मुजफ्फरपुर: अमेरिकी तकनीक से जिले में गेहूं की खेती की जायेगी. इसके लिए औराई, गायघाट, बंदरा, कुढ़नी व मुशहरी पांच प्रखंडों का चयन किया गया है. खेती में सहयोग यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआइडी) वाशिंगटन व बिल गेट्स की संस्था बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन करेगा.
दोनों संस्थानों ने मिलकर इसकी शुरुआत कर दी है. किसानों की माली हालत सुधारने के लिए दोनों संस्थाओं ने इसे अभियान के रूप में लिया है. इसमें महिलाओं को प्राथमिकता दी जा रही है. पहले से गठित महिलाओं की समूहों पर दोनों संगठनों की नजर है. मैक्सिको की संस्था सीमिट (इंटरनेशनल मेज एंड ह्वीट इंप्रोवमेंट सेंटर) की भी इसमें सहयोग लिया जा रहा है.
बीज व बोआई के समय को बदलें
दोनों संगठनों की मदद से सीमिट ने सीरियल सिस्टम इनिसिएटिव फॉर साउथ एशिया (सीसा) नाम से प्रोजेक्ट शुरू किया है. इसके तहत इस साल गेहूं के किस्म एचडी 2967, एचडी 2733, एचडी 2824, पीबीडब्ल्यू 502 लगाने की सलाह किसानों को दी जा रही है. साथ ही परंपरागत खेती से अलग हट कर बोआई के बारे में बताया जा रहा है. संस्था के प्रतिनिधि इस काम में लगे हैं, ये किसानों को बता रहे हैं कि एक से पंद्रह नवंबर के बीच गेहूं की बोआइ करनी है. इस बार गेहूं की जिन किस्मों की खेती करने की सलाह किसानों को दी गयी है, वो सब लंबी अवधि वाली हैं.
किसान सखी का चुनाव
खेती में बदलाव से महिलाओं को जोड़ा जा रहा है. इसके लिए महिला समाख्या से समझौता किया गया है. इसी के जरिये किसान सखियों का चुनाव किया जायेगा. संस्था के प्रतिनिधियों के अलावा पूसा कृषि विवि व सरैया केवीके के वैज्ञानिक महिलाओं को गेहूं बोआई की जानकारी देंगे. बोआइ के बाद गेहूं की देखरेख पूसा स्थित बोरलॉग इंस्टीटय़ूट ऑफ साउथ एशिया का क्षेत्रीय केंद्र करेगा.
बेड प्लांटिंग से होगी खेती
गेहूं की खेती में जीरो टिलेज यानी बिना जुताई की गेहूं बोआई तकनीक बतायी जा रहा है. इसमें काफी कम खर्च आता है. पौधे काफी निकलते हैं. उत्पादन अधिक होता है. इसके साथ, मल्टी क्रॉप प्लांटर मशीन से क्यारी में गेहूं की खेती (बेड प्लांटिंग ह्वीट) खेती को प्रोत्साहन दिया जा रहा है. 30 सेंटीमीटर की दूरी पर बीज डालना है. दो क्यारियों के ऊपर से एकदम हल्की मिट्टी देना है. इन तरीके से खेती में कम बीज, कम सिंचाई, कम उर्वरक में खेती होगी. फिर, टिलरिंग यानी पौधे में कल्ले अधिक निकलेंगे. लागत कम व उत्पादन अधिक होगा.
जिस अनुपात में आबादी बढ़ रही. उसे बिना बेहतर तकनीकी के इस्तेमाल के दो जून की रोटी उपलब्ध नहीं करायी जा सकती है. संस्थाओं ने इसी उद्देश्य से ये काम शुरू किया है. इससे किसानों की आर्थिक हालत सुधरेगी.
डॉ पंकज कुमार, सीमिट (मुजफ्फरपुर, वैशाली,समस्तीपुर) प्रभारी