27.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

सचिन युग का अवसान क्या शुरू होगा कोहली युग!

वर्ष 2013 की शुरुआत में भारतीय खेलों की दुनिया में सबसे सबसे बड़ा सवाल था कि क्या भारतीय क्रिकेट टीम सचिन तेंडुलकर, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण और सौरव गांगुली की चौकड़ी की विदाई से पैदा होनेवाली कमी की भरपाई कर पायेगी? 2013 ने इन सवालों का जवाब कमोबेश दे दिया है और खुशखबरी है कि […]

वर्ष 2013 की शुरुआत में भारतीय खेलों की दुनिया में सबसे सबसे बड़ा सवाल था कि क्या भारतीय क्रिकेट टीम सचिन तेंडुलकर, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण और सौरव गांगुली की चौकड़ी की विदाई से पैदा होनेवाली कमी की भरपाई कर पायेगी? 2013 ने इन सवालों का जवाब कमोबेश दे दिया है और खुशखबरी है कि यह जवाब आश्वस्तकारी है. क्रिकेट के मैदान से लेकर दूसरे खेलों तक की इस साल की उपलब्धियों और अगले वर्ष के लिए इनसे निकलनेवाले संकेतों पर एक नजर..

दक्षिण अफ्रीका में 2007 मे पहला टी-20 वर्ल्‍ड कप खेला जाना था. दक्षिण अफ्रीका आये एक अमेरिकी पर्यटक ने जोहानिसबर्ग मे मौजूद चुनिंदा भारतीय पत्रकारों से पूछा कि आखिर कोई ऐसा खेल कैसे हो सकता है कि पांच दीनों तक सुबह से शाम तक दो टीम इसे खेलती रहे और इसके बाद नतीजा यह निकले कि इसका कोई नतीजा नहीं निकले. तभी उन्हें टी-20 क्रिकेट के तौर पर प्रयोग और इस लिहाज से पहले टी-20 वर्ल्‍ड कप की अहमियत के बारे मे समझाने की कोशिश की गयी.

क्रिकेट का नवीनतम प्रयोग टी-20 क्रिकेट वर्ल्‍ड कप से लेकर इंडियन प्रिमियर लीग की शक्ल ले चुका है, लेकिन क्रिकेट की जान टेस्ट क्रिकेट है और इसमें ड्रॉ की भी क्या अहमियत है, इसका अंदाजा जोहानिसबर्ग में ही 22 दिसंबर, 2013 को लगाया जा सकता था. भारत मंजिल के करीब आकर मंजिल से दूर रह गया. लेकिन यह ड्रॉ युवा ब्रिगेड का सचिन जेनरेशन को दिया गया भरोसा था- ‘हम हैं न, आपने बेटन सुरक्षित हाथों को थमाया है.

टेस्ट मैच कई सत्रों में खेला जाता है और असली जिंदगी की तरह इसमें वापसी की गुंजाइश रहती है. वैसे तो जोहानिसबर्ग में खेले गये पहले टेस्ट मैच के ज्यादातर सत्रों में भारतीय हावी रहे, लेकिन मैच के दूसरे दिन के तीनों सेशन विराट कोहली और चेतेश्वर पुजारा की अगुवाई मे भारतीय युवा ब्रिगेड का सिग्नेचर सेशन साबित हुआ. क्रिकेट के जानकार इसकी तुलना ठीक 10 साल पहले 4-8 दिसंबर 2003 में तब की नंबर एक टीम ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ब्रिस्बेन टेस्ट मैच से करने लगे हैं. उस समय कप्तान सौरव गांगुली की बेहतरीन पारी के बावजूद मैच का नतीजा भी ड्रॉ रहा था, लेकिन इसने सचिन-सौरव-द्रविड़-लक्ष्मण की चौकड़ी को वो भरोसा दिया जिसकी नींव पर आने वाले साल में विदेशी जमीन पर फतह की आलीशान इमारतें बनायी गयीं.

* सवालों से शुरू हुआ 2013

2003 की तरह 2013 की शुरुआत कई सवाल पूछ रहा था. 2013 की अभी शुरुआत तक नहींहुई थी कि सचिन रमेश तेंडुलकर ने 22 दिसंबर 2012 को एक दिवसीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया. स्वाभाविक सा सवाल आया, भारतीय क्रिकेट में सचिन जेनरेशन आखिरी पड़ाव पर है, इसके बाद क्या होगा? जैसे सचिन दौर के सूर्यास्त की भयावह तसवीर काफी नहीं थी, सहवाग और गंभीर की ओपनिंग जोड़ी वक्त से पहले पटरी से उतरती दिखी. क्या भारतीय क्रिकेट के पास ओपनिंग का विकल्प है? जहीर खान फिटनेस की वजह से अपनी धार और रफ्तार खोते जा रहे थे और पेस बॉलिंग के डिपार्टमेंट मे घोर अंधेरा नजर आ रहा था. क्या ले-देकर ईशांत- श्रीसंथ पर ही निर्भर होना होगा? इंडियन प्रीमियर लीग, 2013 में मैच फिक्सिंग के लपेटे ने भारतीय क्रिकेट की विश्वसनीयता पर ही सवालिया निशान लगा दिये.

एक अंतरराष्ट्रीय भारतीय क्रिकेटर गिरफ्तार हुआ. भारतीय क्रिकेट के मुखिया का दामाद पुलिस के शिकंजे में था. बीते साल तक राजस्थान रॉयल्स के डग आउट मे बैठने वाले एक क्रिकेटर की फिक्सर मे तब्दीली हो गयी थी. सबसे भयावह यह था कि बोर्ड के मुखिया खुद संगीन आरोपों के घेरे में थे.

सवाल पूछा जा रहा था, क्या भारतीय क्रिकेट की विश्वसनीयता फिर से बहाल हो सकेगी? लीडर भले ही कितना भी दमदार हो, वह उतना ही बेहतर या बदतर साबित होता है, जितना उसकी टीम की ताकत होती है. हर किसी के जेहन में यह सवाल दस्तक दे रहा था, क्या महेंद्र सिंह धौनी का तिलिस्म खत्म हो चुका है?

* नयी पीढ़ी ने दिलाया भरोसा

जैसे-जैसे इंडियन प्रीमियर लीग की कड़वी यादों की धुंध की चादर छंटती गयी, इन सवालों के जवाब सामने आने लगे. लेकिन, इसका खाका पहले से ही परत-दर-परत तैयार किया जाने लगा था. पहले, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दो अलग-अलग गांवों से आये भुवनेश्वर कुमार और समी अहमद को पेस बैटरी का हिस्सा बनाया गया, दोनों खुद पर जताये गये भरोसे पर खरा उतरते चले गये.

दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ पहले टेस्ट मैच तक तो समी ने इस भरोसे को यकीन में बदल दिया है कि जहीर के आगे भी विकल्प है. मुरली विजय धीर-धीरे आखिरकार घरेलू क्रिकेट और अंतरराष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेट के फासले को कम करते चले गये. जोहानिसबर्ग टेस्ट मैच में भले ही मुरली विजय के आगे 39 रन मामूली लगे, लेकिन इसकी अहमियत का अंदाजा टीम को और इससे मिले भरोसे का अंदाजा मुरली विजय को बखूबी होगा. आइपीएल से पहले ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ दिल्ली के एक और सलामी बल्लेबाज शिखर धवन टेस्ट क्रिकेट मे धमाकेदार दस्तक दे चुके थे. आइपीएल के बाद चैंपियन्स ट्रॉफी और वेस्ट इंडीज में ट्राई सीरीज में धवन के धमाकों ने ट्रॉफी को भारत के नाम कर दिया.

* लेजेंड्स की जगह भरने की चुनौती

लेजेंड्ज की जगह लेना कितना मुश्किल होता है, इसका अंदाजा डेविड मॉएस को है जिन्होंने मैनचेस्टर यूनाइटेड के मुखिया सर एलेक्स फगरुसन की जगह ली. यह अंदाजा अभिनेता जे लीनो को हुआ होगा, जब उन्हें महान कॉमेडियन जॉनी कारसन के विकल्प के तौर पर देखा गया. यह एहसास अर्थशास्त्री बेन बेरनाके को हुआ होगा, जिन्होंने अमेरिकी फेडरल रिजर्व के प्रमुख के तौर पर ग्रीनस्पैन की जगह ली थी. महान अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंक्लिन डी रूजवेल्ट की जगह लेने वाले ट्रूमैन ने इस एहसास को शब्दों मे बयान करते हुए कहा था- मुझे पता नहीं कि आपको अंदाजा है या नहीं कि कैसा अहसास होता है जब आप पर सूखी घास की भारी गठरी गिर जाये. फिर मुझे जब रूजवेल्ट की जगह लेने को कहा गया तो ऐसा लगा की मुझपर चांद, तारे, पृथ्वी का पूरा बोझ गिर गया हो.

