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इस्तीफे की राजनीति

-इंटरनेट डेस्क-राज्यों से राज्यपालों के इस्तीफे आ रहे हैं. हर इस्तीफे के साथ एक और इस्तीफे की संभावना की खबर भी आती है. संविधान विशेषज्ञ संविधान की व्याख्या कर रहे हैं, जाने माने वकील सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या में संभावनाओं को तलाश रहे हैं. शह और मात का खेल शुरु है, तो जनाब इन सब […]

-इंटरनेट डेस्क-

राज्यों से राज्यपालों के इस्तीफे आ रहे हैं. हर इस्तीफे के साथ एक और इस्तीफे की संभावना की खबर भी आती है. संविधान विशेषज्ञ संविधान की व्याख्या कर रहे हैं, जाने माने वकील सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या में संभावनाओं को तलाश रहे हैं.

शह और मात का खेल शुरु है, तो जनाब इन सब के बीच खबर क्या है? शीला दीक्षित का इस्तीफा देने से इनकार करना या गृह सचिव का राज्यपालों को संपर्क कर इस्तीफा देने के लिए कहना. ताबड़तोड़ खबर परोसने की होड़ में कहां कोई एक खबर पर ठहर कर उसे टटोलना चाहता है. आधुनिक युग गतिशील है, वहां गति की प्रासंगिकता है. गति में ही जीवन है, ठहराव तो मृत्यु समान है.

तो फिर इसमें कहां किसी का दोष. यह तो कालचक्र है. काल की गति सबको मथ रही है, तो फिर क्या जन सामान्य और क्या लाटसाहब. सुना है अतीत से वर्तमान एवं वर्तमान से भविष्य जुड़ा होता है.ज्यादा सशक्त वर्तमान ही होता है तो फिर अतीत की किसे परवाह.ऐसा नहीं है कि लाट साहब के साथ ऐसा पहली बार हो रहा है, इतिहास ऐसी परंपराओं से भरा पड़ा है.

फर्क इतना है कि इस बार क्रम में थोड़ी ऊंच- नीच हो गयी है. विद्वान कहतेहैंकि लुटियन की दिल्ली में चेंज ऑफ गॉर्ड के साथ लाट साहबों का आना-जाना जारी रहता है. वर्षों पहले विपक्ष वाले सुप्रीम कोर्ट की शरण में गये थे.

सुना है अब का विपक्ष भी दो -दो हाथ करने को तैयार है, पर विपक्ष तो विपक्ष होता है शक्ति की पूंजी तो वर्तमान के साथ निहित है. तो फिर किसे अतीत और भविष्य की परवाह है. कौन ठहरता है इतने विचार मंथन करने को. आप और हम ठहर कर भी क्या कर लेंगे अपने सांसों को गति दीजिए और अगले इस्तीफे की खबर के लिए तैयार हो जाइए.

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