उपन्यासकार उपमन्यु चटर्जी ने कभी लिखा था, ‘दिल्ली में रहनेवाला हर व्यक्ति जानता है कि यह एक भयानक शहर है.’ अब एक ताजा सर्वेक्षण में पता चला है कि अन्य राज्यों से दिल्ली जाकर वहां काम कर रहीं 43 फीसदी महिलाएं असुरक्षा से परेशान होकर दिल्ली छोड़ना चाहती हैं.
इनमें ज्यादातर महिलाएं देर शाम या रात में काम नहीं करना चाहतीं, क्योंकि यातायात के साधनों, सार्वजनिक शौचालयों तथा सड़कों व गलियों में रोशनी की कमी जैसी समस्याओं ने उनमें असुरक्षा की भावना को बढ़ा दिया है. दिल्ली में 10 लाख से अधिक बाहरी मजदूर हैं, जिनमें ज्यादातर यूपी, बिहार, झारखंड, बंगाल और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से पहुंचे हैं. इनमें महिलाओं की तादाद काफी है. बड़ी संख्या में बाहरी महिलाएं घरों में काम करती हैं, जो आर्थिक शोषण और शारीरिक-मानसिक प्रताड़ना की शिकार होती हैं.
यह क्षुब्ध करनेवाली बात है कि देश की राजधानी में भी ऐसे अपराधों-अत्याचारों पर अंकुश की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. महिलाओं के विरुद्ध अपराध की कई तहें हैं, जिनमें आर्थिक, शारीरिक के साथ-साथ नस्ली पूर्वाग्रह भी शामिल है. एक अन्य सर्वे के मुताबिक दिल्ली में पूर्वोत्तर की 81 फीसदी महिलाओं को उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा है. विदेश से आनेवाली 95 फीसदी महिला सैलानियों की नजर में भी दिल्ली असुरक्षित शहर है. चिंताजनक यह भी है कि ऐसी बहुत-सी घटनाओं की सूचना पुलिस को नहीं दी जाती, क्योंकि पुलिस पर उन्हें भरोसा नहीं है.
दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है, जहां कानून-व्यवस्था की जिम्मेवारी केंद्रीय गृह मंत्रलय की है. देश भर से लोग इस उम्मीद में दिल्ली जाते हैं कि मेहनत और लगन से वे अपने कुछ सपनों को साकार कर सकेंगे. अब दिल्ली छोड़ने की सोच रहीं महिलाएं कहीं और जाकर मेहनत-मजूरी से अपना और परिवार का पेट तो पाल लेंगी, लेकिन सपनों के टूटने, उम्मीदों के लड़खड़ा जाने और भरोसे के ढह जाने की टीस उन्हें उम्र भर सालती रहेगी. कामकाजी महिलाओं या आम मेहनतकशों को सुरक्षित माहौल नहीं दे पाना सरकार या कानून-व्यवस्था की नाकामी भर नहीं है, यह उस भारतीय राष्ट्र-राज्य और गणतंत्र की भी असफलता है, जिसने हर व्यक्ति से कुछ बुनियादी वायदे किये हैं.