भारतीय क्रिकेट में इस दौर से विराट कोहली गुजर रहे हैं जिन्हें क्रिकेट के महानतम सपूत सचिन तेंडुलकर के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है. 2013 के अंत मे जोहानिसबर्ग टेस्ट मैच में कोहली टेस्ट क्रिकेट मे सचिन तेंडुलकर की जगह चौथे नंबर पर खेलने आये और उन्होंने इस पोजीशन पर जबरदस्त आगाज किया. वो चौथे नंबर पर टेस्ट की दोनों परियों मे शतक लगाने वाले पहले भारतीय बल्लेबाज बनने से चंद रनों से चूक भले ही गये हों, लेकिन आहिस्ते-आहिस्ते मौजूदा विश्व क्रिकेट के बेहतरीन बल्लेबाजों मे से एक के तौर पर सामने आ रहे हैं.

* विराट और पुजारा के नाम रहा साल

आंकड़े पूरा सच नहीं कहते, लेकिन ये पूरी तरह से झूठ भी नही बोलते. वन डे क्रिकेट में अगर विराट कोहली के अब तक के सफर को देखें तो वो सचिन तेंडुलकर से भी आगे है. कोहली ने अब तक 125 वन डे मैच की 118 पारियों मे 52 के औसत से 5154 रन बनाए हैं, जिसमे 17 सेंचुरी शामिल है. तेंडुलकर ने अपने पहले 125 मैच में 40 की औसत से 4363 रन बनाये, जिसमें 9 शतक शामिल थे.

टेस्ट क्रिकेट मे कोहली ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका मे सेंचुरी लगा चुके है. सर डॉन बैडमैन ने अगर ये कहते हुए सचिन को विश्व क्रिकेट इतिहास में विश्वसनीयता दिलायी कि वह उनकी तरह खेलता हैं. विराट कोहली मे विवियन रिचर्डस अपना अक्स देखते हैं. इसे नियति कहें या फिर इत्तेफाक, कोहली ने वेस्ट इंडीज के ही खिलाफ हाल मे वन डे सीरीज में इतिहास में सबसे तेज 5000 रन पूरा करने के रिचर्डस के रिकॉर्ड की बराबरी की.

भारतीय क्रिकेट इतिहास में हाल मे बीता दौर कोई मामूली दौर नहीं था. ये भारत का गोल्डेन एज था. इस दौर की धुरी अगर सचिन तेंडुलकर थे, तो दीवार से भरोसे का नाम राहुल द्रविड़ रहे. दोनों ने मिल कर न जाने कितनी बुलंद पारिया खेलीं या फिर इसकी नींव रखी. 2013 में ये किरदार तो बदल गये, लेकिन क्या कोहली-पुजारा की जोड़ी उसी रास्ते पर है? कोहली मे अगर फ्लेमबायन्स है, तो पुजारा मे अद्भुत स्थिरता, शालीनता और पांव जमाने के बाद आक्रामकता. युवा कोहली एक घरेलू मैच में अपनी पारी के बीच में अपने पिता को खो बैठे, लेकिन इसके बावजूद अगले ही दिन अपने कर्मभूमी की ओर रुख किया.

खुद कोहली के शब्दों में इस घटना ने उन्हें रातोरात बदल दिया. सौराष्ट्र के पुजारा ने ये जिंदगी का यह थपेड़ा तब सहा जब शरुआती मंझधार में ही उनकी मां दुनिया से चल बसीं. जैसे ही टीम इंडिया में जगह मिली, चोट ने एक और अग्नि-परीक्षा ली. लेकिन अपने पिता और कोच के सहारे उन्होंने न सिर्फ जिंदगी के ये लिटमस टेस्ट पास किये, बल्कि शायद इसी कारण और मजबूत और निखर कर सामने आये. जोहानिसबर्ग टेस्ट मैच के दूसरे दिन कोहली-पुजारा के बीच की साझेदारी को रनों के आईने से अधिक सचिन-द्रविड़ दौर के बाद भरोसे की कड़ी के तौर पर देखा जाना चाहिए.

* सफलता का दूसरा नाम धौनी

2013 से पहले भी धौनी का सीवी भरा हुआ था. टी-20 वर्ल्‍ड कप 2007 से लेकर 2011 वर्ल्‍ड कप तक, टेस्ट क्रिकेट मे नंबर एक की जगह हो या फिर इंडियन प्रिमियर लीग से लेकर चैंपियन्स लीग तक. 2013 मे इस सीवी में चार चांद लग गये. 2011 वर्ल्‍ड कप की कामयाबी अगर भारतीय विकेट पर मिली थी, तो भारत ने इंग्लैंड की जमीन पर चैंपियन्स ट्रॉफी जीत कर दुनिया को अचंभित कर दिया.

चैंपियन्स ट्रॉफी से पहले जीत के किरदार सचिन से लेकर लक्ष्मण, सहवाग से लेकर युवराज और हरभजन से लेकर जहीर थे, जो या तो सौरव-सचिन से थे या सिर्फ उनके दौर की विरासत थे. चैंपियन्स ट्रॉफी मे जीत की नींव शिखर-रोहित से लेकर जडेजा-अश्विन-भुवनेश्वर कुमार ने रखी थी जो धौनी के सिपाही थे. 2013 कप्तान धौनी के एक और मास्टर स्ट्रोक के तौर पर याद किया जायेगा. भारतीय कप्तान ने लाख सवालों के बावजूद रोहित शर्मा को ओपनिंग बल्लेबाज के तौर पर मौका दिया. यह भरोसा न सिर्फ एक दिवसीय मैच मे काम आया बल्कि टेस्ट क्रिकेट मे भी भारतीय मिडिल ऑर्डर को मजबूती दे रहा है.

सवाल अब भी है, जिनके जवाब का इंतजार 2014 में रहेगा. क्या ऑफ स्पिनर अश्विन विदेशी जमीन पर भी कामयाब होंगे? क्या वन डे मे चौथे नंबर पर युवराज या रैना पर भरोसा किया जा सकता है, खासकर तब जब 2015 वर्ल्‍ड कप ऑस्ट्रेलिया मे खेला जाना है. क्या मौजूदा तेज गेंदबाजो मे लंबे वक्त तक पेस बैटरी की कमान संभालने का दमखम है? 2014 की चुनौतियां और मुश्किल होंगी, क्योंकि भारत को अधिकतर क्रिकेट भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर खेलना है. बावजूद इसके क्रिकेट के इस जुनूनी देश के क्रिकेट की बागडोर सुरक्षित हाथों में होने का यकीन किया जा सकता है.

* दूसरे खेलों में भी नयी पीढ़ी हो रही है तैयार

एक खेल के आधार पर कोई मुल्क स्पोर्टिग नेशन नहीं बन सकता. इस लिहाज से 2014 में ग्लास्को मे राष्ट्रमंडल खेल और दक्षिण कोरिया मे एशियन गेम्स अहम होगा. 2012 लंदन ओलिंपिक्स में बेहतर प्रदर्शन के बाद भारतीय स्पोर्ट्स में एक नयी उमीद जगी थी, लेकिन इंडियन ओलिंपिक एसोसिऐशन के निलंबन से भारतीय खेलों को एक तगड़ा झटका लगा है.

2013 मे भारतीय इतिहास के सबसे कामयाब ओलिंपियन सुशील कुमार फिटनेस की समस्या से जूझते रहे. सुशील मेहनत और लगन की मिसाल हैं और उनकी नजरें रियो ओलिंपिक्स पर है, मगर उनकी चुनौतियां आसान नही होंगी. फिटनेस के अलावा सुशील को शायद अधिक वेट केटेगरी के पहलवानों से मुकाबला करना होगा. जहां सुशील के सामने मुश्किल चुनौती है, वहीं दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम से निकला एक और पहलवान अमित कुमार बुलंदियों पर है. अमित ने 2013 वर्ल्‍ड रेसलिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता. 2012 लंदन ओलिंपिक्स वो ओलिंपिक्स मे भाग लेनेवाले सबसे युवा पहलवान थे. 2016 रियो ओलिंपिक्स में अमित पर सुशील की विरासत को आगे ले जाने का दारोमदार होगा.

