लंदन : एक रिपोर्ट के अनुसार टेस्ट क्रिकेट में तटस्थ अंपायरों की प्रक्रिया लागू करने के बाद मेजबान टीम के पक्ष में पगबाधा के फैसलों में काफी कमी आई है. इस निष्कर्ष को जर्नल आफ रायल स्टेटिस्टिकल सोसाइटी ने प्रकाशित किया है. भारतीय मूल के एक अनुसंधानकर्ता ने अपने अध्ययन में यह निष्कर्ष निकला है. […]
लंदन : एक रिपोर्ट के अनुसार टेस्ट क्रिकेट में तटस्थ अंपायरों की प्रक्रिया लागू करने के बाद मेजबान टीम के पक्ष में पगबाधा के फैसलों में काफी कमी आई है. इस निष्कर्ष को जर्नल आफ रायल स्टेटिस्टिकल सोसाइटी ने प्रकाशित किया है. भारतीय मूल के एक अनुसंधानकर्ता ने अपने अध्ययन में यह निष्कर्ष निकला है.
लगभग 1990 के दशक के मध्य तक दोनों अंपायर घरेलू देश के हुआ करते थे. इस नियम में बाद में बदलाव किया गया और 1994 में फैसला किया गया कि एक अंपायर घरेलू देश का होगा. हालांकि 2002 से दोनों मैदानों अंपायरों के तटस्थ होने का नया नियम लागू किया गया.
ब्रिटेन के नाटिंघम विश्वविद्यालय के मुख्य लेखक अभिनव सचेती ने कहा, हमारे निष्कर्ष से सुझाव जाता है कि जब टेस्ट मैचों में दो घरेलू अंपायर होते थे तो मेहमान टीमों को औसतन घरेलू टीमों की तुलना में 16 प्रतिशत अधिक पगबाधा के फैसलों का सामना करना पडता था.
उन्होंने कहा, आईसीसी ने जब एक तटस्थ अंपायर की नीति लागू की तो घरेलू टीमों का यह फायदा 10 प्रतिशत रह गया और जब प्रत्येक टेस्ट में दोनों अंपायरों के तटस्थ होने का नियम लागू हुआ तो घरेलू टीमों को मिलने वाला यह फायदा खत्म हो गया.
शेफील्ड विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री डा. इयान ग्रेगरी स्मिथ, डा. सचेती और नाटिंघम विश्वविद्यालय बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर डेविड पेटन ने 1986 से 2012 के बीच खेले गए 1000 टेस्ट मैचों में पगबाधा के फैसलों का अध्ययन किया. मैचों की यह टेस्ट इतिहास में खेलने गए मैचों की संख्या की लगभग आधी है. लेखकों ने हालांकि कहा है कि अंपायरों के बीच यह भेदभाव शायद जानबूझकर नहीं हो और संभवत: स्थानीय दर्शकों के दबाव का उनके फैसलों पर असर पड़ता हो.