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पहल है जल जीवन मिशन

जल जीवन मिशन के तहत जितना प्रयास जल पहुंचाने का करना है, उससे कहीं अधिक इन बातों पर ध्यान देना होगा, जो काफी महत्वपूर्ण एवं प्रासंगिक हैं, जैसे- जल स्रोतों की पहचान करना एवं उनको पुनर्जीवित एवं संरक्षित करना.

जल जीवन मिशन को एक सुनहरे मौके के रूप में देखा जा सकता है. यह एक ऐसा मौका है, जिसके तहत सभी घरों में नल के द्वारा शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है. झारखंड के परिप्रेक्ष्य में हमें इस मौके को हाथों-हाथ लेने की आवश्यकता है, क्योंकि झारखंड राज्य की भौगोलिक बनावट अधिकतर पठारों से आच्छादित है और शुद्ध पानी के लिए हमें प्रतिदिन जद्दोजहद करनी पड़ती है. स्वच्छ भारत मिशन के सफलतापूर्वक क्रियान्वयन के उपरांत पूरे देश में जल जीवन मिशन योजना की शुरुआत की गयी है.

इस वर्ष के जल दिवस का थीम है-‘जल का मूल्य पहचानो’. इसके लिए हमें जल जीवन मिशन के तहत जितना प्रयास जल पहुंचाने के लिए करना है, उससे कहीं अधिक इन बातों पर ध्यान देना होगा, जो काफी महत्वपूर्ण एवं प्रासंगिक हैं, जैसे- जल स्रोतों की पहचान करना एवं उनको पुनर्जीवित एवं संरक्षित करना. इसके अलावा समुचित तकनीक का प्रयोग कर जल की गुणवत्ता को सुनिश्चित करना, निरंतर एवं निर्बाध पेयजल उपलब्ध कराना, गंदे पानी का समुचित प्रबंधन करना एवं सफलतापूर्वक क्रियान्यवन के लिए सभी सहयोगी एवं सहभागी समूहों का क्षमतावर्धन करना भी महत्वपूर्ण है.

झारखंड में जल जीवन मिशन से जुड़ी कई चुनौतियां हैं, जिनका ध्यान कार्यक्रम के क्रियान्वयन के क्रम में रखना उचित होगा. झारखंड राज्य पठारों एवं जंगलों से भरा हुआ है, यहां की भौगोलिक संरचना अन्य प्रदेशों से अलग है और वार्षिक वर्षा दर भी अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है. यहां करीब 1237 मिली सालाना बारिश होती है, परंतु जल संरक्षण का समुचित प्रबंध नहीं होने के कारण अधिकांश पानी बगैर उपयोग के नदी-नालों में बह जाता है. झारखंड में सतही जल का अभाव है.

अधिकतर नदियों एवं तालाबों में पूरे वर्ष पानी नहीं रह पाता. दामोदर, स्वर्णरेखा, कोयल जैसी ही कुछ नदियां हैं, जिनमें पूरे वर्ष पानी भरा रहता है. इस पर एक वृहत कार्य योजना बनाने की आवश्यकता है. नल द्वारा जल के आच्छादन का प्रतिशत राज्य में बहुत ही कम है. मात्र 12 प्रतिशत आबादी को ही नल द्वारा जल प्राप्त होता है. इसे 100 प्रतिशत पर पहुंचाना एक चुनौती है, जो सामुदायिक सहभागिता के बिना संभव नहीं है.

हालांकि चुनौतियां बड़ी हैं, लेकिन नीतिगत फैसले एवं ठोस क्रियान्वयन के द्वारा हम इसको सफलतापूर्वक संपन्न कर सकते हैं. हम जानते हैं कि राज्य में स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) की सफलता में रानी मिस्त्रियों की भूमिका सराहनीय रही है. उन्होंने अपने कार्यों एवं योगदानों से न केवल मिशन को गति प्रदान की, बल्कि अपनी आजीविका के लिए भी एक नया आयाम ढूंढ लिया. इस प्रकार समुदाय में एक नये सहयोगी समूह का निर्माण हुआ. जल जीवन मिशन में महिलाओं के लिए काफी संभावनाएं हैं.

जल व्यवस्था का सही संचालन एवं रख-रखाव में अग्रसर होकर महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं. इसी प्रकार से ग्राम स्तरीय संस्थागत व्यवस्था में ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति की भी भूमिका अहम रही है. ग्राम स्तर पर विभाग की यह न्यूनतम इकाई है और क्रियान्वयन संबंधी इनके पास व्यापक अनुभव हैं. मिशन के क्रियान्वयन, संचालन एवं रख-रखाव में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है और इसलिए इनका कार्यक्रम में शुरू से जुड़ाव होना आवश्यक है.

विभिन्न विभागों के बीच समन्वय भी आवश्यक है, क्योंकि इसके बिना कार्यक्रम की सफलता संभव नहीं है. जल संरक्षण, जल भरण, कृषि पैटर्न समतलीकरण, वन संरक्षण, पौधारोपण जैसे मुद्दों को लेकर सभी विभागों के बीच समन्वय आवश्यक है.

यह भी देखा गया है कि ऊपरी स्तर पर तो समन्वय हो जाता है, परंतु निचले स्तर पर नियमित समन्वय के अभाव के कारण क्रियान्वयन को पर्याप्त गति नहीं मिल पाती और कार्य की गुणवत्ता भी उम्मीद के अनुसार नहीं हो पाती. इसलिए ऊपरी स्तर के साथ-साथ निचले स्तर पर समन्वय को भी सुनिश्चित करना आवश्यक है.

आने वाले दिनों में झारखंड में पंचायत चुनाव प्रस्तावित है. चुनाव उपरांत जन प्रतिनिधियों का जल जीवन मिशन कार्यक्रम पर प्रशिक्षण जरूरी है, क्योंकि पंचायत ही इस मिशन के क्रियान्वयन, रख-रखाव एवं संचालन के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है. अतः जल जीवन मिशन पर व्यापक प्रशिक्षण की व्यवस्था अपेक्षित है.

नल द्वारा जल की व्यवस्था एक तकनीकी व्यवस्था है, ऐसे में व्यवस्था के लिए एवं इसके बाद योजना का स्वामित्व बनाये रखने हेतु प्रशिक्षित तकनीशियन का समूह तैयार करना आवश्यक है, जिससे पंचायत स्तर पर चयनित युवाओं को प्रशिक्षित कर कार्यक्रम को मजबूती प्रदान की जा सके.

जल संरक्षण और जल प्रबंधन एक-दूसरे के पूरक हैं. बिना जल संरक्षण किये अगर हम जल का दोहन करेंगे, तो आने वाले समय में जल संकट की समस्या उत्पन्न हो जायेगी. झारखंड के कई जिले जैसे कि पलामू, गढ़वा में फ्लोराइड का प्रकोप है, जिस कारण लोगों में अपंगता स्पष्ट दिखाई देती है. कुछ क्षेत्रों में लौह मात्रा अत्यधिक होने से समुदाय के लोग विभिन्न बीमारियों से लंबे समय के लिए ग्रसित हो जाते हैं.

इसलिए जल जीवन मिशन में यह व्यवस्था की गयी है कि सभी जल स्रोतों की जांच हो एवं जिलास्तरीय मान्यताप्राप्त प्रयोगशाला से सर्टिफिकेट प्रदान किया जाये. जल जांच हेतु उपयुक्त व्यवस्था करने के साथ-साथ सभी स्तरों पर जल सहभागिता, जन आंदोलन एवं उचित प्रशिक्षण को सुनिश्चित करना भी जल जीवन मिशन की सफलता को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है.

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