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..ध्यान सध रहा है

सही ध्यान की एक कसौटी है-समचित्तता. सुख-दुख इन सारे शब्दों में संतुलन बनाये रखना समचित्तता है. इसका अर्थ यह नहीं है कि हम लाभ और अलाभ को समान मानें. लाभ होने पर अहं न हो और अलाभ होने पर विषाद न हो. जब बहुत लाभ होता है, आकाश ही दिखाई देता है, धरती नहीं. जब […]

सही ध्यान की एक कसौटी है-समचित्तता. सुख-दुख इन सारे शब्दों में संतुलन बनाये रखना समचित्तता है. इसका अर्थ यह नहीं है कि हम लाभ और अलाभ को समान मानें. लाभ होने पर अहं न हो और अलाभ होने पर विषाद न हो.
जब बहुत लाभ होता है, आकाश ही दिखाई देता है, धरती नहीं. जब अलाभ होता है, आकाश दिखना बंद हो जाता है, केवल धरती ही दिखाई देती है. यह स्थिति पैदा नहीं होनी चाहिए. हम आकाश को भी देखें, धरती को भी देखें. जो नीचा है, उसे भी देखें, जो ऊपर है, उसे भी देखें. दोनों स्थितियों में समचित्तता का निर्णय ध्यान से ही संभव है. ध्यान की अंतिम कसौटी है सहन क्षमता.
जैसे-जैसे ध्यान की स्थिरता बढ़ती है, वैसे-वैसे कष्ट सहने की क्षमता बढ़ती चली जाती है. भगवान महावीर ने ध्यान में कितने कष्ट सहे. हम ध्यान की अवस्था से परे हट कर देख रहे हैं, इसलिए हमें आश्चर्य होता है. यदि हम ध्यान की अवस्था में चले जायें, तो फिर आश्चर्य नहीं होगा.
जो व्यक्ति ध्यान के द्वारा आत्मा की लीनता में चला जाता है, उसे शारीरिक कष्ट का भान भी नहीं होता. सम्मोहन और मूर्छा का प्रयोग किये बिना ऑपरेशन का कष्ट सहा जा सकता है. क्योंकि शल्यक्रिया शरीर में होती है और व्यक्ति चेतना के भीतर चला जाता है. शरीर में होनेवाला कष्ट चेतना का स्पर्श ही नहीं कर पाता. तनाव कम हो रहा है तो मानना चाहिए- ध्यान सध रहा है.
आचार्य महाप्रज्ञ

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