पटना: पटना हाइकोर्ट ने औरंगाबाद जिले के दरमिया मदन बिगहा नरसंहार के सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया है. कोर्ट ने पर्याप्त साक्ष्य नहीं होने और गवाहों के मुकरने को आधार बनाते हुए तीनों अभियुक्तों को बरी करने का फैसला सुनाया. औरंगाबाद के अपर जिला सत्र न्यायालय ने एक अप्रैल, 1989 को तीनों अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा सुनायी थी.
निचली अदालत के खिलाफ आयी अपील पर न्यायाधीश नवनीति प्रसाद सिंह और जितेंद्र मोहन शर्मा के खंडपीठ ने मंगलवार को यह फैसला सुनाया है. दरमिया नरसंहार में आठ अक्तूबर, 1986 को 11 लोगों की गला रेत कर हत्या कर दी गयी थी. मरनेवालों में पांच महिलाएं भी शामिल थीं. इस केस में औरंगाबाद के अपर जिला सत्र न्यायाधीश ने तीनों आरोपितों चंद्रदेव पासवान, लल्लू दुसाध और रामाशीष पासवान को आजीवन कारावास की सजा सुनायी थी.
हाइकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि निचली अदालत में कई महत्वपूर्ण साक्ष्यों की अनदेखी हुई. कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस ने इस मामले में सही तरीके से जांच भी नहीं की, जिसके कारण कई गवाह अपने बयान से मुकर गये. समय पर आरोपपत्र दायर नहीं करने से कई आरोपित पहले ही छूट गये.
गांव के ही अंबिका सिंह की ओर से दर्ज करायी गयी प्राथमिकी में जिस खिड़की से उग्रवादियों के घर के बाहर जमा होते देखने की बात कही गयी, जांच में वहां कोई खिड़की नहीं मिली. पुलिस ने पड़ोसी हीरा सिंह की पत्नी मुन्नी देवी के फर्द बयान को प्राथमिकी में जोड़ा था. फर्द बयान में मुन्नी देवी ने कहा था कि उसने अपनी खिड़की से देखा कि बाहर 100 की संख्या में हथियारबंद लोग जमा हैं. वे लोग खपरैल की छत पर चढ़ कर आंगन में आये और 11 लोगों की हत्या गला रेत कर कर दी.
इनकी हुई थी हत्या
मरनेवालों में भूटान सिंह, मुरारी सिंह, गया सिंह, प्रमोद सिंह, गीता कुमारी, गजर देवी, प्रभा कुमारी, अलखदेव सिंह, शकुंतला देवी और उषा देवी के नाम हैं.
1987 से जेल में हैं अभियुक्त
निचली अदालत में तीन साल तक चले मुकदमे में कई गवाह मुकर गये. सजा पाये लोगों ने पटना हाइकोर्ट में अपील की थी. तीनों अभियुक्त 30 जनवरी, 1987 से जेल में बंद हैं.