने सैप जवानों से कहा था, ‘स्थानीय भाषा का प्रयोग न करें. अपराधी आपसे और दूर भागेंगे.’ लेकिन, सैप जवानों की हनक धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है. अब, तो पुलिस मुख्यालय के आलाधिकारी भी स्वीकारते हैं कि सैप जवानों की जरूरत नहीं है. इनकी जगह नियुक्त होनेवाले नये पुलिसकर्मियों को तैनात किया जायेगा. इधर, सैप जवान मनोज कुमार पांडे कहते हैं, भले ही सरकार हमें हटा दे, लेकिन आरोप लगा कर नहीं, सम्मानपूर्वक विदा करे. जो जवान गलती करते हैं, उन्हें जरूर हटा दिया जाये.
दूसरे राज्यों ने बिहार की पहल को अपनाया : झारखंड व ओड़िशा सहित दूसरे राज्यों ने बिहार में सेवानिवृत्त फौजियों को पुलिस बल में शामिल कर संगठित अपराध को नियंत्रित करने व नक्सली वारदातों पर लगाम लगाने की दिशा में पहल की थी. इन राज्यों में सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर को सैप की कमान सौंपी गयी है. बिहार में वर्ष 2006 में 1900 सैप जवानों की नियुक्ति संविदा के आधार पर एक वर्ष के लिए की गयी थी, तब से उनकी संविदा को प्रति वर्ष आगे बढ़ाया जाता रहा. 2010 में अंतिम रूप से सैप में बहाली की गयी. सैप में प्रारंभ में दूसरे राज्यों के सेवानिवृत्त फौजियों ने भी शामिल होने में रुचि दिखायी, लेकिन धीरे-धीरे उनका सम्मोहन टूटने लगा.
एसटीएफ को नक्सल क्षेत्रों में लगाया जायेगा : स्पेशल टास्क फोर्स को नक्सल क्षेत्रों में सीआरपीएफ के साथ तैनात किया जायेगा. इसके लिए एसटीएफ की चीता इकाई को दोगुना करने का प्रस्ताव है. 25 अतिरिक्त चीता कंपनियां तैयार की जानी हैं, जिनमें नवनियुक्त पुलिसकर्मियों को शामिल किया जायेगा. एसटीएफ के विशेष प्रशिक्षण के लिए वैशाली में ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना की जा रही है. इसके लिए भूमि का चयन व भवन निर्माण की तैयारी पूरी कर ली गयी है.