पटना: आरा मिल खोलनेवालों को वन विभाग ने थोड़ी राहत दी है. फर्नीचर व जूता सोल निर्माण में इस्तेमाल होनेवाली लकड़ी चिराई के लिए अब कोई भी आरा मिल लगा सकता है. विभाग ने इस तरह की लकड़ी चिराई करनेवाली आरा मिलों को रजिस्ट्रेशन कराने की बाध्यता भी समाप्त कर दी है.
वन संरक्षण और वृक्षों की सुरक्षा के लिए केंद्रीय वन पर्यावरण विभाग ने आरा मिल खोलने पर 2002 से रोक लगा रखी है. मामला सुप्रीम कोर्ट में भी गया, पर वहां भी केंद्र सरकार के फैसले पर मुहर लग गयी. यही नहीं, सरकार ने आरा मिलों की संख्या और घटाने का आदेश जारी किया है. बिहार में आरा मिलों की संख्या 1909 करने का कोर्ट ने आदेश जारी किया है. यानी बिहार में 650 आरा मिलों की बंदी पर तलवार लटक रही है.
फैसले के खिलाफ रिट फाइल : फिलहाल इस फैसले के खिलाफ बिहार आरा मिल एसोसिएशन ने कोर्ट में रिट फाइल कर रखा है. फर्नीचर की लकड़ी और जूता सोल की लकड़ी चिरायी के लिए आरा मिलें खोलने की अनुमति मिलने से सूबे में छोटे स्तर पर आरा मिलें खोलनेवालों को थोड़ी राहत मिली है, हालांकि दरवाजे, खिड़की और कुरसी-टेबुल आदि के लिए लकड़ी चिरायी करने वाले आरा मिलों के ऑनरों को कोई राहत नहीं मिलेगी.
बिहार में वर्ष 2002 से आरा मिलों को नया लाइसेंस निर्गत करने पर रोक लगी हुई है. 2002 से 2450 आरा मिलें बिहार चल रही हैं. में थी. पुन: सुप्रीम कोर्ट ने आरा मिलों की संख्या घटाने का फैसला सुनाया है. इस फैसले के तहत बिहार में 650 आरा मिलें बंद हो जायेंगी. एसोसिएशन ने इस फैसले पर पुनर्विचार के लिए रिट फाइल किया है. यदि यही हाल रहा, तो बिहार की आरा मिलों से जुड़े दो लाख कर्मचारी व मजदूरों के सामने भुखमरी की नौबत आ जायेगी.’
राम दुलार शर्मा, अध्यक्ष बिहार आरा मिल एसोसिएशन