पटना: विधानमंडल का मॉनसून सत्र जदयू व भाजपा के आपसी टकराव का केंद्र बिंदु बना रहा. छह दिनों के इस संक्षिप्त सत्र के तीन दिन भोजनावकाश के पहले जनहित के सवालों के लिए निर्धारित 360 मिनटों में महज 77 मिनट ही सदन चला. आरंभ के दो घंटे प्रश्नोत्तर, ध्यानाकर्षण व शून्यकाल के माध्यम से जनहित के मामले उठाये जाते हैं. लेकिन, यह समय हंगामे की भेंट चढ़ गया. उच्च सदन में भी यही स्थिति बनी रही. जदयू व भाजपा के सदस्यों ने जम कर एक-दूसरे पर शब्दों के तीरे छोड़े.
सदन के भीतर और बाहर दोनों जगहों पर टकराव का नजारा दिखता रहा. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा को पुरानी स्थिति में ला देने की बात कही. हिट एंड रन वाली पार्टी बताया और सीट एंड डिबेट की भागीदार बनने की नसीहत दी. इसके जवाब में भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी व नंदकिशोर यादव ने कहा कि उनकी पार्टी कागजी शेरों से नहीं डरती. सत्र की खास बात यह रही कि आठ साल में पहली बार सरकार को कार्यस्थगन प्रस्ताव का सामना करना पड़ा. संख्या बल में भाजपा के मुकाबले कमजोर होने के बाद भी राजद ने विधानसभा में बाढ़ और सूखा और विधि-व्यवस्था की स्थिति पर विशेष वाद-विवाद का प्रस्ताव दिया. इस पर सरकार ने जवाब दिये.
सत्र के दौरान भाजपा-जदयू के बीच तलवारें खिंची रहीं. जुबानी जंग के बीच भाजपा को अपने एक प्रवक्ता को पद से हटाना पड़ा. बाद में उस नेता ने पार्टी की सदस्यता त्याग दी. इसके अगले दिन भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा की निजी राय को लेकर बवाल मचा. सदन में पांचवें दिन भी हंगामे की स्थिति बनी रही. दोपहर बाद सरकार की अनुदान मांग पर चर्चा हुई. आखिरी दिन दोनों सदनों में कार्यवाही हुई. लेकिन, विधानसभा में इस दौरान भी हंगामा हुआ.