19 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बदल सकता है कर्मफल

हम सभी अपने कर्मों के फलस्वरूप सुख या दुख भोग रहे हैं. मान लीजिए कि मैं व्यापारी हूं और मैंने बुद्धि के बल पर कठोर श्रम कर बहुत संपत्ति संचित कर ली है. तब मैं संपत्ति के सुख का भोक्ता हूं, किंतु व्यापार में मेरा सब धन जाता रहा, तो मैं दुख का भोक्ता हो […]

हम सभी अपने कर्मों के फलस्वरूप सुख या दुख भोग रहे हैं. मान लीजिए कि मैं व्यापारी हूं और मैंने बुद्धि के बल पर कठोर श्रम कर बहुत संपत्ति संचित कर ली है. तब मैं संपत्ति के सुख का भोक्ता हूं, किंतु व्यापार में मेरा सब धन जाता रहा, तो मैं दुख का भोक्ता हो जाता हूं.
इसी प्रकार जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हम अपने कर्म के फल का सुख भोगते हैं. यह कर्म कहलाता है. ईश्वर, जीव, प्रकृति, काल तथा कर्म इन सबकी व्याख्या भगवद्गीता में हुई है. प्रकृति की अभिव्यक्ति अस्थायी हो सकती है, परंतु यह मिथ्या नहीं है.
जगत की अभिव्यक्ति को मिथ्या नहीं माना जाता. यह उस बादल के सदृश है, जो आकाश में घूमता रहता है, या वर्षा ऋतु के आगमन के समान है, जो अन्न का पोषण करती है. ज्योंही वर्षा ऋतु समाप्त होती है और बादल चले जाते हैं, वर्षा द्वारा पोषित सारी फसल सूख जाती है. इसी प्रकार भौतिक अभिव्यक्ति भी किसी समय में, किसी स्थान पर होती है, कुछ देर तक ठहर कर लुप्त हो जाती है. जीव भी परमेश्वर की शक्ति हैं, किंतु वे विलग नहीं, अपितु भगवान से नित्य-संबद्ध हैं.
इस तरह भगवान, जीव, प्रकृति तथा काल- सब परस्पर संबद्ध हैं. हां, कर्म के फल अत्यंत पुरातन हो सकते हैं. हम अनादि काल से अपने शुभ-अशुभ कर्मफलों को भोग रहे हैं और अपने कर्मों के फल को बदल भी सकते हैं. यह परिवर्तन हमारे ज्ञान की पूर्णता पर निर्भर करता है.
– स्वामी प्रभुपाद

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें