।।नीलांशु रंजन।।
(टेलीविजन पत्रकार)
आइपीएल में स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में श्रीसंत सहित तीन क्रिकेटरों की गिरफ्तारी के बाद हर रोज एक नया पिटारा खुल रहा है. इन पिटारों से आइपीएल में व्याप्त भ्रष्टाचार के अलग-अलग जिन्न निकल रहे हैं. ये जिन्न यह बताने को काफी हैं कि आइपीएल में किस तरह अंडरवर्ल्ड से लेकर उद्योगपतियों और बॉलीवुड तक के बीच एक खतरनाक नेक्सस बना हुआ है. अभिनेता बिंदु दारा सिंह की गिरफ्तारी के बाद शक की सूई बीसीसीआइ के मुखिया और चेन्नई सुपर किंग्स के मालिक एन श्रीनिवासन के दामाद की ओर भी घूम गयी है. श्रीनिवासन के दामाद गुरुनाथ मयप्पन चेन्नई सुपर किंग्स के सीइओ भी हैं. यानी राजनीति का भाई-भतीजावाद का रोग और उससे उत्पन्न भ्रष्टाचार अब क्रिकेट में भी समा गया है. बिंदु ने पूछताछ के दौरान गुरुनाथ मयप्पन से लगातार संपर्क में होने का खुलासा किया है. पता चला है कि एक दिन में दोनों के बीच तकरीबन 35 दफा बात हुई. जाहिर है 35 बार बातचीत कोई हाय-हलो के लिए तो होगी नहीं. यह मामला तो मयप्पन से पूछताछ के बाद ही स्पष्ट होगा. दिल्ली पुलिस चेन्नई में उनके दरवाजे पर दस्तक दे चुकी है.
सवाल है कि क्रिकेट जैसा खेल, जिसके लिए लोगों में जुनून की हद तक दीवानगी है, इस दलदल में क्यों और कैसे फंसता चला गया? जवाब स्पष्ट है कि आइपीएल खेल आयोजन न होकर बेशुमार पैसा कमाने और रंगीनियों में डूबने का एक जरिया मात्र रह गया है. श्रीसंत की गिरफ्तारी के बाद दिल्ली पुलिस आयुक्त नीरज कुमार ने कहा है कि इसके तार दाऊद इब्राहिम से जुड़े हुए होने की संभावना है. साथ ही, बॉलीवुड के कुछ और चेहरों पर से भी परदा हटने की संभावना है. यह किसी से छिपा नहीं है कि कुछ जाने-माने उद्योगपति आइपीएल को अपनी रईसी दिखाने का, तो कुछ अभिनेता-अभिनेत्री इसे पैसे उगाहने का जरिया बनाये हुए हैं. कुल मिला कर आइपीएल पैसा और ताकतवालों का खेल बन कर रह गया है.
क्रिकेट की चकाचौंध के पीछे की दुनिया कितनी गंदी और काली है, इसका एहसास तो लोगों को था ही, पर ‘स्पॉट फिक्सिंग’ से यह पुख्ता हो गया है. आइपीएल में जिस तरह से पैसा, ताकत, शराब और शबाब का प्रदर्शन होता है, उससे तो यह दावा कतई नहीं किया जा सकता है कि इसमें सबकुछ ठीकठाक है. आइपीएल के जनक ललित मोदी का इतिहास भी सबके सामने है. आइपीएल आज के बॉलीवुड के आइटम सांग की तरह है.
इस फिक्सिंग के बाद हुए एक स्टिंग ऑपरेशन में पूर्व कप्तान रवि शास्त्री ने दाऊद इब्राहिम के ड्रेसिंग रूम में आने की बात भी कुबूली है. क्रिकेट को जिस तरह स्टारडम का दर्जा दे दिया गया है और जिस तरह क्रिकेटर रातों-रात करोड़ों से खेलने लग जाते हैं, उस हालात में तो ये सब होना ही है. ध्यान रहे कि जहां भी चकाचौंध व स्टारडम है, उसके पीछे की दुनिया अकसर काली होती है. यह भी साबित हो चुका है कि आइपीएल में सट्टे की दुकान सजानेवाले सटोरियों के तार भारत से दुबई तक बिछे हुए हैं.
यह तो स्पॉट फिक्सिंग है, पहले तो पूरा मैच फिक्स करने के आरोप में अजहरुद्दीन, जडेजा और प्रभाकर पर प्रतिबंध लगाये जा चुके हैं. सवाल यह उठता है कि क्या इस पर अंकुश लगाने के लिए हमारी सरकार गंभीर रही है? क्यों नहीं इसे लेकर एक सख्त कानून बनाया गया, या इस पर एक गंभीर बहस हुई? क्यों नहीं भारतीय कानून की किसी की भी धारा में अब तक मैच फिक्सिंग को अपराध के तौर पर शामिल किया जा सका है? सरकार अभी कितने मैच या स्पॉट फिक्सिंग का इंतजार करेगी? क्रिकेटरों की गिरफ्तारी के बाद बहस इस बात को लेकर भी तेज हो गयी है कि किस धारा के तहत इन पर कानूनी कार्रवाई की जायेगी? दिल्ली हाइकोर्ट ने आइपीएल पर प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया है. ठीक है, प्रतिबंध न लगे, लेकिन एक सख्त कानून तो बनना ही चाहिए.
1999 में दिल्ली पुलिस ने इसी तरह दक्षिण अफ्रीकी कप्तान हैंसी क्रोनिये के साथ टीम इंडिया के तत्कालीन कप्तान अजहरुद्दीन और अजय जडेजा के खिलाफ मैच फिक्सिंग में शामिल होने का आरोप लगाया था. इसकी जांच के लिए सीबीआइ को कमान दी गयी, जिसने इन खिलाड़ियों को दोषी पाया. लेकिन कानून की कमजोरी के कारण सीबीआइ इन खिलाड़ियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल नहीं कर सकी. इसलिए जरूरत है एक सख्त कानून की. सवाल यह भी है कि इतने बड़े खुलासे के बाद भी क्रिकेट के पदाधिकारी कब तक राजनेता की तरह अपनी कुरसी से चिपके रहेंगे? क्यों नहीं इस संस्था की नये सिरे से ओवरहॉलिंग की जाती है.