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बिहार को चाहिए तीन लाख और शिक्षक

प्रदेश में प्राथमिक स्कूल से लेकर हाइ स्कूल और विश्वविद्यालय से लेकर मेडिकल कॉलेजों तक में शिक्षकों की कमी है. यही नहीं, दूसरे राज्यों की तुलना में शिक्षकों का वेतन भी कम है. वेतन भी देर से मिलता है. शिक्षक दिवस के मौके पर शिक्षकों की स्थिति दरसाती यह विशेष रिपोर्ट. पटना: राज्य के गिने-चुने […]

प्रदेश में प्राथमिक स्कूल से लेकर हाइ स्कूल और विश्वविद्यालय से लेकर मेडिकल कॉलेजों तक में शिक्षकों की कमी है. यही नहीं, दूसरे राज्यों की तुलना में शिक्षकों का वेतन भी कम है. वेतन भी देर से मिलता है. शिक्षक दिवस के मौके पर शिक्षकों की स्थिति दरसाती यह विशेष रिपोर्ट.

पटना: राज्य के गिने-चुने स्कूलों में ही सभी विषयों के शिक्षक मौजूद हैं. सूबे के साढ़े 72 हजार प्रारंभिक स्कूलों में 2.02 करोड़ बच्चे नामांकित हैं. इन्हें पढ़ाने के लिए 4.46 लाख नियोजित व वेतनमानवाले शिक्षक हैं. वहीं, 2934 हाइ व प्लस टू स्कूलों में 35 लाख छात्र-छात्रएं हैं. इन्हें 42 हजार शिक्षक पढ़ा रहे हैं. इस आधार पर अब भी शिक्षकों की भारी कमी है. प्रारंभिक स्कूलों में 2.25 लाख, जबकि माध्यमिक व प्लस टू स्कूलों में 75 हजार शिक्षक और चाहिए.

नये स्कूलों में एक शिक्षक
प्रारंभिक स्कूलों में 3.78 लाख नियोजित व करीब 68 हजार वेतनमानवाले शिक्षक हैं. प्राथमिक स्कूलों (क्लास एक से पांच) में कम-से-कम प्रधानाध्यापक समेत छह शिक्षकों की आवश्यकता है, लेकिन कहीं तीन तो कहीं दो ही शिक्षक हैं.

समस्तीपुर के प्राथमिक विद्यालय, नायर में 400 बच्चों पर छह शिक्षक और प्राथमिक विद्यालय, हरपुर भिंडी में 198 बच्चों को पढ़ाने के लिए दो शिक्षक ही हैं.

यही हाल सीतामढ़ी के सीताइचक मध्य विद्यालय का भी है. यहां कुल 763 बच्चे नामांकित हैं. मात्र आठ शिक्षक हैं. नये प्राथमिक स्कूलों की हालत इससे अलग नहीं है. ऐसे करीब साढ़े नौ सौ स्कूल भवन के अभाव में किसी सामुदायिक भवन या किसी के घर पर चल रहे हैं. वहां दूसरे स्कूल के एक शिक्षक की प्रतिनियुक्ति की गयी है. जब उस शिक्षक को बीआरसी-सीआरसी में बुलाया जाता है, तो स्कूल बंद करना पड़ता है. मध्य विद्यालयों (क्लास एक से आठ) में कहीं भी 500 से कम छात्र-छात्रएं नहीं हैं. ऐसे में कम-से-कम दस शिक्षक आवश्यक हैं, लेकिन फिलहाल यह संख्या चार से छह तक ही सीमित है.

हाइ स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है. प्लस टू स्कूलों में कम-से-कम 14 और हाइ स्कूलों में 11 शिक्षक होने चाहिए, लेकिन सात-आठ शिक्षक ही कार्यरत हैं. इसके अलावा गणित, विज्ञान और अंगरेजी के शिक्षक भी नहीं मिल रहे हैं.

