माया से बचना है! तुम्हारा सारा धर्म इसी बात पर आधारित है. यह नहीं सोचते कि अगर संसार झूठ है, तो क्या बचना! यदि संसार झूठ है, तो कोई सच कैसे हो सकता है? यदि संसार झूठ है, तो संसार को बनानेवाला सच कैसे हो सकता है? वह तो महाझूठ होगा. झूठ का जन्म झूठ से हो सकता है.
इसलिए मैं कहता हूं : संसार बहुत सच है. संसार तो परमात्मा की काया है, माया नहीं. यह संसार उसकी अभिव्यक्ति है. इस आकांक्षा में संसार से भाग कर जाओगे कहां? जहां जाओगे वहीं संसार है. तुम ही संसार हो. तो कम से कम तुम तो रहोगे ही जहां भी जाओगे. कुछ तो होगा ही. घर-द्वार न होगा, आश्रम होगा. परिवार न होगा तो साधु-साध्वी होंगे.
भागोगे कहां? इसलिए कहता हूं: जागो! यह संसार सत्य है. असत्य तो तुम्हारा मन है. मन माया है, संसार नहीं. मन कल्पना के जाल बुनता है. संसार का पर्दा तो सच है, मन उस पर बड़े झूठा चित्र उभारता है. जैसे रस्सी में कोई सांप देख ले! सांप झूठ होगा, लेकिन रस्सी झूठ नहीं है.
मायावादी सदियों से उदाहरण देते रहे हैं कि संसार ऐसा है, जैसे रस्सी में कोई सांप देख ले. लेकिन उनसे कोई पूछे कि चलो सांप झूठ हुआ, मगर रस्सी तो है न! तुम्हें सांप दिखायी पड़ी है, तुम्हारी नजर की भूल है.
अपनी भ्रांति को संसार पर फैला रहे हो? इसलिए मेरा जोर पलायन पर नहीं, जागरण पर है. जागो! रस्सी से भागो मत. दीया जलाओ! यदि रोशनी की कमी है, तो रोशनी जगाओ, ताकि रस्सी रस्सी ही है, तुम्हें ऐसा दिखायी पड़ सके.
– आचार्य रजनीश ‘ओशो’