रविभूषण
वरिष्ठ साहित्यकार
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क्या यह समय गुटेनबर्न (1400-1468), जेम्स अगस्टस हिकी (1740-1802) और युगल किशोर शुक्ल को भूलने और नारद मुनि को याद करने का समय है? गुटेनबर्ग ने 1440 ई के आस-पास छापने की मशीन का आविष्कार किया था. यहीं से मुद्रण क्रांति आरंभ हुई. दूसरी सहस्त्राब्दी की यह सबसे बड़ी खोज थी. मानव इतिहास में आधुनिक युग का आरंभ हुआ. पुनर्जागरण, सुधार आंदोलन, प्रबोधन युग और वैज्ञानिक विकास में इसकी विशेष भूमिका रही. छापे की मशीन भारत में 1674 में आ गयी थी, पर समाचारपत्र प्रकाशन सौ वर्ष बाद ही संभव हुआ. भारत में बैपटिस्ट मिशनरी ने श्रीरामपुर (बंगाल) में पहला प्रेस खोला और जेम्स अगस्टस हिकी ने ‘हिकीज बंगाल गजट’ पत्र का प्रकाशन 29 जनवरी, 1780 को शुरू किया. हिंदी का पहला समाचार पत्र ‘उदंत मार्तंड’ युगल किशोर शुक्ल के संपादन में 30 मई, 1826 को कलकत्ता से प्रकाशित हुआ था. अब 30 मई हिंदी पत्रकारिता दिवस है.
मौखिक इतिहास की तरह अभी मौखिक पत्रकारिता चलन में नहीं है. नारद मुनि का उल्लेख वेद पुराण, ब्रह्म सूत्र, उपनिषद्, महाभारत आदि ग्रंथों में है. ब्रह्मा के पुत्र विष्णु भक्त नारद की पहचान वृहस्पति के शिष्य के रूप में भी है. अब उन्हें ‘आद्य पत्रकार’ और ‘संपूर्ण आद्य आदर्श पत्रकारिता के संवाहक’ के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है. आरएसएस के पूर्व सरसंघचालक के एस सुदर्शन ने उन्हें पहला पत्रकार कहा था. मई 2002 में विश्व संवाद केंद्र (आरएसएस से संबद्ध संस्था) ने अहमदाबाद में नारद जयंती का आयोजन किया था. मुख्य अतिथि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे. इसके बाद यह राष्ट्रीय विषय (इवेंट) बना. विश्व संवाद केंद्र अभी तक हिंदी भाषी संवाद केंद्र और भारतीय संवाद केंद्र नहीं बन सका है.
प्रत्येक वर्ष यह केंद्र 13 मई को देश के विविध हिस्सों में नारद जयंती का आयोजन कर राष्ट्रवादी पत्रकारों को सम्मानित करता है. संघ परिवार पौराणिक भारत को ऐतिहासिक भारत की तुलना में सर्वाधिक महत्व देता है. पौराणिक भारत से अपने मनोनुकूल पात्रों, नायकों, महानायकों को उनकी खोज और हमारे समय में उनको सुस्थापित करना एक सुनियोजित एजेंडे के तहत है. जनचेतना को प्रोपगंडा से प्रभावित करना बहुत आसान है. जनमानस को प्रभावित करना, अपने पक्ष में अनुकूलित करना बिना मीडिया को नियंत्रित किये संभव नहीं है. नोम चोमस्की ने 1988 में ‘मैन्यूफैक्चरिंग कंसेंट’ पुस्तक लिखी थी और अब दो वर्ष पहले (2015 में) जेसन स्टेनले की पुस्तक आयी है – ‘हाउ प्रोपैगंडा वर्क्स.’
अब नारद जयंती के अवसर पर दो सौ के लगभग आयोजन हुए हैं. हजारों व्यक्ति आयोजन में शरीक हुए थे. पत्रकारिता के नये आइकन के रूप में नारद मुनि को स्थापित किया जा रहा है. संघ परिवार के हाथों यह नारद का पुनर्जन्म है. लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के वे अब सर्वप्रमुख बताये जा रहे हैं. जब पौराणिक भारत में, प्राचीन भारत में जननिक (जेनेटिक) वैज्ञानिक प्लास्टिक सर्जन हो सकते हैं, तो आद्य पत्रकार क्यों नहीं हो सकते. पत्रकारिता तथ्याधारित होती है, पर फैक्ट की अनदेखी कर फिक्शन को फैक्ट बनाने की कला सबको नहीं आ सकती.
विश्व संवाद केंद्र देश के बीस स्थानों पर सक्रिय है. नारद जयंती के आयोजनों में वृद्धि सामान्य बात नहीं है. क्या सचमुच नारद सार्थक संवाद करते थे. क्या वे सच्चे, साहसी और निष्पक्ष पत्रकार थे? क्या उन्हें पत्रकार कहना पत्रकारिता के इतिहास को नष्ट करना नहीं है? जिनका नाम तक कोई नहीं जानता, वे यह सब कहते नहीं थक रहे हैं कि नारद भारतीय पत्रकारिता के लिए सही अर्थों में आदर्श थे, धर्माचरण के स्थापक थे, शांति, सत्य और धर्म की स्थापना के लिए कार्यरत थे और उनका प्रत्येक संवाद लोक-कल्याण के लिए था.
भारतीय पत्रकारिता बहुत कम ही सही, सरकार से सवाल करती है, सत्य को उजगार करती है. पत्रकारिता की यह थोड़ी सी बची-खुची शक्ति है, जाे सरकार को नहीं सुहाती. आरएसएस और उसके बाकी संगठन अपनी आलोचना बरदाश्त नहीं करते. उनका संवाद, तर्क, साक्ष्य आदि में अधिक विश्वास नहीं रहता है. झूठ की फसलें उगायी जा रही हैं. मीडिया का एक बड़ा हिस्सा सत्ता की विचारधारा को प्रचारित-प्रसारित कर रहा है. राष्ट्रवादी पत्रकारिता अभियान आरंभ हो चुका है.
20 मई, 2017 को भारतीय जनसंचार संस्थान, नयी दिल्ली में ‘वर्तमान परिप्रक्ष्य में राष्ट्रीय पत्रकारिता’ पर विचार हुआ. पत्रकारों के लिए यह समय चुनातिपूर्ण है. हिंदी के अनेक पत्रकार नारद मुनि को आद्य पत्रकार मानने से नहीं हिचकेंगे. वे अपने को राष्ट्रवादी घोषित करेंगे. पत्रकारिता का कार्य निर्भीकता से सच्ची खबरें देना है. जॉर्ज ऑरवेल ने कहा था- ‘धोखाधड़ी के समय में सच बोलना एक क्रांतिकारी काम है.’