30 की जगह 56 बच्चों पर एक शिक्षक
सूबे के प्रारंभिक स्कूलों में शिक्षा के अधिकार के तहत 30 बच्चों पर एक शिक्षक होना आवश्यक है, लेकिन फिलहाल प्रारंभिक स्कूलों में 56-1 का अनुपात चल रहा है. शहरी क्षेत्रों में कुछ स्थिति ठीक है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में तो 90 से 100 बच्चों पर एक शिक्षक हैं. अनुपात को 30-1 करने के लिए प्राथमिक से लेकर प्लस टू स्कूलों में तीन लाख शिक्षकों की आवश्यकता है.

नियोजन प्रक्रिया ही दोषपूर्ण
शहरों के स्कूलों में शिक्षक मिल जायेंगे, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में शिक्षक नहीं के बराबर हैं. शिक्षकों के नियोजन की जो प्रक्रिया चल रही है, वह दोषपूर्ण है. कोई शिक्षक हाइ स्कूल में ज्वाइन करता है, जब बाद में उसका प्लस टू या फिर मनचाहे जिले में हाइ स्कूल में हो जाता है, तो वहां जाकर ज्वाइन कर लेता है. इससे पहलेवाले स्कूल में फिर से एक पद खाली हो जाता है.

केदार नाथ पांडेय, महासचिव,

बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ

फिर शुरू करेंगे नियुक्ति
शिक्षक नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है. 2006 से शुरू हुई नियुक्ति प्रक्रिया में करीब चार लाख नियोजित शिक्षक बहाल हो चुके हैं. शिक्षा के अधिकार के तरह फिलहाल साढ़े छह लाख शिक्षकों की आवश्यकता है. इस आधार पर बिहार में करीब ढाई लाख शिक्षक अब भी कम हैं. नियुक्ति प्रक्रिया का वर्तमान चरण खत्म होने के बाद बाकी पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया फिर से शुरू की जायेगी.

वृशिण पटेल, शिक्षा मंत्री

गणित, विज्ञान व अंगरेजी के नहीं मिल रहे शिक्षक
सूबे में हाइ व प्लस टू स्कूलों में गणित व विज्ञान के शिक्षक नहीं मिल रहे हैं. प्रारंभिक स्कूलों में गणित व विज्ञान के साथ-साथ अंगरेजी और महिला शिक्षक भी नहीं मिल रहे हैं. प्रारंभिक स्कूलों के लिए दो जुलाई से 12 अगस्त तक शिक्षक नियुक्ति कैंप लगा था. इसमें 93 हजार शिक्षकों के पद पर बहाली होनी थी, लेकिन 17,991 अभ्यर्थियों को ही नियुक्ति पत्र दिया जा सका. अब भी 75 हजार पद खाली रह गये हैं. करीब चार हजार अंगरेजी, पांच हजार गणित के और साढ़े छह हजार पद विज्ञान के रिक्त रह गये हैं. प्लस टू स्कूलों में मात्र छह हजार और माध्यमिक स्कूलों में 2500 नियुक्ति हो सकी है. हाइ स्कूलों में करीब 2100 विज्ञान और 16 सौ गणित विषय के पद रिक्त रहने की संभावना है.
क्यों नहीं मिल रहे?
टीइटी व एसटीइटी परीक्षा में सफल अभ्यर्थियों में सामाजिक विज्ञान के छात्र-छात्रएं ज्यादा हैं. एक तो गणित व विज्ञान के टीइटी व एसटीइटी पास अभ्यर्थी कम है. उन लोगों ने जहां आवेदन किया है, वहां पद कम और आवेदकों की संख्या ज्यादा है. हर कोटि के लिए कुछ पद निर्धारित हैं. ऐसे में कई कोटि में अभ्यर्थी नहीं मिलने की वजह से भी दूसरी कोटि के अभ्यर्थियों को उस विषय के लिए नियुक्त नहीं किया जाता है. इससे जो साइंस व गणित के अभ्यर्थी हैं भी उन्हें मौका नहीं मिल पा रहा है. गणित-विज्ञान के शिक्षकों के नहीं मिलने का एक और कारण भी है.
मिडिल स्कूल
कोटि रिक्त पद
महिला करीब 40 हजार
गणित करीब पांच हजार
विज्ञान करीब साढ़े छह हजार
अंगरेजी करीब चार हजार

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