पटना : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देश में निर्धारित गरीबी के पैमाने को गरीबों के साथ मजाक बताते हुए आज कहा कि प्रतिदिन की आमदनी के आधार पर गरीबी की सीमा तय नहीं हो. जरुरत तो यह है कि लोगों की पोषणयुक्त भोजन के साथ जीवन की बुनियादी जरुरतें पूरी हों तथा व्यक्ति सम्मान के साथ जी सके. जिसको यह नसीब नहीं उन सभी को गरीबी रेखा से नीचे माना जाना चाहिए.नीतीश ने यहां आज संवाददताओं से बात करते हुए कहा कि गरीबी का जो पैमाना बताया जा रहा उससे हम सहमत नहीं हैं. यह गरीबी को कमतर आंके जाने जैसी बात है. उन्होंने कहा कि गरीबी को मांपने का क्या तरीका और आधार होना चाहिए इसको लेकर हम लोगों ने पटना में वर्ष 2008 में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया था और उससे निकले ‘पटना डिक्लरेशन’ को प्रधानमंत्री को भेजा गया था.
नीतीश ने कहा कि गरीबी को कुछ कैलोरी या प्रतिदिन की आमदनी के आधार पर नहीं तय किया जा सकता बल्कि पोषणयुक्त भोजन के साथ जीवन की बुनियादी जरुरतें पूरी हो और कोई भी व्यक्ति सम्मानजनक के साथ जी सके, जिसको यह नसीब नहीं उन सभी को गरीबी रेखा से नीचे माना जाना चाहिए. नीतीश कुमार ने केंद्र पर बिहार में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों की संख्या को कम आंके जाने का आरोप लगाते हुए कहा कि गरीबी को एक गंभीर मसला बताया और कहा कि इस पर सभी को गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए और जिस समावेशी विकास की हम बात करते हैं, ऐसे में विकास का लाभ जब तक हर व्यक्ति तक नहीं पहुंचेगा तब तक उसका क्या मतलब रह जाता है.
कांग्रेस नेता रशीद मसूद के उस कथन पर कि दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके में लोग पांच रुपये में खाना खा सकते हैं और राजबब्बर के उस बयान कि मुंबई में एक व्यक्ति 12 रुपये में भरपेट भोजन कर सकता है इसके बारे में नीतीश ने कहा कि गरीबी का मतलब दरिद्रता नहीं होनी चाहिए.उन्होंने इसे गरीबी के साथ भद्दा मजाक बताते हुए कहा कि दिल्ली के रकाबगंज स्थित गुरुद्वारा सहित अन्य गुरुद्वारों में जारी लंगरों में मुफ्त भोजन मिलता है. इसका यह मतलब नहीं देश का हर गरीब गुरुद्वारा के लंगर तक पहुंच जाएगा. इसका यह मतलब कतई नहीं लगाया जा सकता कि इस देश में मुफ्त में भोजन मिलता है.