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वर्चस्व के लिए नक्सली संगठनों में टकराव

औरंगाबाद (कोर्ट) : नक्सली संगठनों का आपसी टकराव कोई नया नहीं है. अपना वर्चस्व स्थापित करने को लेकर इन नक्सली संगठनों में खूनी संघर्ष होता रहा है. झारखंड व औरंगाबाद के सीमावर्ती इलाकों मे अपना वर्चस्व कायम करने को लेकर ही नक्सली संगठनों के बीच तनाव गहराता जा रहा है. बीती रात भी भाकपा माओवादी […]

औरंगाबाद (कोर्ट) : नक्सली संगठनों का आपसी टकराव कोई नया नहीं है. अपना वर्चस्व स्थापित करने को लेकर इन नक्सली संगठनों में खूनी संघर्ष होता रहा है. झारखंड व औरंगाबाद के सीमावर्ती इलाकों मे अपना वर्चस्व कायम करने को लेकर ही नक्सली संगठनों के बीच तनाव गहराता जा रहा है.

बीती रात भी भाकपा माओवादी के सब जोनल होने के आरोप में एनुल मियां के घर टीपीसी (थर्ड प्रजेंटेंशन कमेटी)के सदस्यों द्वारा जेसीबी से ध्वस्त कर दिया जाना, इसी संघर्ष का परिणति है. वर्ष 2012 में भी भाकपा माओवादी के सक्रिय सदस्य व सब जोनल कमांडर के आरोप में नवीनगर के पिछुलिया निवासी प्रमोद सिंह के घर को टीपीसी के सदस्यों ने दिन के उजाले में डायनामाइट से उड़ा दिया था. टीपीसी के सदस्य काफी संख्या में इस इलाके को चारों ओर से घेर लिया था, और इस घटना को अंजाम दिया था.

छह साल से जारी है यह टकराव : टीपीसी व भाकपा माओवादियों के बीच यह खूनी संघर्ष पिछले छह साल से जारी है. दरअसल ऐसा माना जाता है कि भाकपा माओवादी के ही असंतुष्ट खेमे के सदस्यों द्वारा बनाये गये नक्सली संगठन टीपीसी का आधार क्षेत्र सोन तटीय क्षेत्र में झारखंड व बिहार की सीमावर्ती इलाका है. यहां पिछले तीन दशक से भी ज्यादा से भाकपा माओवादियों का लगभग एकछत्र राज था.

नतीजतन टकराव स्वाभाविक था. ये इलाका मोटी लेवी वसूली के लिए भी जाना जाता है, क्योंकि सोन के बालू घाटों, ईंट भट्ठों व अवैध उत्खनन करने वालों से बड़ी राशि नक्सली संगठनों को आती है. पहले ये पूरी राशि भाकपा माओवादी को जाती थी. पर, अब इसमें टीपीसी नयी हिस्सेदार बन कर आयी है. ये स्थिति भाकपा माओवादी को पसंद नहीं आ रही है. इसी वजह से गागभग छह साल पूर्व इन दोनों संगठनों में खूनी संघर्ष जारी हुआ, जो समय के साथ गहराता चला जा रहा है.

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