पटना : पुत्र-पुत्रियों की लंबी उम्र की कामना के लिए किया जानेवाला जिउतिया व्रत 16 सितंबर को मनाया जायेगा. 15 सितंबर को नहाय -खाय के साथ व्रत की शुरुआत होगी. व्रती महिलाएं स्नान-ध्यान कर नोनी व सतपुतिया की बनी सब्जी, मडुआ की रोटी व पुआ खायेंगी. दूसरे दिन मंगलवार को निजर्ला उपवास के साथ महिलाएं व्रत करेंगी. आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी यानी 16 सितंबर को महिलाएं जिउतिया व्रत रखेंगी. व्रत के दौरान व्रती माताएं निजर्ला उपवास रहेंगी.
व्रती मताएं संध्या के समय पूजन कर सकेंगी. पूजन के दौरान कुश के बने लव-कुश का पूजन कर भगवान जिउतवाहन की कथा सुनी जाती है. व्रत के दूसरे दिन बुधवार को 17 सितंबर की सुबह पारण के बाद चौबीस घंटे का यह निजर्ला व्रत संपन्न होगा.दिन भर व्रत के बाद शाम में जिउतवाहन की कथा सुनी जाती है. इस व्रत को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं.
इनमें सियार, चिल्हो व राजा जिउत वाहन की कथा प्रचलित है. जिउतवाहन नामक एक राजा हुआ करते थे, जो विहार करने के लिए पर्वत पर जाते हैं. वहां उन्हें एक मलयवती नामक सुंदर कन्या से मुलाकात होती है. कन्या के पिता व भाई भी उस राजा से अपनी बेटी का विवाह करने की सोचते हैं. लेकिन अचानक पर्वत पर राजा को रोने की आवाज सुनायी देती है.
वह व्याकुल हो उस ओर चले जाते हैं. जहां वे सर्प की माता को रोते पाते हैं, जो अपने पुत्र को गरुड़ द्वारा शिकार होने पर रो रही थी. राजा जिउतवाहन ने सर्प के शरीर पर लेट उसकी जान बचाने की सोची. जब गरूड़ ने सर्प का शिकार करना चाहा तो उसने राजा को बचाव करते देखा. उसे दया आ गयी. उसने सोचा मैं अपनी भूख मिटाने को मारने का काम करता हूं और यह इसे बचाने के लिए खुद को मार रहा है. राजा के नेक काम को देख गरूड़ ने राजा को वर मांगने को कहा. राजा ने गरुड़ से सभी मारे गये सांपों को जीवित करने के साथ -साथ कभी भी सांप को न मारने का वचन लिया. इस दिन से राजा जिउतवाहन के नाम से इस व्रत को माताएं संतान की सलामती के रूप में करती है.