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बिहार:शहरों में ग्रामीण इलाकों से ज्यादा अंडरवेट बच्चे

स्पेशल सेल पटना:बिहार में जन्म के समय कम वजन के बच्चों के पैदा होने की तादाद सूबे को विकास की सबसे अगली कतार में खड़ा करने का इरादा रखनेवाले नीति निर्माताओं के माथे पर चिंता की लकीरें उकेर सकती है. बिहार में जन्म के समय औसतन 21.9 फीसदी बच्चों का वजन 2.5 किलो से कम […]

स्पेशल सेल

पटना:बिहार में जन्म के समय कम वजन के बच्चों के पैदा होने की तादाद सूबे को विकास की सबसे अगली कतार में खड़ा करने का इरादा रखनेवाले नीति निर्माताओं के माथे पर चिंता की लकीरें उकेर सकती है. बिहार में जन्म के समय औसतन 21.9 फीसदी बच्चों का वजन 2.5 किलो से कम रहता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जन्म के समय 2.5 किलो से कम वजनवाले बच्चे अंडरवेट की श्रेणी में आते हैं.

हैरानी कीबात यह है कि शहरी इलाकों में ग्रामीण इलाकों की तुलना में अंडरवेट बच्चों की संख्या ज्यादा है. यह चौंकाने वाला तथ्य एनुअल हेल्थ सैंपल सर्वे 2012-13 में सामने आया है. 2012-13 के सर्वे के अनुसार ग्रामीण इलाकों में 21.7 } और शहरी इलाकों में 23.2 } बच्चों का वजन जन्म के समय 2.5 किलो से कम था. सिर्फ इतना ही नहीं, राज्य के 10 जिले ऐसे हैं, जहां के शहरी इलाकों में अंडरवेट बच्चों की तादाद ग्रामीण इलाकों से ज्यादा थी. सीवान में तो शहरी इलाकों में 41.3} बच्चों का वजन जन्म के समय 2.5 किलो से कम थी, वहीं ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा 25.3} था. यह आंकड़ा उस धारणा को पलटती है कि शहर में रहनेवाले ज्यादा शिक्षित और समझदार होते हैं और स्वास्थ्य सुविधाओं तक उनकी पहुंच ग्रामीण इलाकों की तुलना में ज्यादा है.

इन जिलों में शहरी इलाकों के बच्चों कावजन ग्रामीण इलाकों के बच्चों से कम है

जिला—–ग्रामीण—–शहरी

औरंगाबाद—-19.6%—24.4%

भागलपुर—18.8%—20.2%

भोजपुर —18.0% —20.7%

बक्सर —17.3% —23.4%

दरभंगा — 23.3% — 27.9%

मुंगेर —19.1%— 19.8%

नालंदा —23.5%—25.2%

सहरसा —16.5%—29.5%

सीवान —25.3% —41.3%

वैशाली —16.2% —22.1%


उचित देखभाल से पैदा होते हैं स्वस्थ बच्चे

यह गलत धारणा है कि ग्रामीण इलाकों या गरीबों के घर कमजोर और शहरी इलाकों या अमीरों के घर तंदुरुस्त बच्चे पैदा होते हैं. जन्म लेनेवाले बच्चे की सेहत बहुत हद तक गर्भवती महिला की देखभाल पर निर्भर करता है. अगर ग्रामीण इलाकों में गर्भवती महिला को समय पर भरपूर भोजन और वहां जो दवाइयां उपलब्ध हैं, वे मिल जाती हैं, तो वह एक स्वस्थ्य बच्चे को जन्म देगी. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि शहरी जीवन की तुलना में ग्रामीण जीवन आज भी तनाव बहुत कम है. वहां गर्भवती को सिर्फ दाल का पानी और चावल का माड़ जूस से ज्यादा फायदा करेगा. शहरी इलाकों में भले ही गर्भवती महिलाओं को हर चीज उपलब्ध हों, लेकिन तनाव उनके खाने की पौष्टिकता को घटा देता है. बच्चे पर भी इसका खराब असर पड़ता है. शहरी वातावरण में गर्भवती की देखभाल भी अच्छी तरह नहीं हो पाती है. गांवों में अच्छी देखभाल, साधारण, लेकिन पौष्टिक खाना और चिंतामुक्त जीवन की वजह से बच्चे स्वस्थ पैदा हो रहे हैं.

-10 जिलों के शहरी इलाकों में ग्रामीण इलाकों से ज्यादा अंडरवेट बच्चे

-शिवहर में 43.9 % बच्चों का वजन जन्म के समय 2.5 किलो से कम था. जिले के ग्रामीण इलाकों में 44.2 % बच्चों का वजन जन्म के समय 2.5 किलो से कम था

-सीवान के शहरी इलाकों में 41.3 % बच्चों का वजन जन्म के समय 2.5 किलो से कम था

-खगड़िया के शहरी इलाकों में 8.1% और सीतामढ़ी के ग्रामीण इलाकों में 6.5 % बच्चों का वजन जन्म के समय 2.5 किलो से कम था

-सीतामढ़ी में 6.8 % और अररिया जिले में 9.8 % बच्चों का वजन जन्म के समय 2.5 किलो से कम था

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