Tahawwur Rana : अमेरिका द्वारा मुंबई हमले के षड्यंत्रकारी तहव्वुर हुसैन राणा का भारत प्रत्यर्पण हमारी सरकार के लिए एक बड़ी सफलता या उपलब्धि है. मुंबई हमला भारत में बड़े आतंकवादी हमलों में था, जिसमें पाक प्रायोजित संगठन लश्कर के आतंकियों ने मुंबई में कई जगहों पर एक साथ हमला किया था. मुंबई हमले के अगले ही साल तहव्वुर राणा को अमेरिका में गिरफ्तार किया गया था और उसे तेरह साल की कैद की सजा दी गयी थी. अमेरिका ने जब राणा को रिहा किया था, तब भारत ने 26/11 मामले में उसकी लिप्तता के कारण प्रत्यर्पण का आग्रह किया था.
भारत के दबाव के कारण ही अमेरिका ने राणा को दोबारा गिरफ्तार किया. यह भारत-अमेरिकी सहयोग की मिसाल है. फिर भारत ने मुंबई हमले में राणा की भूमिका से संबंधित इतने सारे सबूत पेश किये कि अमेरिकी अदालत को उसे भारत को प्रत्यर्पित करने का फैसला देना पड़ा. यह भी राणा को भारत लाकर सजा दिलाने की हमारी प्रतिबद्धता का प्रमाण है.
मुंबई हमले के सत्रह साल बीत चुके हैं. इस दौरान हमें इस हमले से जुड़ी बहुत सारी चीजें पता चली हैं. लेकिन इस हमले से जुड़ी कई परतें अब भी खुलनी बाकी हैं. जाहिर है, राणा के जरिये हमें मुंबई हमले से जुड़ी बहुत सारी बातें पता चलने वाली हैं. मुंबई हमले से पहले तहव्वुर राणा ने पत्नी के साथ भारत का दौरा किया था. जिस आराम से राणा देश के अलग-अलग हिस्सों में घूम रहा था, उससे लगता है कि यहां उनके मददगार लोग थे. वे कौन लोग थे? क्या भारत के अंदर भी लोग उसकी मदद कर रहे थे? फिर तहव्वुर राणा देश के जिन-जिन हिस्सों में गया, उनमें से कई जगहों पर विदेशी पर्यटकों की मौजदगी रहती है. क्या उसकी कोई खास वजह थी?
मुंबई हमले में भी हमने देखा कि बड़ी संख्या में विदेशी नागरिकों या पर्यटकों को निशाना बनाने की कोशिश थी. साफ है कि कुख्यात पाक खुफिया एजेंसी आइएसआइ की नजरें भारत के और भी शहरों की ओर थीं. चूंकि आइएसआइ या पाक प्रायोजित आतंकवादी समूहों का भारत के प्रति रवैया अब भी बदला नहीं है, ऐसे में, उन जगहों की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत की जानी चाहिए. हमारे मीडिया में ठीक इसी समय यह खबर आयी है कि भारतीय जांच एजेंसी के पास मुंबई हमले से संबंधित एक अहम गवाह मौजूद है, जिसने 2008 में राणा के कहने पर मुंबई की रेकी करने आये डेविड कोलमैन हेडली की मदद की थी और जल्दी ही राणा से इस गवाह की मुलाकात करायी जायेगी.
चूंकि यह गवाह राणा के करीबियों में से एक बताया जाता है, इस कारण अदालत में भी इसकी पहचान को गोपनीय रखा गया है. इस गवाह से ही यह जानकारी भी मिली है कि भारत पर हमले की साजिश 2006 से ही रची जा रही थी. इस बारे में इससे पहले कोई जानकारी नहीं थी. इससे भी यह मामला काफी दिलचस्प बनने की उम्मीद है. जाहिर है, हमारी सरकार ने इस मामले में तहव्वुर राणा और उसके मददगारों को घेरने के लिए प्रभावी रणनीति बना रखी है.
मुंबई हमले के समय देश में यूपीए की सरकार थी. हमले के तुरंत बाद अपने यहां सुनियोजित तरीके से इस हमले के पीछे आरएसएस का हाथ बताया गया था. क्या वह दुश्मन देश के षड्यंत्र का ही समर्थन करना नहीं था?फिर यह भी कहा गया कि मुंबई हमले को पाकिस्तान के ‘नॉन स्टेट एक्टर्स’ ने अंजाम दिया है. आतंकवादियों के मुंबई में प्रवेश करने तथा ताज होटल समेत अलग-अलग जगहों में हमलों को अंजाम देने से साफ था कि उसमें पाकिस्तान के स्टेट एक्टर्स की सीधी भूमिका थी. तहव्वुर राणा से पूछताछ में इस बारे में ज्यादा जानकारी मिल सकेगी. एनआइए राणा और हेडली के बीच दर्जनों फोन कॉल का विश्लेषण कर रही है, ताकि दूसरे देशों तक फैली साजिशों की कड़ियां जोड़ी जा सकें. पूछताछ में दुबई के एक आदमी की भूमिका भी सामने आयी है, जो हेडली के कहने पर राणा से मिला था. पता लगाया जा रहा है कि वह आदमी दाऊद इब्राहिम था या उसके आपराधिक नेटवर्क से जुड़ा कोई अन्य शख्स.
पाकिस्तान के चरित्र को देखते हुए इसकी उम्मीद तो बेमानी है कि तहव्वुर राणा के खुलासे से वह शर्मिंदा होगा. राणा को भारत प्रत्यर्पित किये जाने के बाद से उसका रवैया इस मामले में अर्थपूर्ण चुप्पी साध लेने का रहा है, जैसे कि उसका इससे कोई लेना-देना ही नहीं है. लेकिन राणा के खुलासों के बाद पाकिस्तान पर नये सिरे से कूटनीतिक दबाव तो बनाया ही जा सकता है. यहां गौर करने की बात यह भी है कि पिछले करीब डेढ़ दशकों से पाकिस्तान अपने आतंकियों को बचाने की रणनीति पर काम कर रहा है. मुंबई हमले के मास्टरमाइंड साजिद मीर का ही उदाहरण लीजिए. कभी इस्लामाबाद ने साजिद मीर की देश में मौजूदगी से ही इनकार किया. फिर उसने कहा कि उसके ठिकाने का पता नहीं चल पा रहा. कभी उसने कहा कि साजिद मीर की मौत हो चुकी है. उसने तो उसकी झूठी कब्र तक की जानकारी दे दी थी. पता यह भी चलता है कि साजिद मीर जिंदा है, वह पाकिस्तान में ही है, उसे सजा सुनायी गयी है और वह हिरासत में है. ऐसे ही जैश के सरगना मसूद अजहर का मामला है. इन दोनों आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव एफएटीएफ यानी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने बनाया था. जाहिर है कि आतंकवाद को प्रायोजित करने के कारण पाकिस्तान अनेक देशों और वैश्विक एजेंसियों के निशाने पर पहले से है. ऐसे में, मुंबई हमले के संदर्भ में पाकिस्तान के खिलाफ भारत नये सिरे से कूटनीतिक दबाव बना सकता है, ताकि उस पर फिर से कुछ नये प्रतिबंध लगें.
बेशक मुंबई हमले और उसके षड्यंत्रकारी तहव्वुर राणा को भारत लाये जाने के पीछे सत्रह साल की अवधि है. लेकिन राणा के प्रत्यर्पण का संदेश यह है कि अपनी जमीन पर होने वाले आतंकी हमलों को कभी न भूलिए, न ही किसी को माफ कीजिए. इसके बजाय दोषियों को दंडित कीजिए. हालांकि तहव्वुर राणा को दंडित करने में अभी कई साल लगेंगे. उसके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता और गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के तहत हत्या, भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश, आतंकी हमले में लिप्तता जैसे कई मामले हैं. बड़ी बात यह है कि राणा के प्रत्यर्पण में उसे उम्रकैद या फांसी न देने की शर्त नहीं है. इसलिए उम्मीद यही है कि देर-सबेर उसे अपने किये की कठोर सजा मिलेगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)