सुशील की ही तरह लंदन ओलिंपिक्स 2012 की एक और अहम किरदार सायना नेहवाल के लिए 2013 सुखद नहीं रहा. लेकिन जिस तरह से अमित कुमार सुशील की कमी को भरने की कोशिश कर रहे हैं, उसी तरह गोपीचंद स्कूल की एक और खिलाड़ी पीवी सिंधु नेहवाल की जगह हासिल करने की ओर बढ़ रही हैं. 2013 में सिंधु ने सिंगापुर की जुआन गु को हराकर मलेशियन ओपन जीता. 10 अगस्त, 2013 को सिंधु वर्ल्‍ड चैंपियनशिप में मेडल जीतने वाली पहली महिला और प्रकाश पादुकोण के बाद दूसरी भारतीय बनीं. सिंधु ने इस साल मकाओ ओपन भी जीता.

ओलिंपिक में राज्यवर्धन सिंह के सिल्वर मेडल जीतने के बाद शूटिंग ने भारत को ओलिंपिक्स में सबसे अधिक कामयाबी दिलायी है. बीजिंग में अभिनव बिंद्रा भारतीय ओलिंपिक्स इतिहास मे व्यक्तिगत गोल्ड जीतने वाले पहले भारतीय बने, तो लंदन ओलिंपिक्स में विजय कुमार और गगन नारंग ने इस कामयाबी के सफर को बनाये रखा.

बिंद्रा विजय और गगन का मिशन रियो कितना कारगर साबित होने वाला है, इसका अंदाजा कॉमनवेल्त गेम्स और एशियन गेम्स से लग जायेगा. वैसे शूटर रोंजन सोढ़ी से आने वाले दिनों में भारत को सबसे अधिक उम्मीदें है. शूटिंग के इन शूरमाओं के बीच 2013 में एक महिला ने हर किसी का दिल जीता. लुधियाना की हीना सिद्धू ने 2013 वर्ल्‍ड कप फाइनल्स में 10 एम पिस्टल में गोल्ड मेडल जीता. हीना से पहले सिर्फ गगन नारंग और अंजलि भागवत ऐसा कर पाने में कामयाब रहे थे.

* सचिन तेंडुलकर को भारत रत्न पर विवाद

मैं जबतक आखिरी सांस नही लूंगा, तबतक सचिन..सचिन की आवाज मेरे कानों में गूंजती रहेंगी- 2013 में वानखेडे स्टेडियम में सचिन का विदाई भाषण खेल प्रेमियों और खिलाड़ी के बीच बेमिसाल अटूट संबंधो के साक्ष्य के तौर पर याद किया जायेगा. 2013 मे सरकार ने किसी खिलाड़ी को पहली बार सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया.

सचिन निस्संदेह भारत रत्न हैं, लेकिन बीते कल की विरासत को मिटा कर आनेवाले कल को गौरवान्वित नहीं किया जा सकता. देश के पहले खेल रत्न मेजर ध्यानचंद को जबतक देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान नहीं मिलेगा, ये दिल को कचोटता रहेगा. आज के सचिन-सचिन की गूंज की बुनियाद 1947 के दौर मे ध्यानचंद-ध्यानचंद के करिश्मे की नींव पर रखी गयी थी.

* 2013 के खेल नायक

1. विराट कोहली

24 साल में पहली बार भारतीय टीम मैनेजमेंट को टेस्ट टीम में पहली बार एक सवाल का जवाब खोजना पड़ा. चौथे नंबर पर बल्लेबाजी कौन करेगा. जोहानिसबर्ग टेस्ट मैच मे कोहली ने ये जवाब दो परियों में 119 और 96 रन बना कर दिया. कोहली इस साल विवियन रिचर्डस के साथ सबसे कम मैच में वन डे क्रिकेट मे 5000 रन पूरा करनेवाले बल्लेबाज बने. धौनी के बाद कप्तान कौन? शायद 2015 वर्ल्‍ड कप के बाद इस सवाल का जवाब खोजना होगा. क्या इसका भी जवाब कोहली ही निकलेंगे?

