ग्यारह बरस पहले रोटरडम में कांसे का तमगा नहीं जीत पाने की टीस उनके दिल में नासूर की तरह घर कर गयी थी और अपनी सरजमीं पर घरेलू दर्शकों के सामने इस जख्म को भरने के बाद कोच हरेंद्र सिंह अपने आंसुओं पर काबू नहीं रख सके. भारत के फाइनल में प्रवेश के बाद जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, यह मेरे अपने जख्म है और मैं टीम के साथ इसे नहीं बांटता. मैंने खिलाड़ियों को इतना ही कहा था कि हमें पदक जीतना है , रंग आप तय कर लो. रोटरडम में मिले जख्म मैं एक पल के लिये भी भूल नहीं सका था.
रोटरडम में कांस्य पदक के मुकाबले में स्पेन ने भारत को पेनल्टी शूट आउट में हराया था. अपने सोलह बरस के कोचिंग कैरियर में अपने जुनून और जज्बे के लिये मशहूर रहे हरेंद्र ने दो बरस पहले जब फिर जूनियर टीम की कमान संभाली, तभी से इस खिताब की तैयारी में जुट गये थे. उनका किरदार ‘चक दे इंडिया’ के कोच कबीर खान (शाहरुख खान) की याद दिलाता है जिसने अपने पर लगे कलंक को मिटाने के लिये एक युवा टीम की कमान संभाली और उसे विश्व चैंपियन बना दिया. हरेंद्र ने खिलाड़ियों में आत्मविश्वास और हार नहीं मानने का जज्बा भरा. लेकिन सबसे बड़ी उपलब्धि रही कि उन्होंने युवा टीम को व्यक्तिगत प्रदर्शन के दायरे से निकालकर एक टीम के रूप में जीतना सिखाया.
भारत तीसरी बार फाइनल में पहुंचा था
भारत 1997 में इंग्लैंड में पहली बार फाइनल में पहुंचा था, तब उसे फाइनल में ऑस्ट्रेलिया से 2-3 से हार मिली थी.
2001 में भारत ने होबार्ट में अर्जेंटीना को 6-1 से हरा कर खिताब जीत लिया था.
2005 में भारत सेमीफाइनल में पहुंचा था और ऑस्ट्रेलिया से हार गया था.
2016 में भारत फाइनल में पहुंचा और बेल्जियम को 2-1 से हरा कर खिताब जीता.
जूनियर वर्ल्ड कप जीतने पर पूरी टीम को बधाई. ये खुशी दोगुनी होती अगर 2001 की तरह इस टीम में भी झारखंड का कोई खिलाड़ी होता. 2001 जूनियर वर्ल्ड कप विजेता टीम में झारखंड के विमल लकड़ा शामिल थे.
सावित्री पूर्ति, पूर्व अंतराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी