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प्राणधारा का प्रवाह

अस्तित्ववादी धारणा और आत्मवादी धारणा में दो बातें फलित होती हैं- एक है ज्ञान दर्शन और दूसरी है शक्ति. शक्ति के बिना ज्ञान दर्शन का उपयोग नहीं हो सकता. कर्मशास्त्रीय परिभाषा में कहा जा सकता है- जब तक अंतराय कर्म का क्षयोपशम नहीं होता, तब तक न ज्ञान का उपयोग हो सकता है और न […]

अस्तित्ववादी धारणा और आत्मवादी धारणा में दो बातें फलित होती हैं- एक है ज्ञान दर्शन और दूसरी है शक्ति. शक्ति के बिना ज्ञान दर्शन का उपयोग नहीं हो सकता. कर्मशास्त्रीय परिभाषा में कहा जा सकता है- जब तक अंतराय कर्म का क्षयोपशम नहीं होता, तब तक न ज्ञान का उपयोग हो सकता है और न दर्शन का उपयोग हो सकता है. न जाना जा सकता है और न देखा जा सकता है. जानने और देखने का आवरण नहीं है. ज्ञानवरण का क्षयोपशम है, दर्शनावरण का क्षयोपशम है.

जानने और देखने की क्षमता है. आवरण हट चुका है. किंतु अंतराय कर्म के क्षयोपशम से होनेवाली प्राण की ऊर्जा यदि साथ में नहीं मिलती है, तो आंख के होते हुए भी आदमी देख नहीं सकता, कान के होते हुए भी वह सुन नहीं सकता और मन के होते हुए भी वह चिंतन नहीं कर सकता. मष्तिस्क विकृत होने का अर्थ है कि वहां प्राण की ऊर्जा समाप्त हो गयी है. आंख का गोलक साफ है, फिर भी दिखायी नहीं देता, इसका अर्थ है ज्योति के केंद्र तक प्राण की धारा नहीं पहुंच रही है. कान का पर्दा फटा नहीं है, कान के सारे उपकरण ठीक हैं फिर भी सुनायी नहीं देता. इसका तात्पर्य है कि श्रवण का जो केंद्र है, वहां तक प्राण की धारा पहुंच नहीं रही है.

आदमी लकवे से ग्रस्त होता है. इसका अर्थ है कि शरीर के अमुक-अमुक भाग में रक्त का संचार रुक गया है. रक्त संचार के रुकने का अर्थ है प्राण की धारा का रुकना. जहां प्राण की धारा नहीं पहुंचती, वहां की सक्रियता नष्ट हो जाती है. प्राण की धारा के बिना न ज्ञान का उपयोग होता है और न दर्शन का उपयोग होता है. ज्ञानावरण के क्षयोपशम और दर्शनावरण के क्षयोपशम से पहले अंतराय का क्षयोपशम होता है. अंतराय का क्षयोपशम अर्थात् शक्ति की प्राप्ति.

अंतराय के क्षयोपशम के बिना अर्थात् प्राण-ऊर्जा के बिना कोई भी कार्य नहीं हो सकता, सक्रियता नहीं आ सकती. सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि प्राण-ऊर्जा का प्रवाह किस ओर जा रहा है? किस दिशा में बह रहा है? यह दिशा-परिवर्तन का प्रश्न है, रूपांतरण का प्रश्न है. रूपांतरण तब तक घटित नहीं होता, जब तक प्राण की धारा के प्रवाह को मोड़ा नहीं जाता.

– आचार्य महाप्रज्ञ

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