2. शिखर धवन

2003 अंडर 19 वर्ल्‍ड कप के हीरो शिखर धवन को कोहली, रैना, पुजारा से लेकर इरफान पठान ने पीछे छोड़ दिया था. ऐसा लगा कि वो घरेलू क्रिकेट की गुमनामी में खो जायेंगे, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मोहाली टेस्ट मैच मे उन्होंने धमाकेदार पारी खेली. धवन इसके बाद चैंपियन्स ट्रॉफी में प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट बने और तेजी से वीरेंद्र सहवाग के विकल्प के तौर पर सामने आ रहे हैं.

3. चेतेश्वर पुजारा

सौराष्ट्र के इस बल्लेबाज ने 2013 में अपने टेस्ट कैरियर को नये सिरे से संवारा. राहुल द्रविड़ की जगह नंबर तीन पर पुजारा ने शानदार बल्लेबाजी की. लेकिन एक सवाल हर किसी के जेहन में था, विदेशी जमीन पर क्या होगा? दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ पहले टेस्ट मैच मे उन्होंने इस सवाल का मजबूत जवाब दिया है. कोहली-पुजारा की जोड़ी क्या सचिन-द्रविड़ की जोड़ी का विकल्प है, इसका पूरा अंदाजा 2014 में लग जायेगा.

4. रोहित शर्मा

रोहित के पास टैलेंट तो है, लेकिन वो प्रतिभा को प्रदर्शन में बदल पाने में नाकाम हैं. रोहित को 2013 में वन डे टीम में ओपनिंग का मौका मिला और उन्होने निराश नहीं किया. रोहित ने वेस्ट इंडीज के खिलाफ टेस्ट कैरियर का जबरदस्त आगाज किया, बस अब विदेशी जमीन पर भरोसेमंद टेस्ट पारी का इंतेजार है.

5. मोहम्मद समी

जहीर के बाद भारतीय पेस बैटरी का दारोमदार किसके हाथों मे होगा? ईशांत शर्मा निराश कर रहे थे और दूसरा विकल्प दिख नहीं रहा था. तभी समी ने वेस्ट इंडीज के खिलाफ सीरीज में अपनी धार और रफ्तार से हर किसी को प्रभावित किया. दक्षिण अफ्रीका के बाद ऐसा लग रहा है कि वो जहीर का विकल्प बन सकते है.

6. अमित कुमार

सोनीपत के इस पहलवान ने 2013 वर्ल्‍ड रेसलिंग चॅंपियनशिप में मेडल जीतकर ये भरोसा दिया की सुशील कुमार के बाद भी भारतीय कुश्ती की विरासत सुरक्षित हाथों मे है. अमित लंदन ओलिंपिक्स 2012 मे सबसे युवा भारतीय रेसलर थे, 2016 मे रियो में उनसे सबसे अधिक उमीदें रहेंगी.

7. हिना सिद्धू

भारतीय शूटिंग ने बीते दशक मे भारत को ओलिंपिक्स मे वो कामयाबी दिलाने की कोशिश की है जो एक दौड़ मे हॉकी खिलाड़ी का बोलबाला था. जबरदस्त शूटर्स की फेहरिस्त में इस साल लुधियाना की हिना सिद्धू शामिल हो गयीं, जिन्होंने वर्ल्‍ड चैंपियनशिप में मेडल जीता. गगन नारंग और अंजलि भागवत के बाद ऐसा करनेवाली वो दूसरी खिलाड़ी हैं.

8. पीवी सिंधु

रेसलिंग मे छत्रसाल स्टेडियम के अखाड़े का जो योगदान रहा है, बैडमिंटन मे वही योगदान गोपीचंद एकेडमी का है. सायना नेहवाल अगर 2013 मे अपनी उमीदों पर खरे नही उतर पायीं, तो सिंधु ने वर्ल्‍ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में मेडल जीता और मलेशियन ओपन और मकाओ ओपन जीतने मे कामयाब रहीं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें