नौसेना के जिस कोलकाता पोत में हादसा हुआ, उसकी गिनती दुनिया के आधुनिकतम पोतों में की जाती रही है. इससे पहले भी कुछ हादसे अलग-अलग जगहों पर हुए हैं. ऐसे में, यही लगता है कि भारतीय नौसेना अपनी सजगता और ताकत खोती जा रही है. दुर्भाग्य से थल सेना और वायु सेना भी इस समस्या से दो-चार हो चुकी है. रक्षा जरूरतों के मामले में विडंबना यह है कि एक तरफ दावा किया जाता है कि धन की कमी नहीं है, वहीं दूसरी तरफ यह देखने में आता है कि हथियार खरीदे ही नहीं जा रहे हैं और जो हथियार खरीदे भी गये हैं, वे अपेक्षित गुणवत्ता के नहीं हैं.
अब नौसेना के आधुनिकीकरण के मामले को ही लें, कई पनडुब्बियों की खरीद की फाइलें अरसे से मंत्रलयों में अटकी पड़ी हैं. लगता है हमारे देश के मंत्रीगण को इन फाइलों पर नजर डालने के लिए फुरसत ही नहीं है और हो भी कैसे वे तो फाइलों को इधर-उधर करने में लगे रहते हैं. यहां सबसे बड़ा सवाल है कि क्या सुरक्षा के मामलों में भी ऐसी लापरवाही हमारी जनता सह सकती है, अगर नहीं तो अब हमारी आवाज उठाने की बारी आ गयी है. न जाने कितने लोग बेवक्त इस हादसे में अपनी जान गंवा चुके हैं. कई की मां, पत्नी और बच्चे इस सदमे को बरदाशत भी नहीं कर पा रहे हैं.
क्या ये सारी चीजें हमारे सरकार को नहीं दिखती. ऐसे में, लगता है कि जब तक हथियार खरीद के मामले में किसी की जिम्मेदारी तय नहीं की जायेगी, तब तक स्थिति नहीं सुधरेगी. नौसेना जिस तरह से एक के बाद दूसरी दुर्घटनाओं से जूझ रही है, उसे देखते हुए हमारे नीति-नियंताओं की आंखें खुल जानी चाहिए. अगर ये घटनाएं इसी तरह से घटते रहें, तो हम अपने देश के कई जांबाजों को यूं ही गंवा देंगे. इस हादसे में अब तक न जाने कितने लोग बेमौत मर चुके हैं.
प्रबोध चौधरी, कतरासगढ़, धनबाद